Tuesday, September 17, 2024

पिता जी

 

पिता जी

 

जब से होश संभाला

पिता जी को

किताबों और काग़ज़ों में

उलझा देखा

घंटों बैठ कर लिखते रहते

मालूम हुआ कि

पिता जी थे एक कवि

बालस्वरूप राही के कवि मित्र

उनकी एक पुरानी डायरी में

पढ़े थे उनके कुछ गीत

उनके एक गीत का मुखड़ा

मुझे आज भी याद है

"मैं गीत प्यार के गाता हूँ,

इसलिए जवानी मेरी है

मैं गम में भी मुस्काता हूँ,

इसलिए रवानी मेरी है।"

वास्तव में

उनके गीत पढ़ कर ही

मुझे कविताएँ

लिखने की प्रेरणा मिली,

लेकिन बाद में बंद कर दी थी

उन्होंने लिखनी कविताएँ

मकान बनाने की ज़िम्मेदारी

और परिवार के

र्चों को भरते-भरते

कमाने को चंद पैसे

करते विभिन्न प्रकार का लेखन

और फूकते रहते

सिगरेट पे सिगरेट

ज़र्दे का पान और सिगरेट,

पिता जी ने किया संघर्ष

ज़िंदगी भर

जीता हर युद्ध ज़िंदगी के ख़िला

लेकिन कोरोना का वार

नहीं सह पाए

और ज़िंदगी से गए हार,

सो गए गहरी नींद में

हज़ारों मील दूर बैठा था मैं

अफ़सोस नहीं हो पाया सम्मिलित

उनकी अंतिम यात्रा में,

कोरोना के चलते

मैं ही क्या कोई भी सम्मिलित

नहीं हो पाया उनकी अंतिम यात्रा में

जैसे लड़ा था उन्होंने

अकेले ही जीवन का युद्ध

वैसे ही अकेले ही लड़े

मौत के साथ भी,

बस छोटे भाई ने किया था

उनका दाह संस्कार

एक फ्यूनरल एजेंसी की मदद से।

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