Friday, June 2, 2023

लघुकथा - पीर की मज़ार

पीर  की   मज़ार 


- " क्या हुआ भाई , मुँह लटकाये क्यों बैठा है ? " 

- आज जुम्मा है , फिर भी पीर साहब की  मज़ार  पर दर्शनार्थी बहुत कम है , और हिन्दू भाई - बहिन तो आज दिखाई ही नहीं पड़ रहे हैं। 

- ऐसा क्या , अरे हाँ , याद आया कल एक नेता जी जनता से अपील कर रहे थे कि पीरों की मज़ारो को पूजना बंद करों। 

- इसका मतलब अब हिन्दू भाई - बहिन मज़ारो पर चढ़ावा नहीं चढ़ाएंगे ? अगर ऐसा हुआ तो हमारा तो धंधा ही चौपट हो जायेगा।  ये तो सीधी सीधी रोज़ी रोटी पर लात है। 

- लगता तो ऐसा ही है भाई , अब अगर घर चलाना है  तो अपनी दुकान मंदिर के आगे लगा लो और हाँ ये ढाढ़ी भी कटवा  लेना, वरना  कोई अगरबत्ती भी नहीं खरीदेगा। 

- समझ गया भाई जी , समझ गया , अब मैं अपनी दुकान का नाम भी   ' श्याम ट्रेडर्स ' रखूँगा। 

उनकी बाते सुन कर मन ही मन सोच रहा था  कि रोज़ी रोटी  के लिए लोगो को ईमान तो  बेचते देखा , अब क्या मज़हब भी बिकेगा ?


लेखक - इन्दुकांत आंगिरस 








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