Monday, September 16, 2024

Tamil _गंगू तेली। கங்கு

 गंगू तेली।

  கங்கு 

तेरी =

எண்ணெய்             வியாபாரி

 ----------_----------

 ராம் பாபு சாட் மசலா கடை அருகில்

கங்கு எண்ணெய் வியாபாரி கடை.

 கடைத்தெரு சீதாராமில்

எனக்கு 

 ஏதோ துப்பறியும் இடம் போல்  இருக்கிறது 

அவருடைய ஷா கடையில் இருக்கும் வண்ண வண்ண

 எண்ணெய் புட்டிகள் 

 வித விதமான எண்ணெய்கள்.

 மணங்கள்‌

அந்த காலத்தில் நான் அறியாதவை.

 வண்ண வண்ண எண்ணெய்களின்

 பெயர்கள் 

 எள், வேர்க்கடலை , விளக்கெண்ணெய் 

சூரிய காந்தி, மல்லிகை ரோஜா,

பாதாம்,  மேலும் எத்தனையோ வித எண்ணெய்கள்.

இன்றும் எண்ணெய் 

தேய்க்கும் பொழுதெல்லாம் 

 நினைவில் வருகிறது 

 கங்கு எண்ணெய் வியாபாரி கடை.

Sunday, September 15, 2024

फ़्लैश बैक -कोचवान मानसिंह

 कोचवान मानसिंह


मेरे ताँगे का कोचवान मानसिंह 

मंझला क़द और था वो मोटा 

रंग था उसका काला 

जिस पर सफ़ेद 

नेहरू टोपी , कुरता - धोती 

ख़ूब फ़ब्ती

बायीं तरफ से माथा था पिचका 

मुँह मैं सदा  पान या गुटका 

एक हाथ में चाबुक 

और दूसरे में लगाम 

बाज़ार सीता राम से 

तुर्कमान गेट तक का 

ताँगे का सफ़र  

होता था बहुत रोमांचक 

कोचवान ज़ोर ज़ोर से 

जुमलों को उछालता  -

ज़रा हट के , ओ बाबू जी 

ओ मौला जी ..ओ बीबी 

ओ तेरी बहिन की ...

और ताँगा तीर की तरह 

आगे बढ़ जाता 

राहगीर झट रास्ता देते 

बाजू में सरक जाते 

तुर्कमान गेट पार करते ही 

ताँगा बाल भवन की 

ख़ाली सड़क पर 

दौड़ पड़ता और २० मिनट में 

पहुँच जाता रॉउज़ ऐवेन्यू 

आंध्र स्कूल के गेट पर ,

ताँगे से कूद हम झट-पट 

चढ़ जाते थे स्कूल की सीढ़ियाँ ,

आज बरसों बाद खड़ा हूँ 

स्कूल की सीढ़ियों के सामने 

स्कूल की छुट्टी हो गयी है 

और बच्चें स्कूटर , कारों 

और स्कूल बस  में 

सवार हो कर लौट रहें हैं 

अपने - अपने घर ,

अब ताँगे नहीं चलते 

नहीं है कोचवान मानसिंह 

न उसका घोडा 

न चाबुक है और न लगाम 

स्कूल बस में 

बच्चें बैठें हैं बिलकुल शांत। 



कवि - इन्दुकांत आंगिरस 


Tamil _ गुल्ली डंडा - கிட்டிப்பில்

 गुल्ली डंडा। 

கிட்டிப்பில்

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 கிட்டிப்பில்

என்னுடைய  பிரியமான  விளையாட்டு.

 என்னுடைய நண்பர் 

 ராமகோபாலனுக்கு 

கால்பந்து விருப்பம்.

 அவருடைய மூக்கு பக்கோடா மாதிரி.

 குள்ள உருவம்.

 அ

ஆனால் இந்த விளையாட்டில்  ப

நிபுணர் (மாஸ்டர்).

 குரங்கு மாதிரி தோற்றம் 

 

 ஓவியம் 

மிக அழகாக வரைவான்.

 தில்லியின்  பழைய 

 ராம்லீலா மைதானத்தில் 

பல முறை கிட்டிப்புல் 

 விளையாடிய இருக்கிறோம்.

 அந்தக் காலத்தில் இது தான் ஏழைகள் 

 விளையாட்டு.

 ஆனால் நான் 

 அந்த அளவிற்கு ஏழை கிடையாது.

 மற்ற விளையாட்டுகளும் 

 விளையாட முடியும்.

 ஆனால் கிட்டிப்பில் 

 விளையாடுவதில் ஒரு தனி மகிழ்ச்சி தான்.

 எனக்கு நினைவு இல்லை

 நான் அதனால் தான் வாழ்கிறேன்.

எனக்கு எப்பொழுதுமே

 அது பிரியமான விளையாட்டு தான்

Saturday, September 14, 2024

फ़्लैश बैक - रौशन दी हट्टी

 रौशन दी हट्टी 


रौशन दी हट्टी 

मेरे लिए 

किसी जादूनगरी से कम नहीं थी 

जहाँ रंग - बिरंगी 

किती ही तरह की  टॉफ़ियाँ  

चॉकलेट , लॉलीपॉप्स 

गोलियाँ 

रंग - बिरंगें  काग़ज़ों 

और 

पन्नियों में लिपटी 

खिलखिलाती रहतीं 

और मैं अपने 

स्कूल के ताँगे मैं 

बैठने से पहले रोज़   

१०- २० पैसे की 

मिठाई की गोली 

उससे  ख़रीदता 

और ख़ुशी ख़ुशी 

अपने ताँगे मैं सवार होता ,

आज बरसों बाद 

रौशन दी हट्टी के

 सामने खड़ा हूँ 

गोरा - चिट्टा दूकान का मालिक 

अब हो गे है बूढा 

शायद उसने मुझे नहीं पहचाना 

मैंने अपने मनपसंद 

कई तरह की 

मिठाई की गोलियाँ उससे ख़रीदी 

और रामलीला ग्राउंड मैं जा कर 

गुल्ली - डंडा और क्रिकेट खेलते 

बहुत से बच्चों मैं बाँट दी ,

मिठाई की गोलियाँ 

अपने - अपने मुँह मैं डाल 

बच्चें ख़ुशी ख़ुशी रम गए 

फिर से अपने अपने खेल मैं 

,मैं वही बैठे सूरज डूबने तक 

देखता रहा उनका खेल 

और 

उनके खिलखिलाते चेहरे ,

ज़मीन पर बिखरी 

रंग - बिरंगी पन्नियों मैं 

जगमगा उठी थीं 

मेरे बचपन की अनगिनत यादें। 


कवि - इन्दुकांत आंगिरस 


Friday, September 13, 2024

लघुकथा - सालगिरह मुबारक

 लघुकथा - सालगिरह मुबारक 


" सालगिरह मुबारक हो हिन्दी बहिन ".. उर्दू ने नक़ाब उठाते हुए कहा।  

- "  बहुत धन्यवाद  उर्दू  बहिन  , एक तुम्हीं हो जो मुझे अभी तक बहिन कहती हो वरना आज के दौर में इतना लम्बा रिश्ता कौन निभाता है ? " हिन्दी  ने  मुस्कुरा   कर जवाब दिया 

- " अरे  ये सब छोड़ो , आज  तो जश्न का दिन है।  आज तो तुम्हें ख़ूब तोहफ़े मिलेंगे।  काश कोई हमारी भी सालगिरह  मनाता। ख़ैर तुम तो ज़िंदगी की मौज  लो। " उर्दू  एक साँस में बोल गयी।

- " मेरे लिए तो जिन्दगी सज़ा बन चुकी है , तुम मौज की बात कर रही हो " हिन्दी ने मायूसी से कहा। 

- " जिंदगी नहीं ज़िंदगी बोलो मेरी बहिन , क्या तुम मुझे भूलती जा रही हो ? " उर्दू  शिकायती लहज़े में बोली। 

- " अरे , कोई बोलने दे तब  तो बोलूँ  ,  जैसे ही  नुक़्ता लगाती हूँ , लोग ज़बान काटने को तैयार रहते हैं। " हिन्दी  ने  दबी ज़बान में कहा। 

- " अच्छा , ये तो ज़ुल्म है , तो मतलब अब हमारा गंगा - जमुनी प्रेम ख़त्म  ? " उर्दू ने अकुलाते  हुए पूछा। 

- " लगता तो ऐसा ही है बहिन  फिर भी मेरी कोशिश रहेगी जब तक निभा सकूँ ...." हिन्दी ने बुझे स्वर में कहा।   


दोनों बहिनों ने  एक - दूसरे  की  कौली भरीं और अपने अपने रास्तों पर मुड़ गयीं। 



लेखक - इन्दुकांत आंगिरस 

       


लघुकथा - आख़िर तुम हो कौन ?

 लघुकथा - आख़िर तुम हो कौन ?


