नाव और चुनाव
चुनाव ,
या'नी चुनिए
अपनी अपनी नाव
यह वाहे गुरु की नाव है
वह जीसस की नाव है
इधर राम की नाव है
उधर मोहम्मद की नाव है
यह मालिकों की नाव है
वह मज़दूरों की नाव है
क्या कहा ?
इन नावों में नहीं बैठेंगे आप ?
तो फिर आपके लिए
आरक्षित नाव भी है जनाब
उसमे भी नहीं बैठेंगे ?
क्या कहा ?
आपको हिन्दोस्तानी नाव चाहिए
जो लगा सके आपको उस पार
क्षमा करें ,
ऐसी नाव हमारे पास नहीं है
उसका निर्माण अभी ज़ारी है
सामग्री उपलब्ध नहीं है अभी
कम है इंसानियत
नहीं है स्नेह
नहीं है प्यार
कर सकते हैं
तो तब तक कीजिए इन्तिज़ार।
कवि - इन्दुकांत आंगिरस
No comments:
Post a Comment