Sunday, June 4, 2023

वसंत का ठहाका - आज़ादी का अमृतोत्सव

 आज़ादी का अमृतोत्सव 


आज़ादी  का   अमृतोत्सव मना रहे हैं हम 

अपनी ढपली इस विश्व को सुना रहे हैं हम 


डिजिटल बन गया इंडिया डिजिटल हुए हम 

रिश्तों की डोर टूटी बस फिज़िकल हुए हम 

कुछ घरों में चूल्हा नहीं जला तो क्या हुआ 

चाँद की बनाई रोटी और मैजिकल हुए हम। 


गाँधी के चश्मे का स्वच्छ भारत हुआ धुंधला 

अंदर वाले ही जाने अब तो अंदर का घपला 

उघडे नाले दिल्ली के औ' हवा भी ज़हरीली  

' स्वच्छ भारत ' बन कर रह गया एक जुमला । 


धर्मों को ईमान अब तो जुबां तक आ गया 

ख़ुदा लिखते लिखते अब ख़ुदा तक आ गया 

गंगा - जमुनी तहज़ीब जब मिली मिटटी में

आँख का बाल सुन , इस बला तक आ गया।   


ख़त कहो तो लिख दूँ मैं सरकार के नाम 

तुम ने जिसे चुना उसी सरदार  के नाम 

कि आज भी अनपढ़ हैं करोड़ों लोग यहाँ 

कुछ पढ़े - लिखे गंवारों किरदार  के नाम। 



कवि - इन्दु कांत आंगिरस

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