Monday, December 2, 2024

शहर और जंगल -शहर और जंगल

 

शहर और जंगल

 

एक शहर और जंगल में

बुनियादी  फर्क बस इतना है कि

झरनें

यूँ ही फूट पड़ते हैं जंगल में

और शहर आकर

क़ैद हो जाते हैं

पीतल के नलों में

 

हवा

यूँ ही तैरती फिरती है

पेड़ों की शाख़ों पर

और शहर आकर

क़ैद हो जाती है

सीलन भरी तंग कपठरियों में

 

जानवर

घुमते हैं जंगल में नंगे

और शहर आकर

ओढ़ लेते हैं लिबास

 

जंगल में

बिना तालीम के

आ जाता है सलीक़ा

और शहर में

बड़ी - बड़ी डिग्रियाँ  ले कर भी

लोग रह जाते हैं

बेअदब

जंगल के जानवर

बाँट लेते हैं दर्द

अपनी गूँगी बहरी भाषा में

और शहर में

लम्बी लम्बी ज़बान

और बड़े बड़े कान

लगाकर भी

नहीं गिरा पाते

छोटी -छोटी दीवारें

 

एक जंगल तो शहर बन सकता है

पर शहर जंगल नहीं

यों जंगल जंगल ही रहे

तो बेहतर है

झरनें  यों ही बहते रहें

तो बेहतर है

यूँ  ही गूँजते रहे नग़में फ़िज़ाओं में

यूँ  ही थिरकती रहें चाँद की किरणें

बेहतर है

यूँ  ही हर सुबह

उगते रहें फूल

इस गूँगी बहरी ज़मीन में।    

*

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