काली मस्जिद
पुरानी दिल्ली में
अपनी नानी के मकान की छत से
जुडी है मेरी अनगिनत यादें
शामें अक्सर छत पर ही गुज़रती थीं
और छत से ही दिखाई पड़ता था
हमदर्द दवाख़ाना
जामा मस्जिद की दीवारें
गुरूद्वारे के गुम्बद
और
सबसे नज़दीक तुर्कमान गेट की
काली मस्जिद ,
जिसकी अज़ान घर में ही सुनाई पड़ती
नज़दीक होने के कारण उन गुम्बदों से
हो गया था मेरा परिचय
हक़ीक़त में स्कूल जाते वक़्त
और स्कूल से लौटते वक़्त
काली मस्जिद के
बहुत क़रीब से गुज़ाता हमारा ताँगा
गली के मुहाने से ही
नज़र आती काली मस्जिद ,
कई बार मन हुआ
कि जाऊँ उस मस्जिद में
और एक दिन घुमते घुमते पहुँच गया
काली मस्जिद तक
पर नहीं चढ़ पाया सीढ़ियाँ मस्जिद की
लौट गया था चुपचाप
किसी ने मुझे रोका हो
ऐसा भी मुझे याद नहीं।
कवि - इन्दुकांत आंगिरस
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