Thursday, June 15, 2023

गीत - उस की पलके भी तर हैं , मेरी पलके भी तर हैं

 उस की पलके भी तर हैं , मेरी पलके भी तर हैं 

आँसू हैं एक बहार मेरे और  आँसू एक भीतर  है


जीवन भर समझा न उस को 

जिस ने मुझ को प्यार दिया 

पढ़ न पाया ढाई आखर 

जीवन सारा गुज़ार दिया 


किस के साथ रोऊँ यारो , किस के साथ गाऊँ यारों 

एक   परिंदा बाहर   मेरे और  एक परिंदा भीतर हैं  


पलकों की चिलमन के पीछे 

ग़म का इक दरिया बहता हैं 

क़तरा क़तरा जिस का हॅंस के 

जब फूलों की ग़ज़लें कहता है 


किस की साथ डूबूँ यारो , किस के साथ उभरूँ यारो 

एक समुन्दर बाहर मेरे  और एक   समुन्दर भीतर हैं 


जिस को भी छू कर देखा है

अपने जैसा ही लगता है

अंधे मन की बात निराली 

सब कुछ उजला सा दिखता है


किस के साथ सोऊँ यारो किस के साथ जागूँ यारो 

एक अँधेरा बाहर मेरे और एक अँधेरा भीतर है 


कवि - इन्दुकांत  आंगिरस   


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