Friday, September 13, 2024

अद्भुत प्रेम

 ' अद्भुत प्रेम ' -मेरी  नज़र में 


बैंगलूर के चर्चित कवि  राही राज़ द्वारा रचित काव्य संग्रह ' अद्भुत प्रेम ' यक़ीनन अद्भुत है। प्रेम का ज़िक्र चलते ही ज़ेहन में कुछ प्रेम कथाएँ ताज़ा हो जाती हैं  मसलन राधा-कृष्ण , हीर - रांझा , लैला मजनू  , शीरीं - फ़रयाद , रोमियो - जूलियट , महाबल- मलय सुंदरी  , शकुंतला-दुष्यंत ,  ,रानी रूपमती-बाज़  बहादुर , सलीम-अनारकली , सोहणी-महिवाल आदि। इन सभी प्रेम कथाओं में प्रेम के अनेक अनदेखे रूप देखने को मिलते हैं। अधिकांश प्रेम कथाओं का अंत दुखद ही  होता है , लेकिन सदियों से लोग प्रेम करते आये हैं और करते रहेंगे क्योंकि प्रेम हो जाता है किया नहीं जाता।  किसी कवि ने कहा है - 

जो मैं ऐसा जानती प्रीत करे दुःख होय

नगर ढिंढोरा पीटती प्रीत न कीजो कोय 


' अद्भुत प्रेम ' पुस्तक का प्रारम्भ सरस्वती वंदना से किया गया है।  प्रेम में डूबा हुआ कवि  माँ सरस्वती  को भूला नहीं है बल्कि यूँ कहिए  कि माँ सरस्वती के प्रति कवि  नेअपना प्रेम भाव कुछ यूँ प्रकट किया है -


मुझ राही को , राह  आपकी  मूरत दिखती रहें ,

मेरे नैनों में बस  आपकी  सूरत सदा बसती रहें।   


प्रेम करना , प्रेम को जीना और प्रेम पर कविता लिखना , बहुत उलझे हुए काम हैं जिन्हें राही राज़ बड़ी सुगमता से कर जाते हैं।  प्रेम की कोई परिभाषा नहीं होती , उसका कोई नाम नहीं होता , प्रेम तो बस एक अहसास होता है।  प्रेम एक समुन्दर होता है जिसमें डूबते तो सब हैं लेकिन उस पार विरले ही उतर पाते हैं।  प्रेम बहुत कुछ कहता है , प्रेम बहुत कुछ कहलवाता है और रह जाता है जो अनकहा , वो भी होता है प्रेम या यूँ  समझें वो ही होता है प्रेम , लेकिन समझे उसे कौन ?    प्रेम की दो बूँदें जलते रेगिस्तान को भी जीवंत कर देती हैं। 

कवि राही राज़ ने अपना काव्य संग्रह ' अद्भुत प्रेम ' अपनी धर्म -पत्नी श्रीमती प्रीती राही को समर्पित किया है जो  उनकी प्रेयसी भी है । पत्नी का प्रेयसी भी बन जाना अपने आप में एक सुखद अनुभव है और यही बात इस प्रेम काव्य  को विशिष्ट बना देती है। 81  कविताओं की इस पुस्तक में पाठक को प्रेम के विभिन्न रंग देखने को मिलेंगे।  संकलन की अधिकांश कविताएँ प्रेम पर हैं। । बहुत -सी कविताओं में गिले - शिकवे , पति - पत्नी के बीच की नोक - झोंक , प्यार मनुहार , रूठना - मनाना , शिकवा - शिकायत होने के बावजूद दोनों एक दूसरे से प्रेम करते हैं और  इसमें कोई दो राय नहीं कि ये पति - पत्नी वाला प्रेम बहुत खिला खिला - सा है। बानगी की रूप में  इसी पुस्तक से कुछ उद्धरण देखें -

' माना   कि हम  दोनों ख़ूब लड़ते हैं , झगड़ते हैं ,

मगर हम दोनों एक - दूसरे को ख़ूब समझते हैं। ' 


