मेरे नाना
दिल्ली में
पहली ख़राद मशीन लगाने वाले
लाला जयदयाल यानी मेरे नाना
अजमेरी गेट पर था जिनका कारख़ाना
दिल्ली के रईसों में शुमार
था जिनका नाम
सन १९४० में जिनके पास थी
घोड़ों वाली बग्घी और
मोटर-कार
इंडिया गेट की सैर को जाता
था परिवार
अब हो चुके थे कंगाल
और घर की छत पर बनी दुछत्ती
में
कर रहे थे निवास
गली के बरमे से भर कर लाता
था
उनके लिए सुराही में ठंडा
पानी
बहुत दर्द भरी थी उनकी कहानी
अब भी कभी कभी अपनी
बेंतनुमा स्टिक
और टोपी पहन निकलते थे
बाज़ार
और लाते थे खजूर
अब कोई नहीं कहता उन्हें हुज़ूर?
बिक गयी थी हौज़काज़ी की
दुकानें
बिक गया था कारख़ाना
नाना भूल गए थे मुस्कुराना
मुझे आज भी सोच कर आश्चर्य
होता है
कि कैसे दिल्ली का एक रईस
हो गया था गुमनाम
अब किसी को याद नहीं उनका नाम।
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