चुन्नी लाल पतंग वाला
गली आर्यसमाज के
नुक्कड़ पर
छोटी-सी दुकान थी
चुन्नी लाल पतंग वाले की
जहाँ लगभग हर शाम
जाता था
ख़रीदने पतंग और मांजा
अक्सर लगी रहती थी भीड़
उसकी दुकान पर
रंग-बिरंगे मांजों की
भरी हुई चर्खियाँ
सजी रहती थी
दुकान पर
मांजा नापने के लिए गज़ का
नहीं
बल्कि अपने हाथों का इस्तेमाल
कानो में गूँजती थी
मिली-जुली आवाजें
चुन्नी... दो आने का लाल
मांजा
चुन्नी... चवन्नी का हरा
मांजा
चुन्नी... अठन्नी का पीला
मांजा
चवन्नी का मांजा
लपेटता था अपने बायें हाथ
के
अंगूठे और कनिष्ट ऊँगली में
फुर्ती से घूमता था उसका
हाथ
शिव के डमरू की तरह
और तब दो आने
चवन्नी और अठन्नी के हिसाब
से
अचानक जाता था थम उसका हाथ,
बहुत मांजाख़रीदा चुन्नी लाल से
लेकिन आज तक समझ नहीं पाया
उसका मांजा नापने का मापदंड।
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