महाबल मलया सुंदरी
चरित्र महाकाव्य के रचनाकार श्रमण स्वामी सागरमल
जी और मुनि स्वामी मणिलाल जी हैं।
महाबल मलया सुंदरी
चरित्र महाकाव्य के रचनाकार श्रमण स्वामी सागरमल
जी और मुनि स्वामी मणिलाल जी हैं। महाकाव्य
का आरम्भ मंगल आमुख से होता है जिसमें दोहो का माध्यम से मंगलाचरण किया गया है।
महाबल मलया सुंदरी
आख्यान गीतिका के रचनाकार श्रमण स्वामी सागरमल
जी और मुनि स्वामी मणिलाल जी हैं।महाबल मलया
सुंदरी एक प्राचीन कथा है जिसको इन लेखकों ने संयिक्त रूप से एक काव्यात्मक आख्यान
के रूप में रचा है इसलिए इसको आख्यान
गीतिका कहा जा सकता है। आख्यान अर्थात एक कथा
जो पाठकों से संवाद करती है और जब यह संवाद काव्य रूप
में किया जाता है तो आख्यान गीतिका बन जाता है। कसी भी कथा का काव्य रूप उस कथा से
भी अधिक महत्वपूर्ण बन पड़ता है क्योंकि काव्य श्रेष्ठतम कला है जो मनुष्य को अपार आनंद
प्रदान करती है। आनंद क्यों और कैसे मिलता है ? किसी भी कलाकृति में कलाकार
की अनुभूति का आनंद परिव्याप्त रहता है। महाकवि भवभूति के शब्दों में -" मैं उस
वाणी की वंदना करता हूँ , जिस में आत्मा की कला अमृत रूप से विद्यमान है।"
विश्वकवि रबीन्द्रनाथ टैगोर के अनुसार , " कला में कलाकार अपने
को अभिव्यक्त करता है "। जैन परम्परा में ७२ कलाओं का वर्णन किया गया है , जिस में " काव्यकरण " अर्थात काव्य रचना को भी एक कला के रूप में मान्यता
प्रदान की गयी है।
“ साहित्यसंगीतकलाविहीन: साक्षात्
पशु: पुच्छविषाणहीन: । तॄणं न खादन्नपि जीवमान: तद्भागधेयं परमं पशूनाम् ॥" अर्थात
- "जिस व्यक्ति की साहित्य,
कला अथवा संगीत में रूची नहीं
है, वह तो केवल पूँछ तथा सींग रहित पशु के समान है ।
साहित्य और कला के आभाव में किसी सभ्य समाज की कल्पना संभव नहीं है। साहित्य का अर्थ यह नहीं कि जो कुछ भी लिख दिया जाये वो साहित्य है। वस्तुतः हृदय कि गहनतम अनुभूतियों की अभिव्यक्ति ही साहित्य होता है और काव्य उस का श्रेष्ठतम रूप है। इस में कोई दो राय नहीं कि हृदय की सच्चाई के बिना किसी भी सजीव साहित्य की रचना संभव नहीं लेकिन साहित्य की रचना के लिए भाषा का सही ज्ञान बहुत ज़रूरी है। अगर संवेदनाएं साहित्य की आत्मा हैं तो भाषा को साहित्य का शरीर कहा जा सकता है । भाषा और काव्य के सम्बन्ध में आचार्य भामह ने अपने ग्रन्थ ' काव्यालंकार ' में कहा है -" रिसा कोई शब्द नहीं है , ऐसा कोई वाक्य नहीं , ऐसी कोई विद्या नहीं और ऐसी कोई कला नहीं जो काव्य का अंग हो कर न आये। कवि का दायित्व कितना महान है। काव्य अंगी है , कला उसका एक अंग है। " डॉ भगीरथ मिश्र के शब्दों में - " कवि से का ज्ञाता , सौंदर्य का सृष्टा और रहस्य का वक्ता है। " श्री महावीर प्रसाद द्विवेदी ' ज्ञान राशि के संचित कोष ' को साहित्य बताते हैं। मुंशी प्रेमचंद " साहित्य को जीवन की आलोचना ' कहते हैं। ' चिंतामणि ' के लेखक आचार्य श्री रामचंद्र शुक्ल के शब्दों में , " सत्वोद्रेक या हृदय की मुक्तावस्था के लिए किया हुआ शब्द - विधान काव्य है । श्री हज़ारीप्रसाद द्विवेदी के शब्दों में - " सच्चा साहित्यकार वह है जो दुःख , अवसाद और कष्ट के भीतर से उस मनुष्य करे जो परिस्तिथितयों से जूझ कर अपना रास्ता साफ़ कर सके। "
इस दृष्टि से साहित्य
के तीन मुख्य लक्ष्य स्पष्ट होते हैं - स्थाईत्व , व्यक्तित्व का प्रतिपादन , एवं रागात्मकता। ' हित सन्निहित साहित्यम ' - हित का साधन करना। ' सहित रसेन युक्तं तस्य भाव साहित्यम ' - मानव वृतियों को तृप्त
