Tuesday, September 17, 2024

मघई पान

 

मघई पान

 

क्या दिन थे वो भी

क्या शामें थीं वो भी

जब मैं और मेरा दोस्त राकेश मित्तल

(जिसका स्वर्गवास 01.01.1979 को

एक सड़क दुर्घटना में हो गया था)

साथ मिलकर

खाते थे १२० नंबर का

मघई पान

सर्दियों की शाम मुँह में

बीड़ा दबाये घूमते थे

देर तक सड़कों पर

ग़ाज़ियाबाद के

गाँधी नगर में थी

भगवती पान वाले की दुकान

अक्सर पान खाये जाते थे उधार

और

दिल्ली रेडियो स्टेशन से

कविता पाठ या

गीतों का पसंदीदा कार्यक्रम

'मनभावन'

पेश करने के एवज़ में

जब मिलता था

७५ रुपये का चैक

तो चुकाया जाता था

पान वाले का उधार

उन दिनों

आवारगी का

लुत् ही कुछ और था

वो मेरी ज़िंदगी का

ख़ूबसूरत दौर था

ज़िंदगी में बहुत बरसों तक

खाता रहा ज़र्दे वाला पान

लेकिन

उधार के उन

मघई पानों की ख़ुश्बू

आज भी

मुँह में ताज़ा है।

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