एक टूटी बाँसुरी सी जब रो रही थी ज़िंदगी
साज़ सब टूटे हुए थे , गीत सब रूठे हुए थे
तुम से मिल कर यूँ लगा , हाँ तुम से मिल कर यूँ लगा
जैसे दिल को इक तराना ज़िंदगी का मिल गया
लाज के पहरे कड़े थे , नैन पर घूँघट पड़े थे
भूल से नज़रे मिला दी , हँस पड़ी वो खिलखिला दी
तुम से मिल कर यूँ लगा , हाँ तुम से मिल कर यूँ लगा
जैसे दिल को इक बहाना दिल लगी का मिल गया
कोई जादू था नज़र का , रास्ता भूला मैं घर का
एक ख़ुश्बू सी उठी फिर , छाई मस्ती हर तरफ़ फिर
तुम से मिल कर यूँ लगा , हाँ तुम से मिल कर यूँ लगा
जैसे दिल को इक ज़माना आशिक़ी का मिल गया
बुझ चूका था हर चिराग़ , राख़ में भी थी न आग
हर क़दम पर फ़ासले थे, आँसुओं के क़ाफ़िले थे
तुम से मिल कर यूँ लगा , हाँ तुम से मिल कर यूँ लगा
जैसे दिल को इक फ़साना रौशनी का मिल गया
हर तरफ़ तन्हाइयाँ थी , ग़म की ही परछाइयाँ थी
मेरे दिल में यूँ तू आया , ज़र्रा ज़र्रा मुस्कुराया
तुम से मिल कर यूँ लगा , हाँ तुम से मिल कर यूँ लगा
जैसे दिल को इक ख़ज़ाना ज़िंदगी का मिल गया
कवि - इन्दुकांत आंगिरस
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