Sunday, December 8, 2024

Ghazal Lesson - 9

 काफिये को दो भागों में विभाजित कर सकते हैं

1. स्वर क़फ़िया

2. व्यंजन क़ाफ़िया

स्वर क़ाफ़िया

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ऐसे शब्द जिनके अन्त में आ, ई, ऊ, ए, ओ ,ऊ की मात्रा हो यदि इन्हें काफिये के रूप में लिया जाये और इनकी दीर्घ मात्रा का मिलान दूसरे क़ाफ़िया से किया जाये तब  ये काफिये स्वर क़ाफ़िये कहलाते हैं।

स्वर काफिया के प्रकार-

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1. आ मात्रा का क़ाफ़िया-

ऐसा काफिया जिसमें केवल आ मात्रा का तुक निभानी हो जैसे नासिर ज़ैदी साहब का एक शेर देखें-

'फूल सहरा में खिला दे कोई

मैं अकेला हूँ सदा दे कोई'

जिसने चाहा था मुझे पहले पहल

उस सितमगर का पता दे कोई

यहां रदीफ है 'दे कोई'

क़ाफ़िया है खिला ,सदा, पता 

इनमें आ की मात्रा की समानता है और की मात्रा का तुक मिलाया गया है। इसलिए यह स्वर.काफिया है। इससे आगे उठा, सज़ा, बता, भुला, हवा आदि हो सकते हैं जिसमें आ मात्रा की तुकान्तता निभाई जायेगी।

जनाब सईद कैस की एक ग़ज़ल के कुछ शेर देखें


न जाने अपने ही सोचों का कोई ख़ाका है

वो एक शख़्स जो हर वक्त दिल में रहता है


मैं किस ख़याल की ख़ुशबू के दायरे में हूँ

ये कौन है जो मेरे आस पास बिखरा है


तेरी जुदाई भी आती है याद रह रह कर

सफ़र में जब भी कोई रास्ता बदलता है


इस ग़ज़ल में रदीफ है " है" और क़ाफ़िये हैं

ख़ाका, रहता, बिखरा, बदलता

सभी काफिये यदि गौर से देखें तो इनमें केवल आ की मात्रा की समानता है। इसलिए यह आ स्वर का क़ाफ़िया है

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