Sunday, June 11, 2023

लघुकथा - बढ़ते रहने का नाम ज़िंदगी है

 बढ़ते रहने का नाम ज़िंदगी है 

-"  बढ़ते रहने का नाम ज़िंदगी है.... बढ़ते रहने का नाम ज़िंदगी है.....वाह , क्या कहने ... बढ़ते रहने का नाम ज़िंदगी है। "

- " क्या हो गया भाई , ये क्या बड़बड़ा रहा है ? " मेरे यार ने मुझ से पूछा। 

- " ये देख यार , मोहतरमा   के वत्सप्प प्रोफाइल का वाक्य - बढ़ते रहने का नाम ज़िंदगी है "

- " हाँ , तो ठीक ही है ना , इस में बुरा क्या है ।  "

-" ये होना चाहिए - " अकेले बढ़ते रहने का नाम ज़िंदगी है।  "

- " मतलब , मैं समझा नहीं। "

-" इन मोहतरम  की रचनाएँ 10 भाषाओँ में अनुदित हो चुकी हैं , और जब मैंने इन से अनुवादकों का संपर्क सूत्र माँगा तो मैडम  को साँप सूंघ गया। दो बार पूछ चुका हूँ , कोई जवाब नहीं। ये नहीं चाहते कि साहित्य की रेस में कोई इन से आगे निकल जाए। "

- "छोड़ यार , जाने दे , मुर्गा बाँग नहीं देगा तो सवेरा नहीं होगा क्या , वैसे भी अनुवादकों का रेट ही क्या है आजकल , पैसा फैक -तमाशा देख । पैसे तो है न तेरे पास ? "

- हाँ , पैसे तो है , चल बियर की बोतल खोल...........

लेखक - इन्दुकांत आंगिरस 

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