'तेरी गोरी काया , और मन की चंचल माया 

मैं उलझ कर रह जाता हूँ 

मैं मूक , बधिर बन जाता हूँ 

देखता हूँ तुम्हें , तो देखता ही रह जाता हूँ। '


'एक झोका तुम्हारे  प्यार का ,

अहसास का , जिधर से गुज़रेगा 

वो तुम्हारे प्यार में , गुलाब 

सदा की लिए गिरफ़्तार हो जायेगा '


' तुम्हारा मेरा जन्म जन्म का रिश्ता हैं , 

इस रिश्ते को मैं रेशम की डोर कहता हूँ। '




इस प्रेम कहानी का पति चाँद तारे तोड़ कर लाने की बात नहीं करता लेकिन प्रेमी अपनी प्रेयसी के क़दमों में रोज़ चाँद - सितारे बिछाता है।

' क्या कहती हो , 
तुम कहो तो , चाँद  पर ले जा सकता हूँ  ' 

 इस प्रेम कहानी का प्रेमी , प्रेमी अधिक है पति  कम। इसी कश्मकश में कवि भी है।  अपने प्रेम में कभी वह पत्नी को ढूँढता है तो कभी प्रेयसी  को , लेकिन  उसके दामन का प्रेम समाप्त नहीं होता।  कवि ख़ुद इस बात को स्वीकार करता है कि ,

'  हक़ीक़त ये है कि पत्नी और प्रेमिका ,
 एक ही सिक्के के दो पहलू हैं   
कौन कम , कौन ज़ियादा है 
कहना बहुत मुश्किल है ' 

हो सकता है कि अधिकांश लोग कवि के इस जुमले से सहमत न हो। अक्सर  लोग  प्रेयसी और पत्नी को रेल की पटरियों की तरह मानते है लेकिन प्रेम की ट्रेन तो दोनों पटरियों पर दौड़ती है। दुष्यंत कुमार का ये शे'र  देखें - 

तुम किसी रेल - सी  गुज़रती हो 
मैं किस पल - सा थरथराता हूँ । 

टेक्नोलॉजी की इस दौर में प्रेम करना और प्रेम जताना बहुत ही सुलभ हो गया है। वत्सप्प पर सुबह से शाम तक कितनी ही बार प्रेम कर लीजिये , न हींग लगे न फ़िटकरी।  फेस बुक  पर  प्रेम की अनगिनत चेहरें  मिल जायेंगे , जो भी आपको अच्छा लगें उससे प्रेम कर लीजिये। 
' अद्भुत प्रेम '  का कवि राही राज़ तो तन का नहीं मन का प्रेम चाहिए लेकिन प्रेयसी का फ़ोन तो लगना ही चाहिए।  इसी पुस्तक से - 

' एक ऐसा  प्रेम ,
जो सोचने की लिए विवश कर दे,
तन का नहीं , मन का प्रेम ,
जो फ़ोन करने की लिए विवेश कर दे।  ' 

और जब फ़ोन से कवि का दिल नहीं भरता तो अपने दिल की बात कहने के लिए कुछ यूँ लिखते हैं -  ' 

' अब फोन नहीं करना , बैठ कर बाते करना हैं
 बहुत दिन हुए फ़ोन पे बातें करते , क्यों ना रु - ब -रु  हो लूँ  ? 


प्रेम में दीवाना हो जाने की बाद प्रेमी को बस अपनी प्रेयसी दिखाई देती है।  वह उसके प्रेम में इतना अँधा हो जाता है कि उसे भगवान् भी दिखाई नहीं पड़ता।  अब तो उसका सारा जहान बस उसका महबूब होता है।  मछली की आँख में तीर मारने वालों को मछली भी दिखाई नहीं देती। प्रेमी  आठो पहर बस अपने प्रेमी की ख़्यालों  में डूबा रहता है।  प्रेम की इस दीवानेपन का मंज़र इन पंक्तियों में देखें - 


' ना मंदिर ना मस्जिद न गुरुद्वारा ही दिख रहा है ,
हर  वक़्त   तेरा    ही  हमें   ख़याल आ रहा है। '



