Friday, September 27, 2024

लघु कथा - रंगीन सर्टिफिकेट

 लघु कथा - रंगीन सर्टिफिकेट 


- " अरे भाई ! मुँह लटकाये क्यों बैठें हो , अब तो तुम्हारी लघुकथा अंतर्राष्ट्रीय लघुकथा संग्रह में प्रकाशित हो गयी है , इंटरनेशनल  लेखक बन गए हो , तुम्हे तो खुश होना चाहिए और तुम मुँह लटकाये बैठे हो , क्या बात है ?  " रमेश ने अपने साहित्यिक मित्र आनंद से चुटकी ली । 

- " अरे यार , लघुकथा तो प्रकाशित हो गयी लेकिन सम्पादक जोकि प्रकाशक भी हैं  किताब की एक प्रति भी ख़रीदने के पैसे मांग रहे है। " आनंद ने कहा। 

-" पैसे मांग रहे हैं , मतलब लेखक का पारिश्रमिक तो दूर रहा उलटे लेखक से ही पैसा मांग रहे है , लगता है प्रकाशक ग़रीब है। " रमेश ने जुमला उछाला। 

- " अरे ग़रीब नहीं है यार , अमेरिका में बैठे है प्रकाशक  जी  लेकिन है तो आगरा के सेठ जी  , अपना बनियापन तो छोड़ने से रहे।  पहले अँगरेज़ लूटते थे भारतीयों को अब प्रवासी भारतीय ही लूट रहे हैं हमको। और तो और  .. जो लेखक पुस्तक की प्रति नहीं ख़रीदेगा उसे रंगीन सर्टिफिकेट भी नहीं मिलेगा। " आनंद ने मायूसी से कहा। 

- " अरे छोड़ो यार ! तुम्हें सर्टिफिकेट की क्या ज़रूरत है। मीर तक़ी मीर का ये शे'र सुनो -

' मेरी क़द्र क्या इनके कुछ हाथ है 

   जो रुतबा  है मेरा  मेरे  साथ है  "'

" भई वाह वाह , क्या कहने है...दोस्त हो तो तुम्हारे जैसा , दिल ख़ुश  कर दिया यार  "  आनंद ने मायूसी की चादर उतार फेंकी और  बढ़ कर अपने दोस्त  को गले लगा लिया। 


लेखक - इन्दुकांत आंगिरस 

-----------------------------------------------------------------------------------------------

सही है लघु कथा। सराहनीय। - प्रमोद झा 

------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

रंगीन सर्टिफिकेट,, वस्तुत: उम्दा रचना है। -  ईश्वर चंद मिश्रा  

------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

नमस्कार सर 

असल में सत्य से सब घबराते हैं पर सच कहां छुपता है -  शाहना परवीन 

------------------------------------------------------------------------------------------------

लगता है तीर ज्यादा गहरा लगा  - Bidalia

-------------------------------------------------------------------------------------------------------

आदरणीय  एक  कहावत  है बिल्ली के भागो छींक टूटा। आप  को पटल से निकलने के बाद  आप  जैसे कलम के धनी के तने की grafting से अनेकानेक  इंदु कांत    चमत्कार  करेगे।ऊषासूद  कुछ  गलत बात हो तो🙏ऊषासूद

------------------------------------------------------------------------------------------------

सादर प्रणाम 🙏

आदरणीय मैं आप से ज्ञान, बुद्धि और अनुभव मआनी हर लिहाज़ में बहुत छोटी हूँ। पर आपको अपने मित्रों से उनके मत की अपेक्षा है तो इसीलिए अपने विचार रखने की हिम्मत कर रही हूँ। आप ने स्वयं भी आत्म मंथन किया होगा कि ऐसा क्यूँ हो रहा है। मेरी समझ के हिसाब से मैंने पहले भी आप को यही कहा था कि हमें किसी सार्वजनिक लेख में जाति, धर्म या कोई भी वर्ग विशेष को प्रयोग में नहीं लाना चाहिए। मेरी सोच के अनुसार अगर हमारी किसी बात से किसी एक इंसान के भी मनोभावों को क्षति पहुँचती है तो वह भगवान को भी मंज़ूर नहीं होगा। जो दिल से माफ़ी माँगने पर सब भुला देते हैं। तो हम तो इस मोह-माया, छल-कपट से युक्त संसार में रहते हैं। जहाँ किसी को सच्ची बात भी नागवार होती है। आप के लेखों में बहुत सुन्दर और बेहतरीन कन्टेंट होता है बस आप इस एक चीज़ से बचें। आज फिर आप से कह रही हूँ कि यदि कोई बात आप को ग़लत लगे तो क्षमा प्रार्थी हूँ।

- Madhubaala 

-----------------------------------------------------------------------------------------------------

साहित्यिक क्षेत्र में आजकल जो चल रहा है उसी नपर आधारित ये लघुकथा लिखी गई है।  डिलीट करना या ग्रुप से रिमूव करना  तो सच्चाई से मुँह छिपाने वाली बात है। हाँ इसमें जो जाति विशेष को  इंगित किया गया है वह किसी की भावना को ठेस पहुंचा सकता है। लेकिन ये इतनी बड़ी बात नहीं है कि डिलीट कि जाए 

-Anjali Goyal 

----------------------------------------------------------------------------------------------

इन्दुकान्त जी ! क्या कहने !!  - Vigyan Vrat 

------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

आपने सीधा वार किया है और उम्मीद करते हैं कि आपको जोड़े रहे! 😂

मेरी लघुकथा उसमें है पर मैने पैसे नहीं भेजे बल्कि उस ग्रुप से ही बाहर आ गयी।

- Girija Kulshresht 

-----------------------------------------------------------------------------------------------------------

आपने सच्चाई लिखी है। शुद्ध यथार्थ  - Anita Panda 

-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

आदरणीय सादर प्रणाम। 

आपकी लघुकथा आज के समय की सच्चाई प्रस्तुत कर रही है। परंतु कुछ लोगों को सच सुनना अच्छा नहीं लगता। शोषण किसी न किसी रूप में हमारे समाज का हिस्सा रहा है। मेहनतकश व्यक्ति सदैव शोषित होता रहा है। परन्तु फिर भी हमें अपने काम में लगे रहना चाहिए। व्यक्ति को मेहनत का सही प्रतिफल तो ईश्वर से ही मिलता है। इसलिए हमें अपना कर्म करते रहना चाहिए। रही बात लूटने वालों की तो उनके लिए नदीम शाद साहब का एक शे'र पेश करना चाहता हूं।


जाने किसका हक दबाकर घर में दौलत लाए हो,

और उस पर ये सितम उसमें भी बरकत चाहिए।

_Sharwan Kumar Verma 

----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

सटीक लेखन आप को बहुत बधाई - Mitra Sharma

-----------------------------------------------------------------------------------------------------------

ऐसा करना सही नहीं है। Anjana Verma 

--------------------------------------------------------------------------------------------

Bahut khoob 👌 

    Meaningful and relatable. - Gurpreet Gul 

------------------------------------------------------------------------------------------------------------------


No comments:

Post a Comment