गुरु सूरदास
एकाउंट्स पढ़ाते थे हमें
गुरु जी थे सूरदास
था सब कुछ
उन्हें ज़बानी याद
नहीं मालूम था कि
कविता के भी हैं शौक़ीन
गुरु जी थे कुछ रंगीन,
एक दिन रुक गयी थी
ट्यूशन बीच ही में
गुरु जी का आदेश था
रहने का सबको मौन,
रेडियो पर
बालकवि बैरागी की
ओजस्वी आवाज़ में
गीत सुन कर
गुरु जी के हो गए थे
रोंगटे खड़े
बस उस दिन
हम और नहीं पढ़े।
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