काली रात का सीना चीर कर  सूरज की किरणों ने धरती की पेशानी चूमी तो धरती खिलखिला उठी। सूरज की रौशनी से ज़र्रा - ज़र्रा जगमगा उठा   लेकिन एक बरगद के नीचे एक काली छाया सिहर उठी। कोई उसके वसन खींच रहा था  , तो कोई उसको घसीट रहा था। कोई उसे सजा रहा था, तो कोई उसे फुसला रहा था।  कुछ लोग तो उसका अपहरण करने की फ़िराक़ में थे और कुछ उसे कोठे पे बैठाने की कोशिश में जुटे थे। दूर से नज़ारा  देखते कुछ फ़िरंगी उसके वजूद को तोड़ने की कोशिश में लगे थे। काली छाया की दर्दनाक कराह सुन  कर मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उसके क़रीब  जा कर उससे पूछा ," आख़िर तुम हो कौन ? "  छाया सकुचाते हुए धीरे से बुदबुदाई - " जी...जी...मैं  हिन्दी हूँ   और आज मेरा जन्मदिन है। " 


लेखक -  इन्दुकांत आंगिरस

फ़्लैश बैक - बर्फ़ के गोले

 बर्फ़ के गोले 


कटरा गोकुल शाह के 

नुक्कड़ पर 

था बर्फ़ के गोले वाले का ठेला 

नीले , पीले , लाल , गुलाबी  

रंग - बिरंगी शरबत की बोतलें 

सजी रहती थीं उसके ठेले पर 

और ठेले के बीचों बीच 

बर्फ़ को छीलने का रंदा 

बर्फ़ के गोलों का 

अपना अलग था मज़ा 

बर्फ़ के सफ़ेद गोले पर 

उँड़ेला जाता था रंगीन शरबत 

और उसे लेकर मैं चूसता हुआ 

लौट पड़ता था घर की ओर 

घर तक पहुँचते - पहुँचते 

बर्फ़ का शरबती गोला 

फिर बन जाता था सफ़ेद 

ज़िंदगी में क़िस्म - क़िस्म की 

सैकड़ों लाजवाब आइसक्रीम खाईं 

लेकिन उस बर्फ़ के गोले -सा स्वाद 

मिला नहीं कभी भी। 


कवि - इन्दुकांत आंगिरस 

फ़्लैश बैक - साइकिल

 साइकिल  


आज  भी  

भूला नहीं हूँ वो दिन 

जब पहली बार 

चलाई थी साइकिल  

शुरु  में कैंची की चाल 

फुड़वाये थे गोडे

छिलवाई थी खाल  

ख़ाली सड़क पर टर्न टर्न 

साइकिल की घंटी के संगीत से 

दिल होता था बाग़ बाग़  

साइकिल के पहिये की 

रफ़्तार के साथ 

बढ़ जाती थी दिल की धड़कन 

रोमांच से ,

आज १२० किलोमीटर की रफ़्तार से 

दौड़ता हूँ मोटर - कार 

लेकिन कोई रोमांच 

महसूस नहीं होता 

और अफ़सोस कि

अब मुझसे चलाई नहीं जाती 

साइकिल 

बस देख कर साइकिल सवारों को 

भरता हूँ आह 

और याद करता हूँ 

अतीत का रोमांच। 


कवि - इन्दुकांत आंगिरस 

Flash Back _ Tamil _ रामबाबू चाट वाला - ராம் பாபு சாட் மசலாக்காரன்.

 ராம் பாபு சாட் மசலாக்காரன்.

+++++++++++++++

ராம் பாபு 

 மசாலாக்காரன் 

சீதாராம்  கடைத்தெருவில் புகழ் பெற்றவன்.

 அவனுடைய சாட் மசாலாவின்  சேவையிலும் பெயரிலும் ஒரு  மாயாஜாலம் இருந்தது.


 எப்பொழுதுமே கூட்டமாக இருக்கும்.

 பெரும்பாலும் சிறுமிகள் கூட்டம்.

உருண்டையான பூரியில் தண்ணீர் 

புளிப்பாக காரமாக..

அவருடைய மசாலாவிற்கு முன்

 மற்றவை  ருசியில்லாத பண்டமே.

. நானும் எப்பொழுதாவது அந்த உருண்டை பூரியை ருசிப்பேன்.

இப்பொழுது சாப்பிடுவதில்லை.

ஆனால் அந்த கடைக்கருகில் செல்லும் போது

 நாக்கில் எச்சில் ஊரும்.

-----

 மொழிபெயர்ப்பு 

சே. அனந்த கிருஷ்ணன்.

अद्भुत प्रेम

 ' अद्भुत प्रेम ' -मेरी  नज़र में 


बैंगलूर के चर्चित कवि  राही राज़ द्वारा रचित काव्य संग्रह ' अद्भुत प्रेम ' यक़ीनन अद्भुत है। प्रेम का ज़िक्र चलते ही ज़ेहन में कुछ प्रेम कथाएँ ताज़ा हो जाती हैं  मसलन राधा-कृष्ण , हीर - रांझा , लैला मजनू  , शीरीं - फ़रयाद , रोमियो - जूलियट , महाबल- मलय सुंदरी  , शकुंतला-दुष्यंत ,  ,रानी रूपमती-बाज़  बहादुर , सलीम-अनारकली , सोहणी-महिवाल आदि। इन सभी प्रेम कथाओं में प्रेम के अनेक अनदेखे रूप देखने को मिलते हैं। अधिकांश प्रेम कथाओं का अंत दुखद ही  होता है , लेकिन सदियों से लोग प्रेम करते आये हैं और करते रहेंगे क्योंकि प्रेम हो जाता है किया नहीं जाता।  किसी कवि ने कहा है - 

जो मैं ऐसा जानती प्रीत करे दुःख होय

नगर ढिंढोरा पीटती प्रीत न कीजो कोय 


' अद्भुत प्रेम ' पुस्तक का प्रारम्भ सरस्वती वंदना से किया गया है।  प्रेम में डूबा हुआ कवि  माँ सरस्वती  को भूला नहीं है बल्कि यूँ कहिए  कि माँ सरस्वती के प्रति कवि  नेअपना प्रेम भाव कुछ यूँ प्रकट किया है -


मुझ राही को , राह  आपकी  मूरत दिखती रहें ,

मेरे नैनों में बस  आपकी  सूरत सदा बसती रहें।   


प्रेम करना , प्रेम को जीना और प्रेम पर कविता लिखना , बहुत उलझे हुए काम हैं जिन्हें राही राज़ बड़ी सुगमता से कर जाते हैं।  प्रेम की कोई परिभाषा नहीं होती , उसका कोई नाम नहीं होता , प्रेम तो बस एक अहसास होता है।  प्रेम एक समुन्दर होता है जिसमें डूबते तो सब हैं लेकिन उस पार विरले ही उतर पाते हैं।  प्रेम बहुत कुछ कहता है , प्रेम बहुत कुछ कहलवाता है और रह जाता है जो अनकहा , वो भी होता है प्रेम या यूँ  समझें वो ही होता है प्रेम , लेकिन समझे उसे कौन ?    प्रेम की दो बूँदें जलते रेगिस्तान को भी जीवंत कर देती हैं। 

कवि राही राज़ ने अपना काव्य संग्रह ' अद्भुत प्रेम ' अपनी धर्म -पत्नी श्रीमती प्रीती राही को समर्पित किया है जो  उनकी प्रेयसी भी है । पत्नी का प्रेयसी भी बन जाना अपने आप में एक सुखद अनुभव है और यही बात इस प्रेम काव्य  को विशिष्ट बना देती है। 81  कविताओं की इस पुस्तक में पाठक को प्रेम के विभिन्न रंग देखने को मिलेंगे।  संकलन की अधिकांश कविताएँ प्रेम पर हैं। । बहुत -सी कविताओं में गिले - शिकवे , पति - पत्नी के बीच की नोक - झोंक , प्यार मनुहार , रूठना - मनाना , शिकवा - शिकायत होने के बावजूद दोनों एक दूसरे से प्रेम करते हैं और  इसमें कोई दो राय नहीं कि ये पति - पत्नी वाला प्रेम बहुत खिला खिला - सा है। बानगी की रूप में  इसी पुस्तक से कुछ उद्धरण देखें -

' माना   कि हम  दोनों ख़ूब लड़ते हैं , झगड़ते हैं ,

मगर हम दोनों एक - दूसरे को ख़ूब समझते हैं। ' 


'तेरी गोरी काया , और मन की चंचल माया 

मैं उलझ कर रह जाता हूँ 

मैं मूक , बधिर बन जाता हूँ 

देखता हूँ तुम्हें , तो देखता ही रह जाता हूँ। '


'एक झोका तुम्हारे  प्यार का ,

अहसास का , जिधर से गुज़रेगा 

वो तुम्हारे प्यार में , गुलाब 

सदा की लिए गिरफ़्तार हो जायेगा '


' तुम्हारा मेरा जन्म जन्म का रिश्ता हैं , 

इस रिश्ते को मैं रेशम की डोर कहता हूँ। '




इस प्रेम कहानी का पति चाँद तारे तोड़ कर लाने की बात नहीं करता लेकिन प्रेमी अपनी प्रेयसी के क़दमों में रोज़ चाँद - सितारे बिछाता है।

' क्या कहती हो , 
तुम कहो तो , चाँद  पर ले जा सकता हूँ  ' 

 इस प्रेम कहानी का प्रेमी , प्रेमी अधिक है पति  कम। इसी कश्मकश में कवि भी है।  अपने प्रेम में कभी वह पत्नी को ढूँढता है तो कभी प्रेयसी  को , लेकिन  उसके दामन का प्रेम समाप्त नहीं होता।  कवि ख़ुद इस बात को स्वीकार करता है कि ,

'  हक़ीक़त ये है कि पत्नी और प्रेमिका ,
 एक ही सिक्के के दो पहलू हैं   
कौन कम , कौन ज़ियादा है 
कहना बहुत मुश्किल है ' 

हो सकता है कि अधिकांश लोग कवि के इस जुमले से सहमत न हो। अक्सर  लोग  प्रेयसी और पत्नी को रेल की पटरियों की तरह मानते है लेकिन प्रेम की ट्रेन तो दोनों पटरियों पर दौड़ती है। दुष्यंत कुमार का ये शे'र  देखें - 

तुम किसी रेल - सी  गुज़रती हो 
मैं किस पल - सा थरथराता हूँ । 

टेक्नोलॉजी की इस दौर में प्रेम करना और प्रेम जताना बहुत ही सुलभ हो गया है। वत्सप्प पर सुबह से शाम तक कितनी ही बार प्रेम कर लीजिये , न हींग लगे न फ़िटकरी।  फेस बुक  पर  प्रेम की अनगिनत चेहरें  मिल जायेंगे , जो भी आपको अच्छा लगें उससे प्रेम कर लीजिये। 
' अद्भुत प्रेम '  का कवि राही राज़ तो तन का नहीं मन का प्रेम चाहिए लेकिन प्रेयसी का फ़ोन तो लगना ही चाहिए।  इसी पुस्तक से - 

' एक ऐसा  प्रेम ,
जो सोचने की लिए विवश कर दे,
तन का नहीं , मन का प्रेम ,
जो फ़ोन करने की लिए विवेश कर दे।  ' 

और जब फ़ोन से कवि का दिल नहीं भरता तो अपने दिल की बात कहने के लिए कुछ यूँ लिखते हैं -  ' 

' अब फोन नहीं करना , बैठ कर बाते करना हैं
 बहुत दिन हुए फ़ोन पे बातें करते , क्यों ना रु - ब -रु  हो लूँ  ? 


