तमाशा
दो बिल्लियों के झगडे से
फ़ायदा उठाने वाले
बन्दर आज भी हैं
मेंढकों की टर्र - टर्र सुनने वाले
लोग आज भी हैं
विवेक आज भी
किसी तहख़ाने में क़ैद है
किसी मदारी के सम्मोहन से
हम आज भी सम्मोहित हैं
पर मदारी
यह कभी नहीं जान पाता
कि सड़क के उस पार खड़े
तमाशबीन के लिए
वह स्वयं
महज़ एक तमाशा है।
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