Thursday, June 1, 2023

फ़्लैश बैक - चौसर

 चौसर 


महाभारत काल  से चला आ रहा 

चौसर का खेल 

अब विलुप्ति की कगार पर है 

लेकिन मैंने देखा पुरनी दिल्ली  में 

अक्सर लोगो को खेलते चौसर 

फुर्सत में कुछ चौसर - बाज़ 

बिछाते चौसर की बिसात 

फेंकी जाती कौड़ियाँ 

और उन कौड़ियों के हिसाब से ही 

चलते खिलाड़ी अपनी अपनी चाल 

खेल खेला जाता था कौड़ियों से 

पर दांव पर लगती थी बड़ी रकम 

कभी कभी घोड़े वाली पुलिस 

आ जाती थी पकड़ने उन्हें 

हो जाते थे सब तीतर - बितर 

कुछ घंटो बाद फिर 

बिछ जाती थी चौसर की बिसात 

पर अब तो सालो हो गए 

न चौसर रही , न चौसर की बिसात 

और न चौसर - बाज़। 


कवि - इन्दुकांत आंगिरस 













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