Saturday, September 14, 2024

फ़्लैश बैक - रौशन दी हट्टी

 रौशन दी हट्टी 


रौशन दी हट्टी 

मेरे लिए 

किसी जादूनगरी से कम नहीं थी 

जहाँ रंग - बिरंगी 

किती ही तरह की  टॉफ़ियाँ  

चॉकलेट , लॉलीपॉप्स 

गोलियाँ 

रंग - बिरंगें  काग़ज़ों 

और 

पन्नियों में लिपटी 

खिलखिलाती रहतीं 

और मैं अपने 

स्कूल के ताँगे मैं 

बैठने से पहले रोज़   

१०- २० पैसे की 

मिठाई की गोली 

उससे  ख़रीदता 

और ख़ुशी ख़ुशी 

अपने ताँगे मैं सवार होता ,

आज बरसों बाद 

रौशन दी हट्टी के

 सामने खड़ा हूँ 

गोरा - चिट्टा दूकान का मालिक 

अब हो गे है बूढा 

शायद उसने मुझे नहीं पहचाना 

मैंने अपने मनपसंद 

कई तरह की 

मिठाई की गोलियाँ उससे ख़रीदी 

और रामलीला ग्राउंड मैं जा कर 

गुल्ली - डंडा और क्रिकेट खेलते 

बहुत से बच्चों मैं बाँट दी ,

मिठाई की गोलियाँ 

अपने - अपने मुँह मैं डाल 

बच्चें ख़ुशी ख़ुशी रम गए 

फिर से अपने अपने खेल मैं 

,मैं वही बैठे सूरज डूबने तक 

देखता रहा उनका खेल 

और 

उनके खिलखिलाते चेहरे ,

ज़मीन पर बिखरी 

रंग - बिरंगी पन्नियों मैं 

जगमगा उठी थीं 

मेरे बचपन की अनगिनत यादें। 


कवि - इन्दुकांत आंगिरस 


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