Tuesday, September 17, 2024

होली

 

होली

 

लगभग दो हफ़्ते पहले से ही

शुरू हो जाती थी

होली की हलचल

पुरानी दिल्ली की गलियों में

बिखरने लगते थे होली के रंग

कुंडों में भरे जाते थे टेसू के फूल

और पानी हो जाता था गहरा लाल

रंग-बिरंगे रंगों का बनाया जाता था घोल

फिर पिचकारी से भरा जाता था

गुब्बारों में रंगीन पानी,

रंगीन पानी वाले गुब्बारों से

भर लेते थे बाल्टी

तैयारी होती थी कुछ इस तरह

मानो युद्ध के लिए शस्त्र

किये जा रहे हो एकत्रित,

कच्चे बड़े आलू को आधा काट कर

उस पर उल्टा खोदा जाता था

४२० का छापा

जिसको लगाया जाता था

राहगीरों की कमीज़ों पर

पीतल की पिचकारियों से

छितराया जाता था रंगीन पानी

टीन के डिब्बे को रस्सी में बाँध

खींचते थे किसी की टांग को छू कर

निकलती थी कुत्ते की आवाज़

डर जाते थे राहगीर

लेकिन अगले ही पल 'होली है'

सुन कर हो जाते थे सहज,

धुल जाती थी

पुरानी दुश्मनी भी

होली के प्रेम भरे रंगों से

आज तो किसी को

गुलाल लगाते हुए भी डर लगता है

दुश्मन तो दुश्मन

दोस्त भी अब दुश्मन लगता है

हर चेहरे पे हैं इतने चेहरे

कि होली का कोई भी रंग

चढ़ नहीं पाता

कोई भी होली का फाग नहीं गाता।

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