प्रेम में दीवाना हो जाने की बाद प्रेमी को बस अपनी प्रेयसी दिखाई देती है।  वह उसके प्रेम में इतना अँधा हो जाता है कि उसे भगवान् भी दिखाई नहीं पड़ता।  अब तो उसका सारा जहान बस उसका महबूब होता है।  मछली की आँख में तीर मारने वालों को मछली भी दिखाई नहीं देती। प्रेमी  आठो पहर बस अपने प्रेमी की ख़्यालों  में डूबा रहता है।  प्रेम की इस दीवानेपन का मंज़र इन पंक्तियों में देखें - 


' ना मंदिर ना मस्जिद न गुरुद्वारा ही दिख रहा है ,
हर  वक़्त   तेरा    ही  हमें   ख़याल आ रहा है। '



राही राज़  जी मूलतः बेगूसराय , बिहार की रहने वाले हैं।  अपनी मातृ भूमि  पर   किसको गर्व नहीं होता।  कवि ने खुले मन से  अपने आप को  बिहारी बताते हुए  बहुत ही सुन्दर शब्दों में अपना परिचय दिया हैं।  इसी पुस्तक से ये पंक्तियाँ देखें -

'हम बिहारी बांके बिहारी हैं
हम बिहारी , अटल बिहारी हैं 
हम बिहारी , इंसाफ़ की खिलाड़ी हैं 
हम बिहारी , अपनी घरवाली की रखवाली करते हैं।  

इस काव्य संग्रह में  प्रेम की अलावा कुछ दीगर विषयों पर भी दिलचस्प कविताएँ हैं ,जिनमें  ' पति ' , आईना , सास , हिसाब माँगता है , धर्म ,दर और दरवाज़ा , बेटी , बिहारी , मन , झूठ , आत्महत्या पल की , मोक्ष , आदि जिनमें राही राज़ ने समाज में व्याप्त कुरीतियों और विकृतियों को उजागर किया है।  उन्होंने राजनीति पर भी कटाक्ष किया है। अपनी सामजिक रचनाओं की ज़रिये उन्होंने ये साबित कर दिया हैं कि वे सिर्फ़ प्रेम पर ही कविताएँ नहीं लिखते हैं अपितु इस समाज  के  काले चेहरों का भी पर्दाफ़ाश कर सकते हैं। बक़ौल फ़ैज़ अहमद फ़ैज़  

' और भी दुःख हैं ज़माने में मुहब्बत की सिवा
 राहतें और भी हैं वस्ल कि राहत की सिवा  ' 

इसी पुस्तक से सामाजिक सरोकारों  से जुड़े कुछ उल्लेखनीय उद्धरण देखें -   

बढ़ाना  ही है तो  नफ़रत नहीं ,
प्रेम को बढ़ाओ ,
जीवन को शान्ति दो ,
इसी में जग का कल्याण होगा। 

एक दीपक तुम जलाओ ,
एक दीपक मैं जलाता हूँ 
मन में जो बैठा अँधेरा है
उसे मिलजुल कर भगाता हूँ 

मैं कोई नेता नहीं ,
मैं तो क़लम का सिपाही हूँ ,
तुम न्याय की राह गर भूल गए तो 
याद दिलाना धर्म , हमारा तो बनता है। 


राही राज़ इस दुनिया से नफ़रत को मिटाना चाहते हैं और अपनी रचनाओं के ज़रिये इस दुनिया  को  प्रेम का पैग़ाम देते हैं। प्रेम की साथ साथ वो शान्ति का सन्देश भी देते हैं। वो इस दुनिया को अपनी कविताओं की माध्यम से स्वर्ग में तब्दील करना चाहते हैं और यह सब काम वो अकेले नहीं बल्कि आप सब की साथ मिल कर करने की इच्छा रखते हैं। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि उनकी कविताएँ इस दुनिया से नफ़रत मिटने में कामयाब हो पाएंगी।  राही राज़ के साथ मिलकर हम इस दुनिया का अँधेरा दूर करने में  ज़रूर सफल हो पाएंगे।  राही राज़ स्वयं को कोई नेता नहीं अपितु क़लम का सिपाही बताते है और क़लम के सिपाहियों ने हमेशा युद्ध जीते हैं। 
क़लम का सिपाही होने की नाते वो सियासतदारों को न्याय और धर्म का पाठ पढ़ाना चाहते हैं  ' अद्भुत प्रेम ' काव्य संग्रह के लिए उन्हें अनेकानेक शुभकामनएँ। इन कविताओं का लुत्फ़ उठायें और अपने मित्रों से साझा करना न भूलें। 


सादर 
इन्दुकांत आंगिरस 
फ़िल-वक़्त  - ज़ेरे आसमान 
13 सितम्बर , 2024





फ़्लैश बैक - गुल्लक

 गुल्लक 


बचपन की गुल्लक

अक्सर भरने से पहले ही

फोड़ दी जाती थी 

कभी पतंगों 

और 

कभी मांजे के लिए 

आज बैंक के खाते में 

लाखों रुपए हैं

ज़रूरत पड़ने पर 

खर्च भी किये जाते हैं 

लेकिन जो सुख 

बचपन में 

मिटटी की गुल्लक 

को फोड़ कर 

उन सिक्कों को गिनने में 

और फिर उनसे 

पतंग और मांजा 

ख़रीदने में मिलता था 

वैसा सुख 

आज हज़ारों रूपये की 

शॉपिंग के बाद भी 

नहीं मिलता। 


कवि  -  इन्दुकांत आंगिरस 

Thursday, September 12, 2024

हिन्दी

 हिन्दी 


मैं भारत की बेटी,

आपकी  आपनी हिन्दी हूँ 

हाँ , हिन्दी हूँ मैं हिन्दी हूँ 

भारतीय संस्कृति सभ्यता के 

ललाट  पर सजी मैं बिंदी हूँ 

हर कोई मुझे सजा रहा है 

मुझे वसन नए पहना रहा है 

 शोभा हूँ मैं इस युग की

नहीं काग़ज़ की चिन्दी हूँ  

हाँ , हिन्दी हूँ मैं हिन्दी हूँ 

मैं भारत की बेटी  

आपकी अपनी हिन्दी हूँ ,  

हर दिल को हर्षाती हूँ मैं 

नित्य  फूल नए खिलाती हूँ मैं  

सभी  के मन को भाती हूँ मैं

काम सभी के आती हूँ मैं 

मुझको पढ़ना लिखना सीखों 

मुझसे तुम संवरना  सीखो  

सुथरी हूँ , नहीं गन्दी हूँ 

हाँ , हिन्दी हूँ मैं हिन्दी हूँ 

मैं भारत की बेटी  

आपकी अपनी हिन्दी हूँ। 

Flash Back - दादा जी - ஹோமம் செய்வது

 தாத்தா 

(அப்பாவின் அப்பா)

+++++++++++

 தன்இரண்டு

கைகளால்

காய்கறி நிறைந்த தட்டை  எடுத்துக் கொண்டு சிறிதளவும் தயக்கம் இல்லாமல்  மைல் கணக்கில் நடந்து செல்வது

 எனது உழைப்பாளி தாத்தா வேலைசெய்ய  ஏமாற்றுவது கிடையாது.


வீட்டின் அதிகமான வேலை

கோதுமை காயப்போடுதல்

கட்டிலில் கயிறு பின்னுதல்

 தர்க்கமின்றி  கட்டில்  பின்னுதல்


வட்ட மேசையில் சம்ஸ்கிருதம் -ஆங்கிலம்

 அகராதி தயாரித்தல் 


 ஏதோ ஒரு மாணவனுக்கு  சம்ஸ்கிருதம் கற்றுத் தருதல்

 வீட்டிற்கு  வரும் 

விருந்தினர்களை  வரவேற்றல்

 தினந்தோறும் வேதத்தின் படி சந்தியாவந்தனம் செய்தல்


காலை நேரம் சம்ஸ்கிருத ஸ்லோகங்கள் ஓதுதல்


 பண்டிகை நாட்களில் 

 ஹோமம் செய்வது


 புரோஹிதராக பல இணைகளுக்கு திருமணம் செய்விப்பது.


