Tuesday, June 20, 2023

लघुकथा - करवा चौथ


 करवा चौथ 


 रात के नौ बज गए और चाँद अभी तक नहीं निकला। पति देव का तो मालूम है , बारह बजे से पहले नहीं आएँगे , पर इस निगोड़े चाँद को क्या हो गया , रोज़ तो सात बजे ही निकल जाता है लेकिन आज के दिन इसे भी .....तभी घंटी की आवाज़ से  बड़बड़ाती संध्या की तन्द्रा टूटती है और वो थके क़दमों से दरवाज़ा खोलती है। 

- " अरे , तू अभी से आ गयी ? "

- "बीबी जी , नौ बज रहे है " - कामवाली ने तपाक से जवाब दिया। 

- " अरे हाँ , लेकिन हमने तो अभी तक भोजन ही नहीं किया है , माँजेगी क्या ? कल सुबह ही आना अब और सुन तूने व्रत खोल लिया क्या ?" 

 संध्या एक साँस में सब कुछ कह गयी। 

- " हाँ , बीजी , मैंने तो छह बजे ही खा पी लिया था। "

- " छह बजे , बिना चाँद को अर्क चढ़ाये ?"

- " बीजी , मेरा चाँद तो मेरा शेरू है , वो छह बजे घर आ गया था और हमे मिल जुल कर खा पी लिया था।  आप भी खा लो बीजी कब तक भूकी रहोगी।  "

- " हाँ , ठीक है , तू जा अब , कल आना  ....." संध्या हैरानी में बुदबुदाती  जा रही थी ...तू जा...कल आना ...। 

कामवाली संध्या की बड़बड़ाहट सुन कर कुछ हैरान हुई और जल्दी से पतली गली से  खिसक गयी। 


लेखक - इन्दुकांत आंगिरस 

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