राही राज़  जी मूलतः बेगूसराय , बिहार की रहने वाले हैं।  अपनी मातृ भूमि  पर   किसको गर्व नहीं होता।  कवि ने खुले मन से  अपने आप को  बिहारी बताते हुए  बहुत ही सुन्दर शब्दों में अपना परिचय दिया हैं।  इसी पुस्तक से ये पंक्तियाँ देखें -

'हम बिहारी बांके बिहारी हैं
हम बिहारी , अटल बिहारी हैं 
हम बिहारी , इंसाफ़ की खिलाड़ी हैं 
हम बिहारी , अपनी घरवाली की रखवाली करते हैं।  

इस काव्य संग्रह में  प्रेम की अलावा कुछ दीगर विषयों पर भी दिलचस्प कविताएँ हैं ,जिनमें  ' पति ' , आईना , सास , हिसाब माँगता है , धर्म ,दर और दरवाज़ा , बेटी , बिहारी , मन , झूठ , आत्महत्या पल की , मोक्ष , आदि जिनमें राही राज़ ने समाज में व्याप्त कुरीतियों और विकृतियों को उजागर किया है।  उन्होंने राजनीति पर भी कटाक्ष किया है। अपनी सामजिक रचनाओं की ज़रिये उन्होंने ये साबित कर दिया हैं कि वे सिर्फ़ प्रेम पर ही कविताएँ नहीं लिखते हैं अपितु इस समाज  के  काले चेहरों का भी पर्दाफ़ाश कर सकते हैं। बक़ौल फ़ैज़ अहमद फ़ैज़  

' और भी दुःख हैं ज़माने में मुहब्बत की सिवा
 राहतें और भी हैं वस्ल कि राहत की सिवा  ' 

इसी पुस्तक से सामाजिक सरोकारों  से जुड़े कुछ उल्लेखनीय उद्धरण देखें -   

बढ़ाना  ही है तो  नफ़रत नहीं ,
प्रेम को बढ़ाओ ,
जीवन को शान्ति दो ,
इसी में जग का कल्याण होगा। 

एक दीपक तुम जलाओ ,
एक दीपक मैं जलाता हूँ 
मन में जो बैठा अँधेरा है
उसे मिलजुल कर भगाता हूँ 

मैं कोई नेता नहीं ,
मैं तो क़लम का सिपाही हूँ ,
तुम न्याय की राह गर भूल गए तो 
याद दिलाना धर्म , हमारा तो बनता है। 


राही राज़ इस दुनिया से नफ़रत को मिटाना चाहते हैं और अपनी रचनाओं के ज़रिये इस दुनिया  को  प्रेम का पैग़ाम देते हैं। प्रेम की साथ साथ वो शान्ति का सन्देश भी देते हैं। वो इस दुनिया को अपनी कविताओं की माध्यम से स्वर्ग में तब्दील करना चाहते हैं और यह सब काम वो अकेले नहीं बल्कि आप सब की साथ मिल कर करने की इच्छा रखते हैं। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि उनकी कविताएँ इस दुनिया से नफ़रत मिटने में कामयाब हो पाएंगी।  राही राज़ के साथ मिलकर हम इस दुनिया का अँधेरा दूर करने में  ज़रूर सफल हो पाएंगे।  राही राज़ स्वयं को कोई नेता नहीं अपितु क़लम का सिपाही बताते है और क़लम के सिपाहियों ने हमेशा युद्ध जीते हैं। 
क़लम का सिपाही होने की नाते वो सियासतदारों को न्याय और धर्म का पाठ पढ़ाना चाहते हैं  ' अद्भुत प्रेम ' काव्य संग्रह के लिए उन्हें अनेकानेक शुभकामनएँ। इन कविताओं का लुत्फ़ उठायें और अपने मित्रों से साझा करना न भूलें। 


सादर 
इन्दुकांत आंगिरस 
फ़िल-वक़्त  - ज़ेरे आसमान 
13 सितम्बर , 2024





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