कचौरी
कटरा गोकुल शाह के
नुक्कड़ पर
वो कचौरी वाला
मुझे आज भी याद है
एक इकन्नी में दो कचौरी
साथ में मज़ेदार आलू की सब्ज़ी
दोने में मिलती ,
दो कचौरी से
कभी नियत नहीं भरती
फिर दो कचौरी और खाई जाती
जब भी घर आता कोई मेहमान
कचौरियों से की जाती
उसकी ख़ातिरदारी
उन कचौरियों की ख़ुश्बू
और आलू की सब्ज़ी का ज़ाइक़ा
मुँह से गया ही नहीं कभी।
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