 அவருடைய 

முதுகில் அமர்ந்து 

மிகவும் விருப்பத்துடன் தடவுதல்

 ஆனால் சம்ஸ்கிருத பாடங்களை 

 விருப்பமின்றி திருப்பிக் கூறுதல்

அதனால் சம்ஸ்கிருதம் கற்றுக் கொள்ளவில்லை.

 இன்று தனிமையில் நினைக்கிறேன் 

 தாத்தா இருப்பது எவ்வளவு  கடினமாக இருக்கும்.

 சே. அனந்த கிருஷ்ணன் தமிழாக்கம்


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தாத்தா 

(அப்பாவின் அப்பா)

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 தன்இரண்டு

கைகளால்

காய்கறி நிறைந்த தட்டை  எடுத்துக் கொண்டு சிறிதளவும் தயக்கம் இல்லாமல்  மைல் கணக்கில் நடந்து செல்வது

 எனது உழைப்பாளி தாத்தா வேலைசெய்ய  ஏமாற்றுவது கிடையாது.


வீட்டின் அதிகமான வேலை

கோதுமை காயப்போடுதல்

கட்டிலில் கயிறு பின்னுதல்

 தர்க்கமின்றி  கட்டில்  பின்னுதல்


வட்ட மேசையில் சம்ஸ்கிருதம் -ஆங்கிலம்

 அகராதி தயாரித்தல் 


 ஏதோ ஒரு மாணவனுக்கு  சம்ஸ்கிருதம் கற்றுத் தருதல்

 வீட்டிற்கு  வரும் 

விருந்தினர்களை  வரவேற்றல்

 தினந்தோறும் வேதத்தின் படி சந்தியாவந்தனம் செய்தல்


காலை நேரம் சம்ஸ்கிருத ஸ்லோகங்கள் ஓதுதல்


 பண்டிகை நாட்களில் 

 ஹோமம் செய்வது


 புரோஹிதராக பல இணைகளுக்கு திருமணம் செய்விப்பது.


 அவருடைய 

முதுகில் அமர்ந்து 

மிகவும் விருப்பத்துடன் தடவுதல்

 ஆனால் சம்ஸ்கிருத பாடங்களை 

 விருப்பமின்றி திருப்பிக் கூறுதல்

அதனால் சம்ஸ்கிருதம் கற்றுக் கொள்ளவில்லை.

 இன்று தனிமையில் நினைத்துப் பார்க்கிறேன் --

 தாத்தா போல் இருப்பது எவ்வளவு 

   கடினம் .

 சே. அனந்த கிருஷ்ணன் தமிழாக்கம்

' राम का अंतर्द्वंद ' लघु खंड काव्य - एक नज़र

 ' राम का अंतर्द्वंद ' लघु खंड काव्य  - एक नज़र 


' राम का अंतर्द्वंद '  लघु खंड काव्य के रचनाकार डॉ विनय कुमार सिंघल ' निश्छल ' मेरे बहुत घनिष्ठ मित्र हैं। ५१ छंदों का यह लघु खंड काव्य  विलक्षण है।  कवि ने राम के अंतर्मन के अंतर्द्वंद को इतनी सूक्ष्मता से उजागर किया है कि  शब्द किसी चलचित्र की भांति  आँखों के सामने तैरने लगते हैं। सहज और सरल शब्दों  में लिखा  गया यह खंड काव्य  कवि  के  समर्पण  ' भगवान् श्री राम के मनुष्य रूप को समर्पित  खंड काव्य ' के कारण  भी विशिष्ट बन पड़ा है।  अनेक राम कथाओं में मर्यादा परुषोत्तम श्री राम के देवता रूप का वर्णन तो देखने को मिलता है लेकिन एक साधारण मनुष्य के रूप में  श्री राम  की संवेदनाओं  को शब्दों में पिरोना बिलकुल वैसा ही है जैसे कोई रेगिस्तान की तपती  धरती को अपने आँसुओं से गीला कर दे। 


द्वन्द का घन  ,कभी न छाता 

यदि मैं यूँ , वनवास न पाता


श्री राम को अगर वनवास न मिला होता तो उनके अंतर्मन में अंतर्द्वंद की लहरें कभी न उठती। पत्नी सीता और अनुज लक्ष्मण को  वो अपने साथ चलने से रोक न पाए। श्री राम को सदैव इस बात का क्षोभ रहा कि उनके वनवास के कारण पत्नी सीता और अनुज लक्ष्मण को भी कष्ट सहना पड़ रहा है।  उन्हें रह रह कर  रावण द्वारा  सीता के हरण का पछतावा होता है। इसी खंड काव्य से ये पंक्तियाँ देखें - 


स्वर्ण -मृग ने छला  तुम्हें भी 

क्या घर में कोई छल पाता 

रह रह कर पछताते होंगे 

क्या घर तक रावण आ पाता 


उर्मिला और लक्ष्मण के विरह के लिए भी वे स्वयं को दोषी मानते है। अगर उन्हें वनवास न मिला होता  तो उन्हें वन न जाना पड़ता और लक्ष्मण को उनकी देख - रेख और रक्षा के लिए  उनके साथ वन में न रहना पड़ता । उर्मिला के मन की पीड़ा को कवि ने सुन्दर शब्दों में कुछ यूँ पिरोया है -


उर्मिल का आनन भीगा था 

यदि तुमने तब झाँका  होता 

लखन विरही न बनते ऐसे 

उर्मिल का दुःख आँका होता  



उन्हें  अयोध्या में रह रहे अनुज भरत और शत्रुघन की भी चिंता है।  श्री राम ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण अपना दायित्व समझते है और वन में रहते हुए भी उन्हें  राज - काज और अपने छोटे भाइयों की चिंता सताती रहती है। इसी खंड काव्य से - 


चिंता होगी , कही शत्रुघन 

और भरत क्या लड़ते होंगे 

राज - काज की कठिन डगर पर 

क्या संयम से , बढ़ते होंगे ?


उन्हें अपनी माता कौशल्या , सुमित्रा और   कैकेयी की  याद भी सताती है। उनके मन में माँ कैकेयी के प्रति कोई द्वेष की भावना नहीं है अपितु वो उनके दुःख से पीड़ित है।


कौशल्या माँ और सुमित्रा 

पुत्र - वियोग में गलती होंगी 

कैकेयी की , चिंता भी तो 

हिय तुम्हारें , पलती होगी 


इस अद्भुत रचना के सृजन  के लिए डॉ विनय कुमार सिंघल ' निश्छल ' बधाई के पात्र हैं। माँ सरस्वती और श्री राम की कृपा से वे इस अभूतपूर्व लघु खंड काव्य  ' राम का अंतर्द्वंद ' को पूर्ण करने में सफल हुए। इतने बड़े फ़लक की कहानी को ५१ सहज और सरल छंदों के माध्यम से जन जन तक  पहुँचाने के लिए हिन्दी साहित्य संसार सदैव  डॉ विनय कुमार सिंघल ' निश्छल ' का  आभारी रहेगी।  मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि   ' राम का अंतर्द्वंद '  लघु खंड काव्य हिन्दी साहित्य जगत  में नए प्रतिमान स्थापित कर पाने अवश्य सफल होगा। 



 इन्दुकांत आंगिरस 

बी - ४ / १७७ 

सफदरजंग एन्क्लेव 

नई दिल्ली  - ११००२९

मोबाइल - 9900297891

Wednesday, September 11, 2024

साकेत में उर्मिला और लक्ष्मण की भूमिका

 

साकेत में उर्मिला और लक्ष्मण की भूमिका

 

 अबला  जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी

 आँचल में है दूध और आँखों में पानी 

 

राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त की  ये कालजयी पंक्तियाँ  नारी जीवन के कटु यथार्थ को उजागर करती है। मैथिली शरण गुप्त का जन्म  3 अगस्त 1886 को झांसी से तीस किलोमीटर दूर चिरगांव कसबे में रामचरण सेठ के घर में हुआ था।  कविता उनको विरासत में मिली थी।  उनके पिता बृज भाषा में कविताएँ लिखते थे। स्वतंत्रता संग्राम के समय उनकी कृति ' भारत - भारती ' ने साहित्य जगत में नए प्रतिमान स्थापित किये और जन जन में  स्वंत्रता की चिंगारी जगाई . उनकी इस उपलब्धि पर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने उन्हें ' राष्ट्र-कवि 'की उपाधि से सम्मानित किया। मैथिली शरण गुप्त  को खड़ी बोली  का प्रथम प्रवर्तक माना  जाता है। उनका जन्मदिन 3 अगस्त कवि दिवस के रूप में मनाया जाता है।  उन्होंने अपने जीवन काल में 2  महाकाव्य, 19 खण्डकाव्य, काव्यगीत, नाटक  आदि का सृजन किया।  हिंदी के अलावा वे  बृज , बांग्ला ,  संस्कृत  और फ़ारसी भाषा के ज्ञाता थे। उन्होंने विशेष रूप से  पौराणिक आख्यानों  के नारी पात्रों  का पुनर्मूलयांकन किया  और उन्हें अपनी रचनाओं में नए रूप में प्रस्तुत किया हैं। नारी  पीड़ा को उजागर करते पात्रों में उर्मिला (साकेत महाकाव्य), यशोधरा (काव्य) और विष्णुप्रिया खण्डकाव्य विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

 

