Sunday, December 8, 2024

शहर और जंगल - क़ब्रिस्तान

 क़ब्रिस्तान 


हर बड़े शहर में 

एक क़ब्रिस्तान होता है 

जहाँ हर रात 

कुछ लाशें ज़िंदा होती हैं 

फिर बाज़ार लगता है 

दुकाने सजाई जाती है 

क़ीमत देकर उतारा जाता है 

एक टुकड़ा माँस 

शेष रह जाती है मुर्दा साँस 

अगली रात तक के लिए 

उन लाशों को 

दफना दिया जाता है , फिर 

कुछ पलों को 

मिलती है राहत ,फिर 

सजाई जाती हैं दुकानें 

बॉलकनी पर फीकी मुस्कानें 

ये ख़ूबसूरत बाज़ार 

ऐसे ही लगते रहेंगे 

जब तक बंद नहीं होगा 

इन ज़िंदा लाशों का दफ़नाना 

जब तक कोई 

सूरज न उगेगा 

सुबह से पहले 

किसी अँधेरी रात में 

तोड़ कर ज़ुल्म का तहख़ाना। 


कवि - इन्दुकांत आंगिरस    

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