करना व ' अवहिन्त मनसा महर्षिभिः तत
साहित्यम ' मानव मनोवृतियों को परिष्कृत
करना। उपरोक्त गुणों से युक्त रचना काव्य है , साहित्य है और इस कसौटी पर
' महाबल मलया सुंदरी '
एक शेष्ट साहित्यिक कृति है।
भाषा विचारों के आदान
- प्रदान का एक सशक्त माध्यम है ;
समझने का , समझाने का , अनुभूतियों ,चिंतन , भावनाओं की तरंगों से पाठकों को प्रभावित करने का। साझा आख्यान गीतिका ' महाबल मलया सुंदरी ' में अनुभूतियों के इंद्रधनुषी रंगों , सप्त स्वरों को जिस भाषा में अभिव्यक्त करने का प्रयत्न किया गया है उस में एक
स्थिरता है , एक गति है , एक मिठास है , एक प्रेरणा है , एक रवानी है। श्रमण स्वामी सागरमल जी और मुनि स्वामी मणिलाल जी द्वारा रचित इस आख्यान गीतिका की भाषा
अत्यंत सहज और सरल है जिसे आम पाठक निश्चय ही आसानी से समझ लेगा और तत्कालिक सम्प्रेषणता
किसी भी साहित्यिक ग्रन्थ की सफलता की महत्वपूर्ण विशेषता होती है। इस इस ग्रन्थ में दोहा छंद के अलावा दूसरे दीगर छंदों का
भी प्रयोग किया गया है जिनमें विशेष रूप से गीतक छंद , रामायण छंद , सहनाणी छंद , राधेश्याम छंद और चौपाई विशेष रूप से
उल्लेखनीय हैं।
'महाबल मलया सुंदरी गीतिका
काव्य को विभिन्न खण्डों में विभाजित किया
गया हैं और प्रत्येक खंड का शीर्षक उस खंड की कथानुसार दिया गया है। ' तुलसी प्रिय -मंगल आमुख ' , ' रमता योगी ', ' झूठा सच ' , ' प्रेत का पंजा ' , ' रखना रामकड़ा ' , ' चमकता सितारा ' , ' खतरे की घंटी ' , उफणती लहरें ' और ' एक और विपत्ति
' इस आख्यान गीतिका
काव्य के प्रमुख खंड हैं। प्रथम खंड ' तुलसी प्रिय - मंगल आमुख ' का निम्नलिखित
दोहा देखें -
सुनकर श्रोताओं करो
, करणी दे कर चित्त।।
( महाबल मलया सुंदरी
मंगल आमुख - दोहा संख्या - 7 )
इस से पूर्व कि इस भूमिका को आगे बढ़ाया जाये मैं चाहूँगा कि ' महाबल मलया सुंदरी ' आख्यान यानी इस की कथा संक्षेप में साझा कर दूँ जिस से कि पाठक ग्रन्थ का अधिक आनंद उठा सकें। ' महाबल मलया सुंदरी ' कि कथा कुछ इस प्रकार है -
प्राचीन समय की बात है चंद्रावती राज्य के राजा वीर धवल के दो रानियां थीं - चम्पकमाला और कनकमाला। दुर्भाग्य से उनकी कोई संतान नहीं थी। इसी दुःख में एक दिन चम्पकमाला का देहांत हो जाता है। राजा वीर धवल निश्चय करता है कि वह रानी के साथ सती हो जायेगा। जब अगले दिन राजा , रानी चम्पकमाल का दाहसंस्कार करने लगता है तभी नदी किनारे एक लकड़ी का संदूक आता है। संदूक खोलने पर उस में रानी चम्पकमाला मिलती है। सब आश्चर्य से चित को देखते हैं जहाँ से रानी की देह धुआं बन कर उड़ चुकी होती हैं। रानी चम्पकमाला बताती हैं कि किस तरह उस का अपहरण कर लिया गया था और किस तरह जेल में उसे चक्रवेश्वरी माता ने लक्ष्मीपुंज हार दिया और संतान पाने का वरदान भी। कुछ समय बाद रानी चम्पकमाला ने एक पुत्र और पुत्री को जन्म दिया। पुत्र का नाम मलया केतू और पुत्री का नाम मलया सुंदरी रखा गया। उसी समय वहां से काफी दूरी पर नगरी कुश वर्धन के राजा सूरपाल थे। राजा सूरपाल और राजा वीरधवल घनिष्ट मित्र थें। राजा सूरपाल के पुत्र का नाम महाबल था। राजा सूरपाल के दो पुत्र हैं , जयचंद और विजयचन्द। राजा जयचंद को अपना उत्तराधिकारी बना देते हैं। इसके चलते विजयचन्द राज्य छोड़कर जंगल में चला जाता हैं । वहाँ जंगल