आज हम उनके महाकाव्य साकेत के पात्र  उर्मिला और लक्षमण पर चर्चा करेंगे।  इससे पूर्व कि हम इस विषय को आगे बढ़ाये , आइये एक नज़र साकेत महाकाव्य पर भी डाल लें। महाकाव्य ' साकेत ' का लेखन उन्होंने 1917  में आरम्भ किया और इसको पूर्ण कर 1931  में प्रकाशित किया।  साकेत  का नाम भी इसीलिए साकेत रखा गया क्योंकि अयोध्या नगरी का प्राचीन नाम साकेत था और इस महाकाव्य के माध्यम से कवि ने रामायण की कथा को नए परिप्रेक्षय में प्रस्तुत किया है। प्रारंभिक सर्गों में श्री राम को वन वनवास का आदेश , अयोध्यावासियों का क्रंदन एवं रूदन और बाद के सर्गों में लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला के वियोग का चित्रण हैं। अगर गुप्तजी ने  उर्मिला को  इस महाकाव्य का केंद्र न बनाया होता तो उर्मिला का नाम इतिहास के पन्नों में दबा ही रह जाता।  साकेत की रचना के  लिए उन्हें 1932  में मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्रदान किया गया।  साकेत महाकाव्य द्विवेदी युग का  सर्वश्रेष्ठ  ग्रन्थ  माना जाता है।

 

साकेत महाकाव्य  उर्मिला को केंद्र में रख कर रचा गया है। उर्मिला , सीता की छोटी बहिन और लक्ष्मण की पत्नी थी। एक किदवंती के अनुसार उर्मिला 14  वर्षों तक सोती रही थी ताकि  वनवास के दौरान उसके पति लक्ष्मण अपने भाई श्री राम और भाभी सीता  की  रक्षा कर सकें।  लेकिन साकेत में उर्मिला और लक्ष्मण को राजा और रानी न मान कर साधारण  स्त्री - पुरुष के रूप में प्रस्तुत किया है। लक्ष्मण तो अपने भाई - भाभी के साथ वनवास चले जाते हैं लेकिन उर्मिला अपनी ससुराल में अकेली रह जाती है।  पति लक्ष्मण के प्रति उसकी आस्था और संताप इन पंक्तियों में देखें –

मानस-मंदिर में सटी, पति की प्रतिमा थाप,

जलती-सी उस विरह में, बनी आरती आप

 

उसके मन में विरह का इतना दर्द था कि वह सब कुछ भूल चुकी थी।  अपने  मन मंदिर में पति की प्रतिमा को प्रतिष्ठापित करने के बार वह स्वयं आरती के दीप  की   लौ की  तरह जलती रही थी।  साकेत में चित्रित  उर्मिला और लक्ष्मण के दाम्पत्य जीवन के हर्दियस्पर्शी  प्रसंग और विरह  की मार्मिक अभिव्यक्ति पाठकों को झकझोर देती हैं।

 

आँखों में प्रिय-मूर्ति थी, भूले थे सब भोग,
हुआ योग से भी अधिक उसका विषम-वियोग!

आठ पहर चौंसठ घड़ी, स्वामी का ही ध्यान!
छूट गया पीछे स्वयं, उसका आत्मज्ञान!!

 

विरह की मर्मान्तक पीड़ा से उर्मिला जल रही थी।  विरह की नागिन उसे रह रह कर डसती  जाती थी।  वह सब कुछ भूल चुकी थी और उसे कोई भी भोग अच्छा न लगता था। उसे हर समय बस अपने स्वामी का ध्यान रहता और वे गुमसुम बैठ आंसू बहती रहती। आठों पहर उर्मिला , लक्ष्मण की यादों में डूबी रहती है ओर अपनी सुध - बुध भी भूल जाती है।  दूसरे  पात्र भी उसकी इस दयनीय स्तिथि से दुखी थे।

 

दोनों ओर प्रेम पलता है

सखी , पतंग भी जलता हैं , हां , दीपक भी जलता है।

 

प्रेम की जलन में जलते हुए उर्मिला पर प्रेम के अनेक रहस्यों से पर्दा  उठता है।  वह अपनी सखी के साथ अपनी विरह पीड़ा को साझा करते हुए उससे कहती है कि जब शमा से लिपटकर परवाने जलते हैं यानी जब दीपक में पतंगे जलते है तो दोनों तरफ प्रेम पलता है ,  अर्ताथ  प्रेम में पतंगे भी जलते है ओर दीपक भी । दोनों एक दूसरे के पूरक बन जाते हैं। जब तक दोनों एक दूसरे से लिपट नहीं जाते उन्हें चैन नहीं पड़ता।  

 

जब प्रकति अंगड़ाई लेती है , जब साँसों में वसंत उतरता है , जब  कलियाँ अपना घूंघट खोलती हैं ओर भौरें मदमस्त कलियों का रस पीते हैं , जब चाँदनी रात ह्रदय के तारों को झंकृत कर देती है  तो ऐसे में प्रिय की  याद किसको नहीं सताएगी , बदन की खुशबू मन को अधीर कर देती है तो उर्मिला भी कभी कभी अधीर हो उठती है ओर खुद से कहती है -

 

 

 

' मेरे चपल यौवन - बाल !

अचल अंचल में पड़ा सो , मचल कर मत साल।

बीतने दे रात , होगा सुप्रभात विशाल।,

खेलना फिर खेल मन के पहन के मणि माल। '

 

उर्मिला रात दिन  अपने पति लक्ष्मण के वियोग में तड़पती है।  नींद उसकी आँखों से उड़ चुकी है ओर जब नींद आती भी हैं तो उसके पति   लक्ष्मण उसके सपनों में आ जाते हैं।  सपनों में पति को देख वह लजा जाती हैं और अपना मुख लज्जा से उनकी छाती में छुपा लेती हैं।अपने पति लक्ष्मण के कार्य और बलिदान के लिए उर्मिला गौरान्वित है ।  इस कठिन समय में भी मधुर स्मृतियाँ उसका सम्बल बनी हुई हैं।

इस महाकाव्य का समापन उर्मिला और लक्ष्मण के मिलन से हुआ है लेकिन इसके पीछे उर्मिला के त्याग को नहीं भुलाया जा सकता। स्वयं दुखी रहते हुए भी उसने संयुक्त परिवार के प्रति  हँस हँस कर अपनी  ज़िम्मेदारी निभाई।  साकेत की ऐसी उर्मिला विश्व की हर नारी  के लिए अनुकरणीय हैं।

 

 

प्रियतम के गौरव ने

लघुता दी है मुझे, रहें दिन भारी।

सखि, इस कटुता में भी

मधुरस्मृति की मिठास, मैं बलिहारी!

 

 

 

डॉ  रवीन्द्रन टी

हिन्दी  विभागाध्यक्ष

संत जोसेफ प्री यूनिवर्सिटी कॉलेज

रेसीडेंसी रोड , बंगलुरु

Tamil - गाजर की काँजी - கேரட் ரச பானம்

 गाजर की काँजी।


கேரட் ரச பானம்.

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  என் பாட்டி 

 குளிர்காலத்தில் கேரட் ரச பானம்

 தயாரிப்பாள்.

 ஊடுருவும் கண்ணாடி கோப்பையில் 

அந்த கண்ணாடி ஊடுருவலில்

கேரட் சிவப்பு வண்ணம் 

 மனதிற்கு மிகவும் பிடிக்கும்.


மாடியில் குளிர்

 கால வெயிலில் 

 அமர்ந்து 

 கேரட் ரச பானம்

குடிக்கும் ஆனந்தம் 

அதற்கு நிகர்

 வாழ்க்கையில் அதிகமான சரங்கள் குடித்தாலும்

அந்த கேரட் ரச பாசனத்திற்கு இணை ருசி

 இன்றும் நாவில் புத்துணர்ச்சியாக இருக்கிறது.

மொழிபெயர்ப்பு ----

 எஸ். அனந்தகிருஷ்ணன்

Flash Back - बुढ़िया के बाल

 बुढ़िया के बाल 


हाँ , यही था इस दिलचस्प 

पदार्थ का नाम 

मिलते थे कई रंग में 

बुढ़िया के बाल 

गरम - गरम , कुछ चिपचिपे 

एल्युमीनियम  की 

एक गोल परात सी 

जिसके बीचो बीच 

होता था एक चक्का 

घुमाया जाता था चक्के को  

एक मिनट के लिए

और फिर 

बुढ़िया के बाल 

हो जाते थे खाने को तैयार 

मैं हफ़्ते मैं कम से कम दो बार 

ज़रूर खाता था  

चीनी में डूबे   

बुढ़िया के रंग - बिरंगे बाल 

अब नहीं मिलते हर जगह 

खाये हुए बुढ़िया के बाल 

गुज़र गए है सालों साल। 


कवि - इन्दुकांत आंगिरस 

Flash Back - काली मस्जिद

 काली मस्जिद 


पुरानी दिल्ली में 

अपनी नानी के मकान की छत से 

जुडी है मेरी अनगिनत यादें 

शामें अक्सर छत पर ही गुज़रती थीं 

और छत से ही दिखाई पड़ता था 

हमदर्द दवाख़ाना  

जामा  मस्जिद की दीवारें 

गुरूद्वारे  के गुम्बद 

और 

सबसे नज़दीक तुर्कमान गेट की 

काली मस्जिद ,

जिसकी अज़ान घर में ही सुनाई पड़ती 

नज़दीक होने के कारण उन गुम्बदों से 

हो गया था मेरा परिचय 

हक़ीक़त में स्कूल जाते वक़्त 

और स्कूल से लौटते वक़्त 

काली मस्जिद के 

बहुत क़रीब से गुज़ाता हमारा ताँगा 

गली के मुहाने से ही 

नज़र आती काली मस्जिद ,

कई बार मन हुआ 

कि जाऊँ उस मस्जिद में 

और एक दिन घुमते घुमते पहुँच गया 

काली मस्जिद तक 

पर नहीं चढ़ पाया सीढ़ियाँ मस्जिद की

 लौट गया था चुपचाप 

किसी ने मुझे रोका हो 

ऐसा भी मुझे याद नहीं। 


कवि - इन्दुकांत आंगिरस 


Sunday, September 8, 2024

वैश्विक लघुकथा पीयूष

 वैश्विक लघुकथा पीयूष के लोकार्पण में आपके सम्मिलित होने के लिए हार्दिक आभार। पुस्तक की सॉफ्ट प्रति के लिए कृपया इस लिंक को देखें - वैश्विक लघुकथा पीयूष: https://heyzine.com/flip-book/2536b17046.html  सादर- ओम गुप्ता, प्रधान 

