बचपन में
पकड़ा था जो क़लम
शायद करने थे
मुझे रक़म
कुछ तारे , कुछ नज़ारे
चंद फूल और तितलियाँ
कुछ पहाड़ , कुछ झरने
कुछ जंगल , कुछ नदियाँ
एक दर्द भरा गीत
लम्हा भर प्रीत
एक अनजानी छुअन
एक संदल बदन
इक भूली बिसरी आवाज़
इक टूटा हुआ साज़
कुछ ख़ुशी , कुछ ग़म
दास्तां लिख ज़िंदगी की
आज फिर आँख है नम
बचपन में
पकड़ा था जो क़लम.....
कवि - इन्दुकांत आंगिरस
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