पीर की मज़ार
- " क्या हुआ भाई , मुँह लटकाये क्यों बैठा है ? "
- आज जुम्मा है , फिर भी पीर साहब की मज़ार पर दर्शनार्थी बहुत कम है , और हिन्दू भाई - बहिन तो आज दिखाई ही नहीं पड़ रहे हैं।
- ऐसा क्या , अरे हाँ , याद आया कल एक नेता जी जनता से अपील कर रहे थे कि पीरों की मज़ारो को पूजना बंद करों।
- इसका मतलब अब हिन्दू भाई - बहिन मज़ारो पर चढ़ावा नहीं चढ़ाएंगे ? अगर ऐसा हुआ तो हमारा तो धंधा ही चौपट हो जायेगा। ये तो सीधी सीधी रोज़ी रोटी पर लात है।
- लगता तो ऐसा ही है भाई , अब अगर घर चलाना है तो अपनी दुकान मंदिर के आगे लगा लो और हाँ ये ढाढ़ी भी कटवा लेना, वरना कोई अगरबत्ती भी नहीं खरीदेगा।
- समझ गया भाई जी , समझ गया , अब मैं अपनी दुकान का नाम भी ' श्याम ट्रेडर्स ' रखूँगा।
उनकी बाते सुन कर मन ही मन सोच रहा था कि रोज़ी रोटी के लिए लोगो को ईमान तो बेचते देखा , अब क्या मज़हब भी बिकेगा ?
लेखक - इन्दुकांत आंगिरस
No comments:
Post a Comment