Flash Back -कचौरी

 कचौरी 


कटरा गोकुल शाह के 

नुक्कड़ पर 

वो कचौरी वाला 

मुझे आज भी याद है 

एक इकन्नी में दो कचौरी 

साथ में मज़ेदार आलू की सब्ज़ी 

दोने में मिलती ,

दो कचौरी से 

कभी नियत नहीं भरती 

फिर दो कचौरी और खाई जाती 

जब  भी घर   आता  कोई मेहमान  

कचौरियों से की जाती 

उसकी ख़ातिरदारी 

उन कचौरियों की ख़ुश्बू 

और आलू की सब्ज़ी का ज़ाइक़ा 

मुँह से गया ही नहीं कभी।  

Flash Back कबूतर

 कबूतर 


मेरे घ्रर की बॉलकनी से 

लगभग दस फुट की दूरी पर थी 

सामने वाली चाल की बड़ी छत

जिस पर उड़ते थे 

रोज़ शाम को कबूतर 

रंग - बिरंगे कबूतर 

एक टोली कबूतरों की 

उड़ती एक किलोमीटर दूरी से 

आसमान में दोनों टोलियाँ

घुल - मिल जाती 

और फिर शुरू होता  

उन कबूतरों को वापिस बुलाने  का खेल 

ज़ोर ज़ोर से आवाज़ें लगती -

आओ ..  आओ ...आओ 

सीटियां बजाई जाती 

और  दो मिनट के बाद ही 

कबूतरों की टोली 

आपने आपने मालिकों की आवाज़ की 

दिशा में लौटती ,

कबूतरों के छत पर उतारते ही 

उनकी गिनती होती ,

मालिक एक निगाह  में  

ताड़ लेता उस कबूतर को 

जो दूसरी टोली का होता 

और ग़लती  से 

इस टोली के साथ आ गया होता 

तब कबूतर के 

असली  मालिक को 

अपना कबूतर वापिस लेने के लिए 

देनी पड़ती थी बड़ी रक़म 

जैसे आज भी कोई नेता दाल बदले 

तो चुकानी  पड़ती है बड़ी क़ीमत। 


कवि - इन्दुकांत आंगिरस 

Friday, September 6, 2024

Tamil Lessons

 भाग ---1.


 तमिल सर्वनाम और रूपांतर सीखिए:---


---उत्तम पुरुष 

मैं --नान्

 मेरा,मेरे मेरी --ऍन्नुडैय।

मुझे --ऍनक्कु, ऍन्नै।

से  के अनेक अर्थों के अलग अलग विभक्ति चिह्न है।

 से --आल् 

 मुझसे --एन्नाल

  से -इडमिरुंदु।

 मुझसे --ऍन्निडमिरुंदु।

 से --विड

 राम से बड़ा है --रामनैविड पेरियवन्।

 से by आल 

 राम से रावण मारा गया।== रामनाल् रावणन् कोल्लप्पट्टान।

से --इरुंदु 

  खड़ी बोली से    हिंदी बन गई।

 को  , के लिए ---क्कु ,आक,  

 रामको रुपये दो। --रामनुक्कु रूपाय कॊडु।

 अध्यापक के लिए चाय लाओ --

 आसिऱियरुक्काक तेनीर् कोंडुवा।

 में --इल 

घर में --वीट्टिल्

 जेब में --जेप्पियिल

 पर --मेल,

 मेज पर -मेजैयिन मेल।

 दीवार पर -चुवट्रिन मेल।

हे,अरे

 हे राम,--ஹே ராம்.

 अरे राम --अडे राम।

   कल उत्तम पुरुष  "हम".

 धन्यवाद --नन्रि।

 नमस्ते --वणक्कम्

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तमिल सीखिए उत्तम पुरुष सर्वनाम।

 भाग--2

हम  ---नांगळ्, नाम् 

 हमारा ---ऍंगळुडैय, नम्मुडैय।

  हमको --ऍंगळुक्कु,

 हम को दो। -ऍंगलुक्कु कोडु

 हमको --ऍंगळै 

 हमको बुलाओ।

 एँगळै कूप्पिडु।

 हमसे --एंगळिडमिरुंदु।


हमसे लो। एंगळिडमिरुंदु ऍडुत्तुक्कोळ्।


हमसे --ऍंगलाल्

हमसे यह काम किया गया ।

 एंगळाल् इंद वेलै चेय्यप्पट्टतु।


हमसे  ---एँगळैविड

 हमसे वह  वे बड़े हैं।

 एंगळै विड अवर् पेरियवर्।

 हमारे लिए --एंगळुक्काक

 हमारे लिए यह काम करो।

 एंगळुक्काक इंद वेलैयै चेय्।

हमारा ---एंगळुडैय 

 यह हमारा घर है।

 इदु एंगळुडैय वीडु।।

 यह हमारा देश है।

 इंदु नम्मुडैय नाडु।

 हममें --एंगळुक्कुळ्

हममें एकता है।

 नमक्कुळ् ऒट्रुमै उळ्ळतु।

 हमपर --नम्मेल्।

 हमपर विश्वास रखो।

 एंगळ् मेल् नंबिक्कै वै।

 सर्वनाम  हम ।

कल सर्वनाम -मध्यम पुरुष।

 नमस्ते। वणक्कम 

 धन्यवाद। -- नन्रि।

एस.अनंतकृष्णन्

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तमिऴ् सीखिए।

 मध्यम पुरुष।   भाग-3

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 तुम --नी 

तुम्हारा --उन्नुडैय

  1.तुम्हारा नाम क्या है?

      उन्नुडैय पॆयर् ऍन्न?

 2.मेरा नाम अनंत कृष्णन है।

 ऍन्नुडैय पेयर्  अनंत कृष्णन ।


2. तुमको ==उन्नै, उनक्कु।

1.तुमको मैं चाहता हूँ।

 उन्नै नान् विरुंबुकिऱेन।


 2.तुमको पुरस्कार दूँगा।

    

उनक्कु परिसु तरुवेन ।


 तुम से ==

उन्निडमिरुंदु 

तुमसे मैं किताब ली ।

 उन्निडमिरुंदु नान् पुत्तकम् ऍडुत्तेन।


तुमसे --उन्नैविड


तुमसे मैं बड़ा हूँ।


तुमसे --उन्नाल्

 तुमसे यह काम किया गया।

उन्नाल्‌  इंद वेलै चेय्यप्पट्टतु।


तुममें --उनक्कुळ् 

 तुममें  दिव्य शक्ति है।

तुम पर --उनमेल

तुम पर विश्वास है।

उनमेल् नंबिक्कै इरुक्किरतु।

 मध्यम पुरुष तुम।

 तू   तमिल में नहीं है।

 कल आप का तमिल।

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तमिल सीखिए भाग --4.

मध्यम पुरुष --आप।

आप --नींगळ्।

 आपका --उंगळुडैय

  आपको --उंगळै, उंगळुक्कु

आपसे --उंगलिडमिरुंदु

 आपसे --उंगलाल्

 आपसे --,उंगळै विड

  आपसे  मदद ली।

 उंगलिडमिरुंदु उदवी पॆट्रेन्।

आपसे सेवा की गई।

 तंगळाल्  सेवै चेय्यप्पट्टतु।

 आपमें भगवान है।

 उंगळुक्कुळ् भगवान इरुक्किऱार्।

 आप पर मुझे विश्वास है।

Tamil - गाजर का हल्वा। கேரட் அல்வா.

 गाजर का हल्वा।

கேரட் அல்வா.

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தில்லியின் குளிர்காலத்தில் அடிக்கடி என் பாட்டி கேரட் அல்வா தயார் செய்வாள்.

அதிகமான கேரட்டுகள் நாங்கள் துருவ வேண்டியிருக்கும்.

பிறகு கிட்டத்தட்ட 2-3மணி நேரங்கள் 

அல்வா கிளர வேண்டும்.

அடுப்பின் ஸமிதமான  சூட்டில்.

பிறகு ஷா சூடான கேரட் அல்வா சாப்பிட கிடைக்கும் .

ஒரு குறிப்பிட்ட நேரத்தில் அல்வா சாப்பிட கிடைக்கும்.

 பாட்டி அல்வா எங்கே 

 மறைத்து வைப்பாள் என்று தெரியாது.

 நான் தேடி 50-200கிராம் அல்வா 

 பாட்டிக்குத் தெரியாமல் 

 சாப்பிட்டு விடுவேன். ஆனால் இன்று வரை 

 தெரியவில்லை பாட்டி அல்வா கொடுக்கும் ஷா போது ஏன் புன்னகை பூக்கிறாள் என்று.