में विजयचन्द को गूदड़ी में लिप्त एक बाबा मिला। उस बाबा ने विजयचन्द को गुप्त विद्या प्रदान करी। और एक योगी बन जाता है। जिन दिनों चंद्रावती में वीर धवल राजा थे , उन दिनों प्रस्थान पुर के नरेश सूरपाल थे। एक बार नरेश सूरपाल अपने मित्र राजा वीर धवल के लिए कुछ उपहार भेजते है। ये उपहार राजा सूरपाल के मंत्री और महाबल ले कर जाते हैं। उपहार पाने के बाद जब राजा वीर धवल मंत्री से महाबल के बारे में पूछते हैं तो मंत्री कह देता हैं कि वे उस का सेह कर्मचारी हैं। वहाँ महाबल , मलया सुंदरी को देखता हैं। दोनों एक दूसरे को देखते हैं और एक दूसरे से प्रेम कर बैठते हैं। रात के महाबल , मलया सुंदरी के शयन कक्ष में जाता है और मलया सुंदरी महाबल के गले में लक्ष्मिपुंज हार डाल देती है। छोटी रानी कनकमाला इसकी शिकायत राजा से कर देती है। राजा तत्काल देखने आता है लेकिन तब तक महाबल अपनी शक्ति से स्वयं को चम्पकमाला रानी में तब्दील कर लेता है। कक्ष में मलया सुंदरी को उस की माँ के साथ देख कर राजा छोटी रानी कनकमाला पर क्रोधित होता है और उसे महल से निकाल देता है। छोटी रानी कनकमाला ईर्ष्या से जल उठती और उनको बर्बाद करने के मंसूबे बनाने लगती है। वह मलया सुंदरी पर लक्ष्मी पुंज हार के चोरी इलज़ाम लगाती है। राजा वीर धवल अपनी पुत्री मलया सुंदरी को मौत की सज़ा सुनाता है । राजा वीर धवल अपनी पुत्री मलया सुंदरी को मौत की सज़ा सुनाता है । पहरेदार सैनिक मलया सुंदरी को मारते नहीं और उसे जल समाधि लेने की इजाज़त देते है।
दो दिन बाद मलया सुंदरी का स्वयंवर था और इस दुःख से राजा वीरधवल अपनी पत्नी रानी चम्पकमाला के साथ आत्महत्या करना चाहते है लेकिन महाबल एक ज्योतषी के भेस में राजा के पास आता है और बताता है कि माल्या सुंदरी ज़िंदा है और स्वयंवर वाले दिन वह महल के मुख्य द्वार के बाहर एक संदूक में मिलेगी। जो कोई भी उस संदूक को खोलेगा वह उसी को वर लेगी। सब कुछ ज्योतिषी के अनुसार ही होता है। महाबल एक योगी के भेस में आता है और उसकी आवाज़ सुन कर मलया सुंदरी संदूक खोल देती है। दोनों का शुभ विवाह संपन्न हो जाता है। कुछ समय बाद महाबल को युद्ध में जाना पड़ता है। कनकमाला अभी भी उनका अहित चाहती है। महाबल के युद्ध में जाने के बाद कनकमाला राजा सूरपाल को भड़काती है कि रानी मलया सुंदरी एक पिशाचनी है और उसी के कारण राज्य में प्लेग फैला हुआ है। रात को कनकमाला स्वयं पिशाचनी बन कर नाचती है और राजा को उस कि बात पर विशवास हो जाता है। राजा सूरपाल उसी वक़्त मलया सुंदरी को जंगल में मारने के लिए भेज देते है। सैनिक उसे मारते नहीं क्योकि वह गर्भ से होती है लेकिन उसे घने जंगल में छोड़ देते है। जंगल में एक शेर उस कि रक्षा करता है और वह एक पुत्र को जन्म देती है। उधर जब महाबल वापिस अपनी राजधानी लौटता है। जब उसे पता चलता है कि मलया सुंदरी के मार दिया गया है तो वह बहुत दुखी होता है। महाबल सच्चाई का पता लगता है तो पता चलता है कि वास्तव में कनकमाला असली पिशाचनी थी। राजा सूरपाल को भी पछतावा होता है। एक ज्योतिषी महाबल को बताता है कि मलया सुंदरी ज़िंदा और एक साल बाद मिलेगी। उधर जंगल में मलया सुंदरी बहुत कष्ट उठती है। एक व्यापारी उसके पुत्र को उस से चीन लेता है। उस पर बहुत दबाव पड़ता है लेकिन मलया सुंदरी अपने स्त्रीत्व का सौदा नहीं करती। यहां तक कि अपना शील बचने के लिए वह अपने पुत्र को भी