Thursday, September 12, 2024

' राम का अंतर्द्वंद ' लघु खंड काव्य - एक नज़र

 ' राम का अंतर्द्वंद ' लघु खंड काव्य  - एक नज़र 


' राम का अंतर्द्वंद '  लघु खंड काव्य के रचनाकार डॉ विनय कुमार सिंघल ' निश्छल ' मेरे बहुत घनिष्ठ मित्र हैं। ५१ छंदों का यह लघु खंड काव्य  विलक्षण है।  कवि ने राम के अंतर्मन के अंतर्द्वंद को इतनी सूक्ष्मता से उजागर किया है कि  शब्द किसी चलचित्र की भांति  आँखों के सामने तैरने लगते हैं। सहज और सरल शब्दों  में लिखा  गया यह खंड काव्य  कवि  के  समर्पण  ' भगवान् श्री राम के मनुष्य रूप को समर्पित  खंड काव्य ' के कारण  भी विशिष्ट बन पड़ा है।  अनेक राम कथाओं में मर्यादा परुषोत्तम श्री राम के देवता रूप का वर्णन तो देखने को मिलता है लेकिन एक साधारण मनुष्य के रूप में  श्री राम  की संवेदनाओं  को शब्दों में पिरोना बिलकुल वैसा ही है जैसे कोई रेगिस्तान की तपती  धरती को अपने आँसुओं से गीला कर दे। 


द्वन्द का घन  ,कभी न छाता 

यदि मैं यूँ , वनवास न पाता


श्री राम को अगर वनवास न मिला होता तो उनके अंतर्मन में अंतर्द्वंद की लहरें कभी न उठती। पत्नी सीता और अनुज लक्ष्मण को  वो अपने साथ चलने से रोक न पाए। श्री राम को सदैव इस बात का क्षोभ रहा कि उनके वनवास के कारण पत्नी सीता और अनुज लक्ष्मण को भी कष्ट सहना पड़ रहा है।  उन्हें रह रह कर  रावण द्वारा  सीता के हरण का पछतावा होता है। इसी खंड काव्य से ये पंक्तियाँ देखें - 


स्वर्ण -मृग ने छला  तुम्हें भी 

क्या घर में कोई छल पाता 

रह रह कर पछताते होंगे 

क्या घर तक रावण आ पाता 


उर्मिला और लक्ष्मण के विरह के लिए भी वे स्वयं को दोषी मानते है। अगर उन्हें वनवास न मिला होता  तो उन्हें वन न जाना पड़ता और लक्ष्मण को उनकी देख - रेख और रक्षा के लिए  उनके साथ वन में न रहना पड़ता । उर्मिला के मन की पीड़ा को कवि ने सुन्दर शब्दों में कुछ यूँ पिरोया है -


उर्मिल का आनन भीगा था 

यदि तुमने तब झाँका  होता 

लखन विरही न बनते ऐसे 

उर्मिल का दुःख आँका होता  



उन्हें  अयोध्या में रह रहे अनुज भरत और शत्रुघन की भी चिंता है।  श्री राम ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण अपना दायित्व समझते है और वन में रहते हुए भी उन्हें  राज - काज और अपने छोटे भाइयों की चिंता सताती रहती है। इसी खंड काव्य से - 


चिंता होगी , कही शत्रुघन 

और भरत क्या लड़ते होंगे 

राज - काज की कठिन डगर पर 

क्या संयम से , बढ़ते होंगे ?


उन्हें अपनी माता कौशल्या , सुमित्रा और   कैकेयी की  याद भी सताती है। उनके मन में माँ कैकेयी के प्रति कोई द्वेष की भावना नहीं है अपितु वो उनके दुःख से पीड़ित है।


कौशल्या माँ और सुमित्रा 

पुत्र - वियोग में गलती होंगी 

कैकेयी की , चिंता भी तो 

हिय तुम्हारें , पलती होगी 


इस अद्भुत रचना के सृजन  के लिए डॉ विनय कुमार सिंघल ' निश्छल ' बधाई के पात्र हैं। माँ सरस्वती और श्री राम की कृपा से वे इस अभूतपूर्व लघु खंड काव्य  ' राम का अंतर्द्वंद ' को पूर्ण करने में सफल हुए। इतने बड़े फ़लक की कहानी को ५१ सहज और सरल छंदों के माध्यम से जन जन तक  पहुँचाने के लिए हिन्दी साहित्य संसार सदैव  डॉ विनय कुमार सिंघल ' निश्छल ' का  आभारी रहेगी।  मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि   ' राम का अंतर्द्वंद '  लघु खंड काव्य हिन्दी साहित्य जगत  में नए प्रतिमान स्थापित कर पाने अवश्य सफल होगा। 



 इन्दुकांत आंगिरस 

बी - ४ / १७७ 

सफदरजंग एन्क्लेव 

नई दिल्ली  - ११००२९

मोबाइल - 9900297891

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