 

 गाजर हल्वा 

अनुवादक

 एस.अनंतकृष्णन, तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक

महाबल मलया सुंदरी आख्यान गीतिका

 

महाबल मलया सुंदरी चरित्र महाकाव्य  के रचनाकार श्रमण स्वामी सागरमल जी और मुनि स्वामी  मणिलाल जी हैं।

महाबल मलया सुंदरी चरित्र महाकाव्य  के रचनाकार श्रमण स्वामी सागरमल जी और मुनि स्वामी  मणिलाल जी हैं। महाकाव्य का आरम्भ मंगल आमुख से होता है जिसमें दोहो का माध्यम से मंगलाचरण किया गया है।

 

महाबल मलया सुंदरी आख्यान गीतिका   के रचनाकार श्रमण स्वामी सागरमल जी और मुनि स्वामी  मणिलाल जी हैं।महाबल मलया सुंदरी एक प्राचीन कथा है जिसको  इन  लेखकों ने संयिक्त रूप से एक काव्यात्मक  आख्यान  के रूप में रचा  है इसलिए इसको आख्यान गीतिका कहा जा सकता है।  आख्यान अर्थात एक कथा जो पाठकों से संवाद  करती है और जब यह संवाद  काव्य  रूप में किया जाता है तो आख्यान गीतिका बन जाता है। कसी भी कथा का काव्य रूप उस कथा से भी अधिक महत्वपूर्ण बन पड़ता है क्योंकि काव्य श्रेष्ठतम कला है जो मनुष्य को अपार आनंद प्रदान करती है। आनंद क्यों और कैसे मिलता है ? किसी भी कलाकृति में कलाकार की अनुभूति का आनंद परिव्याप्त रहता है। महाकवि भवभूति के शब्दों में -" मैं उस वाणी की वंदना करता हूँ , जिस में आत्मा की कला अमृत रूप से विद्यमान है।" विश्वकवि रबीन्द्रनाथ टैगोर के अनुसार , " कला में कलाकार अपने को अभिव्यक्त करता है "। जैन परम्परा में ७२ कलाओं का वर्णन किया गया है , जिस में " काव्यकरण " अर्थात काव्य रचना को भी एक कला के रूप में मान्यता प्रदान की गयी है।

साहित्यसंगीतकलाविहीन: साक्षात् पशु: पुच्छविषाणहीन: । तॄणं न खादन्नपि जीवमान: तद्भागधेयं परमं पशूनाम् ॥" अर्थात - "जिस व्यक्ति की साहित्य, कला अथवा संगीत में रूची नहीं है, वह तो केवल पूँछ तथा सींग रहित पशु के समान है ।

साहित्य और कला के आभाव में किसी सभ्य समाज की कल्पना संभव नहीं है। साहित्य का अर्थ यह नहीं कि जो कुछ भी लिख दिया जाये वो साहित्य है। वस्तुतः हृदय कि गहनतम अनुभूतियों की अभिव्यक्ति ही साहित्य होता है और काव्य उस का श्रेष्ठतम  रूप है। इस में कोई दो राय नहीं कि हृदय की सच्चाई के बिना किसी भी सजीव साहित्य की रचना संभव नहीं लेकिन साहित्य की रचना के लिए भाषा का सही ज्ञान बहुत ज़रूरी है।  अगर संवेदनाएं साहित्य की आत्मा हैं तो भाषा को साहित्य का शरीर कहा जा सकता है । भाषा और काव्य के सम्बन्ध में आचार्य भामह ने अपने ग्रन्थ ' काव्यालंकार ' में कहा है -" रिसा कोई शब्द नहीं है , ऐसा कोई वाक्य नहीं , ऐसी कोई विद्या  नहीं और ऐसी कोई कला नहीं जो काव्य का अंग हो कर न आये। कवि का दायित्व कितना महान है।  काव्य अंगी है , कला उसका एक अंग है। " डॉ भगीरथ मिश्र के शब्दों में - " कवि से का ज्ञाता , सौंदर्य का सृष्टा और रहस्य का वक्ता है। "  श्री महावीर प्रसाद द्विवेदी ' ज्ञान राशि के संचित कोष ' को साहित्य बताते हैं। मुंशी प्रेमचंद " साहित्य को जीवन की आलोचना ' कहते हैं। ' चिंतामणि ' के लेखक आचार्य श्री रामचंद्र शुक्ल के शब्दों में , " सत्वोद्रेक या हृदय की मुक्तावस्था के लिए किया हुआ शब्द - विधान काव्य है । श्री हज़ारीप्रसाद द्विवेदी के शब्दों में - " सच्चा  साहित्यकार   वह है जो दुःख , अवसाद और  कष्ट के भीतर से उस मनुष्य करे जो परिस्तिथितयों से जूझ कर अपना रास्ता साफ़ कर सके। "

इस दृष्टि से साहित्य के तीन मुख्य लक्ष्य स्पष्ट होते हैं - स्थाईत्व , व्यक्तित्व का प्रतिपादन , एवं रागात्मकता। ' हित सन्निहित साहित्यम ' - हित का साधन करना।  ' सहित रसेन युक्तं तस्य भाव साहित्यम ' -   मानव वृतियों को तृप्त करना व ' अवहिन्त मनसा महर्षिभिः तत साहित्यम ' मानव मनोवृतियों को परिष्कृत करना। उपरोक्त गुणों से युक्त रचना काव्य है , साहित्य है और इस कसौटी पर  ' महाबल मलया सुंदरी ' एक शेष्ट साहित्यिक कृति है।

भाषा विचारों के आदान - प्रदान का एक सशक्त माध्यम है ; समझने का , समझाने का , अनुभूतियों ,चिंतन , भावनाओं की तरंगों से पाठकों को प्रभावित करने का। साझा आख्यान गीतिका ' महाबल मलया सुंदरी ' में अनुभूतियों के इंद्रधनुषी रंगों , सप्त स्वरों को जिस भाषा में अभिव्यक्त करने का प्रयत्न किया गया है उस में एक स्थिरता है , एक गति है , एक मिठास है , एक प्रेरणा है , एक रवानी है। श्रमण स्वामी सागरमल जी और मुनि स्वामी  मणिलाल जी द्वारा रचित इस आख्यान गीतिका की भाषा अत्यंत सहज और सरल है जिसे आम पाठक निश्चय ही आसानी से समझ लेगा और तत्कालिक सम्प्रेषणता किसी भी साहित्यिक ग्रन्थ की सफलता की महत्वपूर्ण विशेषता होती है। इस इस ग्रन्थ में दोहा छंद के अलावा दूसरे  दीगर छंदों का  भी प्रयोग किया गया है जिनमें विशेष रूप से गीतक छंद , रामायण छंद , सहनाणी छंद , राधेश्याम छंद  और  चौपाई विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

'महाबल मलया सुंदरी गीतिका काव्य  को विभिन्न खण्डों में विभाजित किया गया हैं और प्रत्येक खंड का शीर्षक उस खंड की कथानुसार दिया गया है। ' तुलसी प्रिय -मंगल आमुख  ' , ' रमता योगी ', ' झूठा सच ' , ' प्रेत का पंजा ' , ' रखना रामकड़ा ' , ' चमकता सितारा ' , ' खतरे की घंटी ' , उफणती लहरें ' और  ' एक और विपत्ति  '  इस आख्यान गीतिका काव्य के प्रमुख खंड हैं। प्रथम खंड ' तुलसी प्रिय - मंगल आमुख ' का  निम्नलिखित दोहा देखें -

 महाबल मलया सुंदरी , अति मनहर इतिवृत।

सुनकर श्रोताओं करो , करणी दे कर चित्त।।

( महाबल मलया सुंदरी मंगल आमुख - दोहा संख्या - 7 )

इस से पूर्व कि इस भूमिका को आगे बढ़ाया जाये मैं चाहूँगा कि ' महाबल मलया सुंदरी ' आख्यान यानी इस की कथा संक्षेप में साझा कर दूँ जिस से कि पाठक ग्रन्थ का अधिक आनंद उठा सकें। ' महाबल मलया सुंदरी ' कि कथा कुछ इस प्रकार है -