भूल जाती है। उसके बाद तिलकनगर का राजा कंदर्प देव मलया सुंदरी को कई प्रकार कि यातनाये देता है। अंत में महाबल उस को राजा कंदर्प देव के चंगुल से छुड़ाता है। राजा कंदर्प देव आग में भस्म हो जाता है। महाबल तिलकनगर का राजा बन जाता है। उसके पिता और ससुर उस से युद्ध करने आते है लेकिन जब उन्हें पता चलता है कि वह तो महाबल उनका पुत्र है तो युद्ध बंद हो जाता है। महाबल उसके बाद चैन से तीनों राज्यों को संभालता है और सुख से मलया सुंदरी के साथ रहता है।
कर्म
इस आख्यान गीतिका
में करणी पर विशेष बल दिया गया है। यानी जिस
के जैसे कर्म होंगे उसे वैसे ही फल मिलेंगे।
अगर जीवन में अच्छे कर्म किये हैं तो ईश्वर भी आपका साथ देगा और आपका कठिन जीवन
भी आसान हो जायेगा। लेकिन अगर आप के कर्म बुरे
हैं , आप ने ग़रीब लोगो को सताया
है , कसी ग़रीब की आह ली है। किसी स्त्री का हरण किया है , किस को बेवजह परेशान किया है तो ईश्वर आप से नाराज़
रहेगा और आपको अपने ग़लत कर्मों की सज़ा ज़रूर मिलेगी। इसी ग्रन्थ से निम्नलिखित पंक्तियाँ देखें –
करणी निर्मल , करना प्रतिपल
करणी संकट हरणी
करणी है करणी।।
करणी मंगल , करणी सम्बल
करणी पार उतरणी
करणी है करणी।।
( महाबल मलया सुंदरी
मंगल आमुख - दोहा संख्या - 8 )
जड़ चेतन दो तत्त्व है , यह जीवन कर्म आबद्ध।
एक कर्म संचित होता है , एक कर्म प्रालब्ध।।
संचित वृत टूटता है , तप संयम योग प्रयोग।
किंतु भोगना ही पड़ता
है , कर्म निकाचित भोग।।
( रमता योगी - दोहा संख्या – 124 )
यह सारी दुनिया पाप
और पुण्य के खेल में उलझी हुई है। इसके अलावा
और कुछ भी नहीं। कर्मों के हिसाब से ही मानव को पाप और पुण्य के तराजू में तोला जाता
है। पाप करना जितना आसान है पुण्य कमाना उतना
ही कठिन। पुण्य कमाने के लिए मानव को क्या
नहीं करना पड़ता। अपने सुख वैभव छोड़ कर निस्वार्थ
समाज की सेवा में लगना पड़ता है तब काही जा कर पुण्य के मोती मिलते हैं। धर्म की रक्षा के लिए दान करना पड़ता
है , परोपकार करना पड़ता है , तप करना पड़ता है तब कही जा
कर पुण्य की डगर दिखाई पड़ती है। पुण्य की डगर
उतनी सरल नहीं होती जितना हम सोचते है। पुण्य
के पथ पर आगे बढ़ने के लिए बहुत कुछ त्यागना पड़ता है। इसी पुस्तक से ये दोहा देखें-
दान शील तप भावना , धरम पुण्य की बेल
दुनियावी सुख- दुःख
सभी , पुण्य पाप का खेल
( महाबल मलया सुंदरी मंगल आमुख - दोहा संख्या - 7 ) जड़ चेतन दो तत्त्व है , यह जीवन कर्म आबद्ध।
महाबल मलया सुंदरी
आख्यान गीतिका का आरम्भ ही राजा वीर धवल और उनकी रानी चम्पकमाला के संवाद से होता है। दो रानियां होने के बावजूद राजा निसंतान है और यही
चिंता उसे खाये जा रही है। बिना संतान के आगे
का वंश कैसे चलेगा ? सुझाव दिया जाता है
कि कोई बालक गोद ले लिया जाये। राजा को यह
सुझाव पसंद नहीं , आखिर अपना खून अपना खून होता
हैं ।फिर भी रानी कि ख़ुशी के लिए वो इस प्रस्ताव को मान लेते हैं , हालां कि इसकी ज़रूरत नहीं पड़ती। इसी सन्दर्भ में इसी ग्रन्थ से कुछ सुन्दर उद्धरण देखें -
चम्पक माला रो पड़ी , राजा भी दिल गीर।
आई कनका दौड़ कर , बोली बन गंभीर ।।
लाखों बालक नगर में , मन पसंद रख पास
हँसो खिलो पालन करो ,पूरो मन की आस।।
राजा देता सांत्वना , ऊपर दिखा विनोद
ले लो प्रिय ! प्रमोद
से , कोई बच्चा गोद।।
कोयल के बच्चे पाले , कौए का वंश चला है ?
लीची फल लटका कर कह दो , चन्दन वृक्ष फला है ?
