Wednesday, December 18, 2024

लघुकथा - गुमशुदा

 गुमशुदा 


दूर दराज़ गाँव से , हाँ एक ऐसे गाँव से जहाँ आज भी बिजली नहीं  ,टेलीविज़न नहीं , रेडियो नहीं , अख़बार नहीं और फोन भी नहीं,  जब  तीन दिन रेल से सफ़र कर राम गोपाल दिल्ली स्टेशन पर ट्रेन से उतरे तो उनका बेटा निखिल प्लेटफार्म पर उनकी प्रतीक्षा कर रहा था। दिल्ली के रेलवे स्टेशन  पर भीड़ भाड़ देख कर राम गोपाल कुछ पलों को नर्वस हो गए लेकिन निखिल ने मजबूती से उनका हाथ पकड़ा और तीर की तरह स्टेशन से बाहर आ गए। निखिल ने एक ऑटो किया और अपने पिता के साथ घर के लिए रवाना हो गया। दिल्ली की सड़कों पर ऑटो दौड़ रहा था। राम गोपाल हैरानी से भागती दुनिया को देख रहे थे। तभी उनकी निगाह बस स्टैंड पर पड़ी , जहाँ देश के प्रधानमंत्री की फोटो का विज्ञापन चमक रहा था।  हर आधे फर्लांग पर वही चेहरा - भारत का प्रधानमंत्री। राम गोपाल ने बड़ी सादगी से अपने बेटे  से पूछा ," बेटा ये व्यक्ति कौन है जिसकी तस्वीरों से सड़कें  भरी हुई है ? निखिल ने उतनी ही सादगी से जवाब दिया ," बाऊजी  , ये एक गुमशुदा अमीर बुजुर्ग  की तस्वीर है जिसे देश का बच्चा बच्चा ढूँढ़ने में लगा है। निखिल का जवाब सुन कर राम गोपाल को कुछ हैरानी हुई और वह होंठों ही होंठों में बुदबुदा उठा -" अफ़सोस , लोग इस उम्र में भी खो जाते हैं "। 


लेखक - इन्दुकांत आंगिरस

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