गीत - आख़िर कब तक
मानव का रक्त पियेगा , मानव आख़िर कब तक
मानव का ज़ुल्म सहेगा , मानव आख़िर कब तक
भ्रष्टाचार का सर्प डसेगा , आख़िर कब तक
मज़दूरों का ख़ून बहेगा , आख़िर कब तक
कब तक होगा क़त्ल यहाँ इंसानियत का
दशानन का दर्प हँसेगा , आख़िर कब तक
मानव का रक्त पियेगा..........
दहशत का सामान बनेगा आख़िर कब तक
सिक्कों में ईमान बिकेगा आख़िर कब तक
कब तक होगा नाच यहाँ हैवानियत का
मानव , मानव बम बनेगा आख़िर कब तक
मानव का रक्त पियेगा..........
सच का झूठा ढोल बजेगा आख़िर कब तक
चौपट जी का राज चलेगा आख़िर कब तक
कब तक होगा पतन यहाँ सियासत का
दिल्ली तेरा ताज बिकेगा आख़िर कब तक।
मानव का रक्त पियेगा..........
कवि - इन्दुकांत आंगिरस
Published in " आख़िर कब तक " November ' 2002
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