( रमता योगी - दोहा संख्या – 7,8, 9 )
इस आख्यान गीतिका
में एक प्रसंग आता है जब राजा सूरपाल का छोटा पुत्र विजयचन्द राज पाट न मिलने पर जंगल में चला जाता है। वहाँ उस की मुलाक़ात एक बाबा से होती है जो मरते
वक़्त विजयचन्द को कुछ गुप्त विद्या देता है।
विजयचन्द स्वयं एक योगी बन जाता है।
बाबा से मिली तुम्बी को वह एक बनिए के यह यह कह कर रख जाता है कि वह हरिद्वार
जा रहा है और वापिस आ कर अपनी तुम्बी वापिस
ले लेगा। विजयचन्द जब लौटकर आता है
तो पाता है कि बनिए ने तुम्बी बदल दी है। इस
प्रकार विजयचन्द के साथ विश्वासघात होता है। इसी प्रसंग से कुछ रोचल पंक्तियाँ देखें जिनमें श्रमण स्वामी सागरमल जी और मुनि स्वामी मणिलाल जी कि काव्य प्रतिभा उभर कर देखने को मिलती
है।
विशवास - लालच - हेराफेरी
मेरे पास स्वर्ण रस तुम्बी , वह रस चुपड़ तपायें।
सिद्ध योग है तपते
ही , ताम्बा सोना बन जायें।।
( रमता योगी - दोहा संख्या – 25 )
विशवास ही विशवास में , यों हो जाता धोखा ।
ये बगुला भक्त हमेशा , देखा करता मौका ।।
( रमता योगी - दोहा संख्या – 40 )
कहते रहते ज्ञानी संत , लालच है बुरी बला।
कुकला सिखलाता है
, लोभ कटवाता है गला।।
( रमता योगी - दोहा संख्या – 34 )
हेरा - फेरी में माहिर , होता बनियों का हाथ।
तुम्बी के बदले में
तुम्बी , लटका दी साक्षात।।
( रमता योगी - दोहा संख्या – 39 )
धर्म –
अलग अलग संस्कृतियों में धर्म के भिन्न भिन्न परिभाषाएं पायी जाती हैं। साधारण शब्दों में धर्म के अनेक अर्थ पाए जाते हैं मसलन - मानवता, कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सच्चाई , सदाचरण, सद्-गुण आदि। मनु ने मानव धर्म के दस लक्षण बताये हैं:
धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो, दशकं धर्मलक्षणम् ॥
(धृति (धैर्य),
क्षमा (दूसरों के द्वारा किये गये अपराध को माफ
कर देना, क्षमाशील होना), दम (अपनी वासनाओं पर नियन्त्रण करना), अस्तेय (चोरी न करना), शौच (अन्तरंग और बाह्य शुचिता), इन्द्रिय निग्रहः (इन्द्रियों को वश मे रखना), धी (बुद्धिमत्ता का प्रयोग), विद्या (अधिक से अधिक ज्ञान की पिपासा),
सत्य (मन वचन कर्म से सत्य का पालन) और अक्रोध
(क्रोध न करना) ; ये दस मानव धर्म के
लक्षण हैं।)
महाबल मलया सुंदरी
आख्यान गीतिका में भी हमें अनेक
रोचक और सारगर्भित पंक्तियाँ देखने को मिलती हैं।
निम्नलिखित पंक्तियाँ देखें –
धर्म सदा आधार यही भाई ! अशरण शरण उदार।
धर्म बड़ा दिलदार है , भक्तों की सुने पुकार।।
जिस पर हो सद्गुरु कृपा , भाई ! उस का बेडा पार।
जिस का रक्षक धर्म है , फिर कौन बिगाडन हार।।
( लय - आभे चिमके बिजली - 95 )
धर्म अशरण का शरण , दुःख त्राण है।
धर्म जीवन नाव की पतवार है ।।
( रखना रामकड़ा - गीतक छंद - 100 )
भगवा इस वेश का तो , विशवास उठ गया।
ढोंगियों ,
पाखंडियों के , हाथ धर्म लूट गया।।
( रमता योगी - दोहा संख्या – 69 )
संत - सद्गुरु - गुरु
भारत सदा से ऋषि मुनियों
का देश रहा है। भारतीय भूमि पर अनेक दुर्लभ
संतों और सद्गुरुओं का अवतरण हो चुका है। सही आचरण और आत्मज्ञानी व्यक्ति को संत कह
सकते हैं। साधु , सन्यासी , योगी सभी संतो की
श्रेणी में आते हैं। भारतीय संस्कृति में संत
और गुरु का बहुत आदर सम्मान किया जाता है।
संत और गुरु दोनों ही हमे सही मार्ग दिखलाते और सत्य के पथ पर आगे बढ़ने के लिए
प्रेरित करते हैं। इस में कोई दो राय नहीं कि संतों और गुरुओं के आशीर्वाद के बिना
जीवन में सफलता मिलना संभव नहीं। महाबल मलया सुंदरी आख्यान गीतिका में संतों और गुरुओं
को समर्पित अनेक पंक्तियाँ हैं। आइये देखते
हैं कुछ उल्लेखनीय पंक्तियाँ –
संत पुरुष के दर्शन से ही जीव अभ्युदय करता है।
