Thursday, December 5, 2024

शहर और जंगल - एक सर्द रात

 एक सर्द रात 


एक सर्द रात ,

किस चौराहे पे खड़े जेबकतरे की 

पैनी निगाहें , एक मासूम शिकार पर 

गईं जम,

तंग सीलन भरे कमरे में,

बूढी माँ तोड़ती रही दम,

एक सर्द रात 

किसी रेस्तरॉं में गर्म कॉफी,

सिगरेट का धुआँ      

राजनीति पर बहस चलती रही 

दो नन्हीं हथेलियाँ

ठन्डे पानी में गलती रहीं ..गलती रहीं 

एक सर्द रात 

शराब की बोतल में 

ताजमहल बन बन कर ढहते रहे 

हमने सुनी , सब अपनी कहते रहे 

बैसाखियाँ चढ़ती रहीं

कुछ सीढ़ियाँ  रात भर 

गूँगे गाते रहे रात भर 

बहरे सुनते रहे रात  भर 

एक सर्द रात !

कितने अजीब लगते हैं 

इस नंगे शहर में 

ये ढँके हुए आदमी 

इस पागल शहर में 

ये थके हुए आदमी। 

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