लघुकथा - हजामत
- " इतनी बारिश में भी आप हजामत बनवाने आ गए , आइए , बैठिए " - नाई ने ग्राहक से कहा।
- " तुम भी तो बैठे हो बारिश में " - ग्राहक ने जवाब दिया।
- " मजबूरी है बाउजी , यहाँ तो रोज़ कुआ खोदना है , रोज़ पानी पीना है " - नाई ने जुमला उछाला।
- " हाँ , तुम्हारी तो मजबूरी है , लेकिन इस इंद्र देवता की तो कोई मजबूरी नहीं। लोग जब बूँद - बूँद को तरस जाते हैं तो बरसते नहीं और बरसेंगे तो रुकेंगे नहीं , देखो दूर दूर तक पानी ही पानी है। सबकी हजामत कर दी इन्होंने।
-" बिलकुल सही कहा आपने" , नाई ने ठहाका लगाते हुए कहा -" सबसे बड़ा नाई तो ऊपर वाला ही है "।
आपका क्या ख़्याल है , नाई का जुमला सुन कर ऊपर वाला ख़ुश तो ज़रूर हुआ होगा।
लेखक - इन्दुकांत आंगिरस
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