जिस को मन्त्र प्रसाद
मिला वह तो निश्चित ही तरता है।।
( रमता योगी - दोहा संख्या – 161 )
सेवा संतों की कभी भी , खाली नहीं जाती।
खाली नहीं जाती ,
नहीं जाती , नहीं जाती।।
( गीतक छंद -लय - 24 , )
कहते रहते ज्ञानी संत , लालच है बुरी बला।
कुकला सिखलाता है
, लोभ कटवाता है गला।।
( रमता योगी - लय– 34 )
कुशल मुनि की प्रेरणा , आज बनी साकार।
गुरुकृपा से हो सका
, जो अटका मझधार।।
( एक और विपत्ति -, दोहा संख्या – 560 )
माँ- मातृभूमि
भारतीय संस्कृति में
माँ की महत्ता बहुत है। देवी के रूप में माँ के नौ रूप देखने को मिलते हैं ,
नवदुर्गा। मानव रूप में माँ जननी होती है। धरती को भी माँ का ही एक
रूप माना जाता है। मातृभूमि अर्थार्त जिस भूमि पर हम जन्म लेते हैं। हमारी मातृभाषा जो हम हम माँ के पेट से सीख कर आते
हैं। इस संसार में माँ का स्थान कोई नहीं ले
सकता। माँ अपने खून से अपने बच्चों को सींचती
हैं। उन की ऊँगली पकड़ कर इस संसार में उन को
उड़ना सीखाती हैं। माँ सिर्फ माँ होती है। प्रसव की पीड़ा को भी वह हँसते हँसते सेह जाती है। अपने बच्चों के लिए वो पूरे संसार से लड़ सकती है। महाबल मलया सुंदरी आख्यान गीतिका में ऐसे अनेक उद्धरण हैं जिन में माँ के चरित्र
को उजागर किया गया हैं। आइये देखते हैं कुछ
उद्धरण –
माँ का हाथ पकड़ कर बच्चा , सदा सुरक्षित रहता है।
माँ के संरक्षण में
संस्कृत , सभ्य सुशिक्षित रहता है।।
( प्रेत का पंजा – लय
- 25)
माँ भगवान् धर्म ये युद्ध में , याद स्वतः आ जाते।
जब सब किन्नी काट
चुके हो , ये ही गले लगाते।।
( प्रेत का पंजा – लय
- 23)
मातृ भू की सुरक्षा में , हम सब कटिबद्ध हैं।
युद्ध यदि लड़ना पड़े
तो , नीति पर सन्नद्ध हैं।।
( खतरे की घंटी ,
गीतक छंद - 12 )
युद्ध - राजनीति
इस संसार में हमेशा
से ही युद्ध होते आये हैं। ज़र , जोरू और ज़मीन अक्सर
युद्ध के कारण रहे हैं। जब कोई भी विवाद बातचीत
से नहीं सुलझ पता तो युद्ध का आरम्भ होता है।
युद्ध में अक्सर दोनों पक्षों का नुक्सान होता है।युद्ध में जान - माल का नुक्सान तो होता ही हैं , आर्थिक स्तिथि भी चरमरा जाती है। इसलिए सभी का प्रयास रहता है कि शान्ति बानी रहे। भारत कि धरती पर अनेक युद्ध हो चुके हैं ,
कुछ युद्ध अंदरूनी राजाओं का तो कुछ युद्ध दूसरे
देशों के साथ। युद्ध कि विभीषिका अत्यन्य भयावह होती है। १८ दिनों तक चलने वाले महाभारत के युद्ध को
कौन नहीं जानता। इस युद्ध में के नस्लें बर्बाद
हो गयी थी। सब तरफ विनाश ही विनाश फ़ैल गया
था। युद्ध का असर सदियों तक रहता है। महाबल
मलया सुंदरी आख्यान गीतिका में भी युद्ध प्रसंग आया है। राजनीति और युद्ध से सम्बंधित कुछ
पंक्तियाँ देखें –
जा कहो राजा से , सारी बात को
युद्ध में क्यों ? व्यर्थ जान धन घात हो
युद्ध तो अन्याय का
प्रतिकार है
(एक और विपत्ति -लावणी छंद - 493 )
जाइये इस मांग का , गौरव बढ़ाने जाइये।
राष्ट्र रक्षा व्रत
निभाते , विजय ध्वज लहराइये ।।
( खतरे की घंटी ,
गीतक छंद - 52)
मंत्री बोला मान्यवर ! हो गुस्ताख़ी माफ़।
कूट नीति के बिना
, कब होता रास्ता साफ़ ।।
( खतरे की घंटी ,
दोहा संख्या – 22
क्योंकि बचना चाहते हम , निरर्थक संहार से।
अहिंसक प्रतिकार से , हल ढूंढते व्यवहार से।।
( खतरे की घंटी ,
गीतक छंद - 10 )
रोटी खानी शक्कर से , दुनिया ठगनी मक्कर से।
यही आज की राजनीति
है, जनमत मिलता चक्कर से।।
( रखना रामकड़ा - Lay - 13 )
नारी
भारतीय संस्कृति में नारी का स्थान बहुत ऊँचा है। नारी को देवी स्वरूप माना जाता है। लेकिन समाज में नारी की स्तिथि आज भी दयनीय है।
