पिता जी
जब से होश संभाला
पिता जी को
किताबों और काग़ज़ों में
उलझा देखा
घंटों बैठ कर लिखते रहते
मालूम हुआ कि
पिता जी थे एक कवि
बालस्वरूप राही के कवि
मित्र
उनकी एक पुरानी डायरी में
पढ़े थे उनके कुछ गीत
उनके एक गीत का मुखड़ा
मुझे आज भी याद है
"मैं गीत प्यार के गाता हूँ,
इसलिए जवानी मेरी है
मैं गम में भी मुस्काता हूँ,
इसलिए रवानी मेरी है।"
वास्तव में
उनके गीत पढ़ कर ही
मुझे कविताएँ
लिखने की प्रेरणा मिली,
लेकिन बाद में बंद कर दी थी
उन्होंने लिखनी कविताएँ
मकान बनाने की ज़िम्मेदारी
और परिवार के
ख़र्चों को भरते-भरते
कमाने को चंद पैसे
करते विभिन्न प्रकार का
लेखन
और फूँकते रहते
सिगरेट पे सिगरेट
ज़र्दे का पान और सिगरेट,
पिता जी ने किया संघर्ष
ज़िंदगी भर
जीता हर युद्ध ज़िंदगी के ख़िलाफ़
लेकिन कोरोना का वार
नहीं सह पाए
और ज़िंदगी से गए हार,
सो गए गहरी नींद में
हज़ारों मील दूर बैठा था
मैं
अफ़सोस नहीं हो पाया
सम्मिलित
उनकी अंतिम यात्रा में,
कोरोना के चलते
मैं ही क्या कोई भी
सम्मिलित
नहीं हो पाया उनकी अंतिम
यात्रा में
जैसे लड़ा था उन्होंने
अकेले ही जीवन का युद्ध
वैसे ही अकेले ही लड़े
मौत के साथ भी,
बस छोटे भाई ने किया था
उनका दाह संस्कार
एक फ्यूनरल एजेंसी की मदद से।
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