लघुकथा - पोस्टमॉर्टेम
- " आख़िर ये सब हुआ कैसे ? " मैंने अपने दोस्त अतुल से पूछा ।
- " वो एक ट्रक मार गया भाई को , ऑपरेशन चल रहा है। " - अतुल ने मायूसी से जवाब दिया।
तभी ऑपरेशन थिएटर का दरवाज़ा खुलता है - " नवीन केसाथ कौन है ? "
- " जी डॉ साहिब , मेरा भाई ठीक तो है ना ? " अतुल ने घबरा कर पूछा।
- " सॉरी , हम मरीज़ को बचा नहीं पाए। लाश पोस्टमॉर्टेम के बाद आपको दे दी जाएगी। और हाँ , अगर आपको जल्दी हो तो पोस्टमॉर्टेम विभाग में दुलीचंद से मिल लेना वरना लाश मिलने में २-३ दिन भी लग सकते हैं " - यह कह कर डॉक्टर आगे बढ़ गया।
. दुलीचंद ..दुलीचंद....बड़बड़ाते हुए अतुल पोस्टमॉर्टेम विभाग की ओर मुड़ गया था। वह बीच बीच में अपनी ज़ेब में पैसे टटोलते हुए कुछ हिसाब - किताब लगाता जाता था । हाँ , उसे अपनी भैया की लाश आज ही चाहिए ...आज ही चाहिए.....
लेखक - इन्दुकांत आंगिरस
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