नारी को अगर पूजा गया है तो नारियों पर अत्याचार भी कम नहीं हुए है। नारी सदियों से पुरुष की दासता सहती आ रही है। समाज बदल रहा है , नारी पुरुष से कंधे से कन्धा मिला कर आगे बढ़ रही है लेकिन उसकी दासता की बेड़ियाँ अभी पूरी तरह से कटी नहीं हैं। आज भी नारी को प्रताड़ित किया जाता हैं , उस के शील को जबरन भांग किया जाता है । बहुत से युद्धों का तो कारण ही नारी रही है। समाज में आये दिल बलात्कार की ख़बरे सुनने को मिल रहती है। जब पांडवो की पटरानी द्रोपदी का चीर हरण भरी सभा में हो गया तो आम नारी की तो बिसात ही क्या है ? महाबल मलया सुंदरी आख्यान गीतिका में भी कुछ प्रसंगों में नारी की पीड़ा और उस की शक्ति को उजागर किया गया है।
नारी से सम्बंधित
ये पंक्तियाँ देखें –
नारी कितनी रही तिरस्कृत इधर समर्पित उधर अनादूत।
अवगणना अपमान कहां तक , सेहन के ! समझाउंगी।।
रोकेंगे युवराज महाबल , तो कह दूँगी फैला आँचल ।।
भरपाया सुख इन महलों का , साफ़ साफ़ बतलाऊँगी।।
उस सुख वैभव को क्या चाटूँ? पेअर कुल्हाड़ी से क्यों काटूं ?
मातृ जाति के अधिकारों की , मैं आवाज़ उठाउंगी।।
( उफणती लहरें - लय - 43 , 44 , 45 )
अब तक मैंने धीरज से ही काम लिया अनुनय करता।
हाथ धर्मिता नहीं छोड़ी तो बलात्कार से नहीं डरता।।
( एक और विपत्ति - रामायण छंद - 33 )
खड़ी हो गयी मलया बोली , नहीं पुत्र की चाह।
शील सुरक्षा खातिर आत्म हनन की ले ली राह।।
( एक और विपत्ति - दोहा संख्या -89 )
नारी नहीं नाहारी
हूँ मैं , मत समझो लाचार -102
किस जनम का बैर लेने , को लगायी लाये है।
हाय ! नारी जाति पर
यह , सरासर अन्याय है।।
( खतरे की घंटी ,
गीतक छंद - 74)
महाबल और मलया सुंदरी
का प्रेम - प्रसंग
महाबल मलया सुंदरी
आख्यान गीतिका का केंद्रबिंदु महाबल और मलया सुंदरी का प्रेम - प्रसंग है। प्रेम एक ऐसी अनुभूति होती है जिस का सम्बन्ध हमारे
हृदय से होता है। यह सारा संसार प्रेम पर ही
आधारित है। अगर इस संसार में प्रेम नहीं होता
तो सब कुछ नीरस और निरर्थक होता । प्रेम की रौशनी में यह संसार जगमगा रहा है। प्रेम इंसान को मजबूत बनाता है। इस संसार में ऐसे कितनी ही प्रेम कहानियाँ है जो
अमर हो गयी। लैला - मजनूं , शीरी फ़रियाद , हीर - रांझा और यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि ' महाबल - मलया सुंदरी 'कि प्रेम कहानी भी अमर है।
आइये , महाबल मलया सुंदरी आख्यान गीतिका से पढ़ते हैं कुछ विशिष्ट
प्रेम पंक्तियाँ –
ऊपर मलया सुंदरी , संध्या राग प्रभास।
नीचे महाबल पर प्रभा, फैंक रहा आकाश।।
खदखगोली वन युवक , निरख नव्य नक्षत्र।
भीतर जा आयी पुनः , फैंक गयी वह पत्र।।
उड़ता काग़ज़ आ गिरा , पढ़ा लिखा था साफ़।
संध्या को उषा बना , सकता है क्या आप ?
( झूठा सच - दोहा संख्या – 9,10,11 )
हार लक्ष्मीपुंज निकाल गले में महाबल के डाला।
बोली मलया यही समझ लें पहनाई है वरमाला।।
( झूठा सच - दोहा संख्या - 46 )
महाबल मलया का मिलान , रंग रसीली रात।
अनछुई अनुभूतियाँ , लेकर उगा प्रभात।।
( चमकता सितारा ,
दोहा संख्या - 1 )
महाबल मलया सुंदरी आख्यान गीतिका में उपरोक्त विषयों के अलावा कुछ विविध दोहे , पंक्तियाँ भी उल्लेखनीय हैं -
औरो के अनुशासन में , रहना भी बहुत कठिन है।
कहना तो बहुत सरल है , पर सहना बहुत कठिन है।।
( रमता योगी - दोहा संख्या – 51 )
पहला करता है निंदा , अपयश सुन खीज न जाना।
करे दूसरा ख़ूब प्रशंसा , यश में रीझ न जाना।।
( रमता योगी - दोहा संख्या – 115 )
कौन मरा क्या ? तुम मरी, मैं मरता था साथ
तुम जी गयी मैं जी गया , बड़े भाग्य की बात
( रमता योगी - दोहा संख्या – 145 )
जो बुरा सोचता औरों का , वह बुरा स्वयं का करता।
जो ईर्ष्यालु होता , वह नहीं चैन से जीता मरता।।
( प्रेत का पंजा - दोहा
संख्या - 49 )
पहले ही रो लेती , रोने से क्या राज मिलेगा ?
