Tuesday, September 17, 2024

आवारागर्दी

 

आवारागर्दी

 

पुरानी दिल्ली की गलियों में

अक्सर आवारागर्दी करता

कई बार बिना किसी काम के

घंटो गलियों में घूमता रहता

और उठाता रहता लुत्फ़

बाज़ार और दिलचस्प लोगों का,

चूड़ीवालान में घुस कर

कभी नई सड़क

तो कभी जामा मस्जिद निकल जाना

उस समय नहीं थी

कोई ज़िम्मेदारी

सिर्फ सैर सपाटे को निकलता,

गलियों में गोश्त की दुकानों पर लटके

बकरों के निर्जीव शरीर

 कसाई के मैले कुर्ते पे

जमी ख़ू की बूँदें

रुमाली रोटी ओर कबाब की ख़ुश्बू

घुस जाती नथुनों में

दड़बेनुमा घरों के दरवाज़ों पर

बँधे बकरे और टहलते मुर्गे

जो अक्सर कुछ दिनों बाद

हो जाते गायब उन दरवाज़ों से,

टाट के परदों के पीछे की ज़िंदगी को

जानने की जिज्ञासा

आख़िर कैसे रहते हैं ये लोग ?

कौन हैं ये लोग जो खा जाते हैं

अपने ही पालतू जानवरों को।

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