Thursday, June 15, 2023

गीत - आज लगा तुम बिन ऐसा , जैसे रीत गया जीवन हो

 आज लगा तुम बिन ऐसा , जैसे रीत गया जीवन हो 

जैसे बुझती दीपशिखा  का अंतिम कोई स्पंदन हो 


मुक्त नहीं  थी साँसें मेरी 

कैसे उड़ता दूर गगन मैं

टूट   गए थे   सपने मेरे 

कैसे भरता नूर नयन मैं 


जैसे किरनों की चादर पर सोया कोई खंजन हो 



रिक्त नहीं था पृष्ठ समय  का

कैसे  भरता रंग  विरह    का  

रूठ गयी थी सरगम मेरी 

कैसे रचता गीत हृदय का 


जैसे साँसों की सरगम पर जलता बुझता चन्दन हो 


सूख गई थी उर की लहरें 

कैसे भरता घाव जलन के 

रूठ गई थी राधा मन की 

कैसे रचता गीत किशन  के 


जैसे कान्हा की मुरली से राधा की कुछ अनबन  हो 


कवि - इन्दुकांत आंगिरस 

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