मलया को क्या पता हार ? जीवन की हार बनेगा।।
राजा ने आदेश दिया , बंदी का रूप रचा है ।
मृत्यु - दंड की हुई
घोषणा , हा - हा कर मचा है।।
( प्रेत का पंजा - दोहा
संख्या – 76,77 )
पीछे रोने से क्या होता है ? रो रो कर रह जाती हैं।
डोर निकल जाने पर
कभी , पतंग न हाथ आती हैं।।
बिगड़ी बनाने वाला बिरला ही होता है
बात को बिठाने वाला ,उखड़ी जमाने वाला , बिरला ही होता है
( रखना रामकड़ा - गीतक
छंद - १४ )
नृप कहता हाँ बस अंतिम है , वर्षों से मन में एक साध।
जैसे आगे देखूं वैसे ही , देखूं पीछे मैं निर्विवाद।।
( एक और विपत्ति सेहनाणी छंद - 446 )
दुष्कर्मी का मन , शुद्ध नहीं होता है।
जड़ से काटो जो काँटे
बोता है।।
(एक और विपत्ति -लावणी छंद - 451 )
महाबल मलया सुंदरी
आख्यान गीतिका के रचनाकार श्रमण स्वामी सागरमल
जी और मुनि स्वामी मणिलाल जी द्वारा रचा गया यह काव्य आख्यान दीगर कारणों से अपने आप में विशिष्ट
बन पड़ा है। एक प्राचीन आख्यान को काव्यमाला में पिरो कर दोनों कवियों ने यह सिद्ध कर
दिया है कि जहाँ न पहुंचे रवि , वहाँ पहुँचे कवि। आख्यान काव्य में कवियों ने सिर्फ लोकप्रिय मुहावरों और लोकोक्तियों का ही प्रयोग नहीं किया हैं अपितु
कुछ नए मुहावरों और सूक्तियों का निर्माण भी किया हैं। आख्यान काव्य में प्रयोग किये
गए इन मुहावरों , लोकोक्तियों और सूक्तियों ने इस ग्रन्थ को अधिक
सुन्दर बना दिया है। विशेष रूप से निम्नलिखित
मुहावरें , लोकोक्ति और सूक्तियां उल्लेखनीय हैं -
अपशकुन - दायी आँख
फड़कना , ठोकर लगना ,बिल्ली आदि तिरछी , कुत्ते के कान फड़फड़ाना , गीदड़ का रोना
, किसी का छींकना
कांच नहीं हीरा बन सकता चाहे कितना चमकीला
पानी बिन ज्यूँ मीन तड़फती
पापी का अन्न उदर
समाये मन विकृत हो जाता
पत्थर पे कितना ही
पानी डालो नहीं भीजेगा
लातों का जो भूत बात
से , कब मानेगा समझाओ
विजय कहाँ जो रण में
जाने से पहले ही हारा है
निर्भय सदा बना रहता
है , सत्य सलिल में जो बहता
विशवास इष्ट का जिस
तन में , वह तिल भर भी क्यों घबराये
जो शक्य नहीं कैसे
होगा , पानी के बिना नहीं कोई तिरता
संयम है सुख का झरना
एक तीर से दो शिकार
मीठी छुरी बातूनी मत कर लेना विश्वास
परदा मत डालो परदे
के पीछे
अँधेरा दीपक तले
आँख लाल करना
ज़मीं में आँखे गाड़ना
अक़ल पे पत्थर पड़ना
सीधी ऊँगली घी नहीं
निकले
तिलो से तेल निकालना
मुझे आशा ही नहीं
पूर्ण विशवास है कि हिंदी साहित्य जगत " महाबल मलया सुंदरी " आख्यान गीतिका
का स्वागत करेगा। इस अतुल्य ग्रन्थ के लिए
महाबल मलया सुंदरी आख्यान गीतिका के
रचनाकार श्रमण स्वामी सागरमल जी और मुनि स्वामी
मणिलाल जी निश्चय ही बधाई के पात्र है। उनके इस प्रयास से हिंदी
के पाठक अवशय लाभान्वित होंगे और " महाबल
मलया सुंदरी " के ज़रिये भारतीय संस्कृति
कि यह लोकप्रिय गाथा जन जन तक पुहंचेगी।
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