गुल्लक
बचपन की गुल्लक
अक्सर भरने से पहले ही
फोड़ दी जाती थी
कभी पतंगों
और
कभी मांजे के लिए
आज बैंक के खाते में
लाखों रुपए हैं
ज़रूरत पड़ने पर
खर्च भी किये जाते हैं
लेकिन जो सुख
बचपन में
मिटटी की गुल्लक
को फोड़ कर
उन सिक्कों को गिनने में
और फिर उनसे
पतंग और मांजा
ख़रीदने में मिलता था
वैसा सुख
आज हज़ारों रूपये की
शॉपिंग के बाद भी
नहीं मिलता।
कवि - इन्दुकांत आंगिरस
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