प्राचीन समय की बात है चंद्रावती राज्य के राजा वीर धवल के दो रानियां थीं - चम्पकमाला और कनकमाला। दुर्भाग्य से उनकी कोई संतान नहीं थी। इसी दुःख में एक दिन चम्पकमाला का देहांत हो जाता है। राजा वीर धवल निश्चय करता है कि वह रानी के साथ सती हो जायेगा।  जब अगले दिन राजा , रानी चम्पकमाल का दाहसंस्कार करने लगता है तभी नदी  किनारे एक लकड़ी का संदूक  आता है।  संदूक खोलने पर उस में रानी चम्पकमाला मिलती है।  सब आश्चर्य से चित को देखते हैं जहाँ से रानी की देह धुआं बन कर उड़ चुकी होती हैं। रानी चम्पकमाला बताती हैं कि किस तरह उस का अपहरण कर लिया गया था और किस तरह जेल में उसे चक्रवेश्वरी माता ने लक्ष्मीपुंज  हार दिया और संतान पाने का वरदान भी।  कुछ समय बाद रानी चम्पकमाला  ने एक पुत्र और पुत्री को जन्म दिया।  पुत्र का नाम मलया केतू और पुत्री का नाम मलया सुंदरी रखा गया। उसी समय वहां से काफी दूरी पर नगरी कुश  वर्धन  के राजा सूरपाल थे।  राजा सूरपाल और राजा वीरधवल घनिष्ट मित्र थें। राजा सूरपाल के पुत्र का नाम महाबल था। राजा सूरपाल के दो पुत्र हैं ,   जयचंद और विजयचन्द। राजा जयचंद को अपना उत्तराधिकारी बना देते हैं। इसके चलते विजयचन्द राज्य छोड़कर जंगल में चला जाता हैं वहाँ जंगल में विजयचन्द को गूदड़ी में लिप्त एक बाबा मिला।  उस बाबा ने विजयचन्द को गुप्त विद्या प्रदान करी। और एक योगी बन जाता है। जिन दिनों चंद्रावती में वीर धवल राजा थे , उन दिनों प्रस्थान पुर के नरेश सूरपाल थे। एक बार नरेश सूरपाल अपने मित्र राजा वीर धवल के लिए कुछ उपहार भेजते है।  ये उपहार राजा सूरपाल के मंत्री और महाबल ले कर जाते हैं।  उपहार पाने के बाद जब राजा वीर धवल मंत्री से महाबल के बारे में पूछते हैं तो मंत्री कह देता हैं कि वे उस का सेह कर्मचारी हैं।  वहाँ महाबल , मलया सुंदरी को देखता हैं।  दोनों एक दूसरे को  देखते हैं और एक दूसरे से प्रेम कर बैठते हैं।  रात के महाबल , मलया सुंदरी के शयन  कक्ष  में जाता है और मलया सुंदरी महाबल के गले में लक्ष्मिपुंज हार डाल देती है। छोटी रानी कनकमाला इसकी शिकायत राजा से कर देती है।  राजा तत्काल देखने आता है लेकिन तब तक महाबल अपनी शक्ति से स्वयं को चम्पकमाला रानी में तब्दील कर लेता है।  कक्ष में मलया सुंदरी को उस की माँ के साथ देख कर राजा छोटी रानी कनकमाला पर क्रोधित होता है और उसे महल से निकाल देता है।  छोटी रानी कनकमाला ईर्ष्या से जल उठती और उनको बर्बाद करने के मंसूबे बनाने लगती है। वह मलया सुंदरी पर लक्ष्मी पुंज हार के चोरी इलज़ाम लगाती है।  राजा वीर धवल अपनी पुत्री मलया सुंदरी को मौत की सज़ा सुनाता है ।  राजा वीर धवल अपनी पुत्री मलया सुंदरी को मौत की सज़ा सुनाता है ।  पहरेदार सैनिक मलया सुंदरी को मारते नहीं और उसे जल समाधि लेने की इजाज़त देते है।

दो दिन बाद मलया सुंदरी का स्वयंवर था और इस दुःख से राजा वीरधवल अपनी पत्नी रानी चम्पकमाला के साथ आत्महत्या करना चाहते है लेकिन महाबल एक ज्योतषी के भेस में राजा के पास आता है  और बताता  है कि माल्या सुंदरी ज़िंदा है और स्वयंवर वाले दिन वह महल के मुख्य द्वार के बाहर एक संदूक में मिलेगी।  जो कोई भी उस संदूक को खोलेगा वह उसी को वर लेगी। सब कुछ ज्योतिषी के अनुसार ही होता है।  महाबल एक योगी के भेस में आता है और उसकी आवाज़ सुन कर मलया सुंदरी संदूक खोल देती है।  दोनों का शुभ विवाह संपन्न हो जाता है।  कुछ समय बाद महाबल को युद्ध में जाना पड़ता है।  कनकमाला अभी भी उनका अहित चाहती है। महाबल के युद्ध में जाने के बाद कनकमाला राजा सूरपाल को भड़काती है कि रानी मलया सुंदरी एक पिशाचनी है और उसी के कारण राज्य में प्लेग फैला हुआ है। रात को कनकमाला स्वयं पिशाचनी बन कर नाचती है और राजा को उस कि बात पर विशवास हो जाता है।  राजा सूरपाल  उसी वक़्त मलया सुंदरी को जंगल में मारने के लिए भेज देते है।  सैनिक उसे मारते नहीं क्योकि वह गर्भ से होती है लेकिन उसे घने जंगल में छोड़ देते है।  जंगल में एक शेर उस कि रक्षा करता है और वह एक पुत्र  को जन्म देती है।  उधर जब महाबल वापिस अपनी राजधानी लौटता है। जब उसे पता चलता है कि  मलया सुंदरी के मार दिया गया है तो वह बहुत  दुखी होता है। महाबल सच्चाई का पता लगता है तो पता चलता है कि वास्तव में कनकमाला असली पिशाचनी थी।  राजा सूरपाल को भी पछतावा होता है। एक ज्योतिषी महाबल को बताता है कि  मलया सुंदरी ज़िंदा और एक साल बाद मिलेगी।  उधर जंगल में  मलया सुंदरी  बहुत कष्ट उठती है।  एक व्यापारी  उसके पुत्र को उस से चीन लेता है। उस पर बहुत दबाव पड़ता है लेकिन मलया सुंदरी अपने स्त्रीत्व का सौदा नहीं करती।  यहां तक कि अपना शील बचने के लिए वह अपने पुत्र को भी भूल जाती है।  उसके बाद तिलकनगर  का राजा कंदर्प देव  मलया सुंदरी को कई प्रकार कि यातनाये देता है। अंत में महाबल उस को राजा कंदर्प देव के चंगुल से छुड़ाता है।  राजा कंदर्प देव आग में भस्म हो जाता है।  महाबल तिलकनगर का राजा बन जाता है।  उसके पिता और ससुर उस से युद्ध करने आते है लेकिन जब उन्हें पता चलता है कि वह तो महाबल उनका पुत्र  है तो युद्ध बंद हो जाता है।  महाबल उसके बाद चैन से तीनों राज्यों को संभालता है और सुख  से मलया सुंदरी  के साथ रहता है।          

 

 

कर्म

 

इस आख्यान गीतिका में करणी पर विशेष बल दिया गया है। यानी  जिस के जैसे कर्म होंगे उसे वैसे ही फल मिलेंगे।  अगर जीवन में अच्छे कर्म किये हैं तो ईश्वर भी आपका साथ देगा और आपका कठिन जीवन भी आसान हो जायेगा।  लेकिन अगर आप के कर्म बुरे हैं , आप ने ग़रीब लोगो को सताया है , कसी ग़रीब की आह ली है।  किसी स्त्री का हरण किया है , किस को बेवजह परेशान किया है तो ईश्वर आप से नाराज़ रहेगा और आपको अपने ग़लत कर्मों की सज़ा ज़रूर मिलेगी।  इसी ग्रन्थ से निम्नलिखित पंक्तियाँ देखें –

करणी निर्मल , करना प्रतिपल

करणी संकट हरणी

करणी है करणी।।

करणी मंगल , करणी सम्बल 

करणी पार उतरणी

करणी है करणी।।

( महाबल मलया सुंदरी मंगल आमुख - दोहा संख्या - 8 )

 

जड़ चेतन दो तत्त्व है , यह जीवन कर्म आबद्ध।

एक कर्म संचित होता है , एक कर्म प्रालब्ध।।

संचित वृत टूटता है , तप  संयम योग प्रयोग।

किंतु भोगना ही पड़ता है  , कर्म निकाचित भोग।।

( रमता योगी - दोहा संख्या – 124 )  

 

 

 

यह सारी दुनिया पाप और पुण्य के खेल में उलझी हुई है।  इसके अलावा और कुछ भी नहीं। कर्मों के हिसाब से ही मानव को पाप और पुण्य के तराजू में तोला जाता है।  पाप करना जितना आसान है पुण्य कमाना उतना ही कठिन।  पुण्य कमाने के लिए मानव को क्या नहीं करना पड़ता।  अपने सुख वैभव छोड़ कर निस्वार्थ समाज की सेवा में लगना पड़ता है तब काही जा कर पुण्य के मोती  मिलते हैं। धर्म की रक्षा के लिए दान करना पड़ता है , परोपकार करना पड़ता है , तप करना पड़ता है तब कही जा कर पुण्य की डगर दिखाई पड़ती है।  पुण्य की डगर उतनी सरल नहीं होती जितना हम सोचते है।  पुण्य के पथ पर आगे बढ़ने के लिए बहुत कुछ त्यागना पड़ता है। इसी पुस्तक से ये दोहा देखें-

दान शील तप भावना , धरम पुण्य की बेल

दुनियावी सुख- दुःख सभी , पुण्य पाप का खेल

( महाबल मलया सुंदरी मंगल आमुख - दोहा संख्या - 7 )   जड़ चेतन दो तत्त्व है , यह जीवन कर्म आबद्ध।

 

 

महाबल मलया सुंदरी आख्यान गीतिका का आरम्भ ही राजा वीर धवल और उनकी रानी चम्पकमाला के संवाद से होता है।  दो रानियां होने के बावजूद राजा निसंतान है और यही चिंता उसे खाये जा रही है।  बिना संतान के आगे का वंश कैसे चलेगा ? सुझाव दिया जाता है कि कोई बालक गोद ले लिया जाये।  राजा को यह सुझाव पसंद नहीं , आखिर अपना खून अपना खून होता हैं ।फिर भी रानी कि ख़ुशी के लिए वो इस प्रस्ताव को मान  लेते हैं , हालां कि इसकी ज़रूरत नहीं पड़ती। इसी सन्दर्भ  में इसी ग्रन्थ से  कुछ सुन्दर उद्धरण देखें - 

चम्पक माला रो पड़ी , राजा भी दिल गीर।

आई कनका दौड़ कर , बोली बन गंभीर ।।

लाखों बालक नगर में , मन पसंद रख पास

हँसो    खिलो पालन करो ,पूरो  मन की आस।।

राजा देता सांत्वना , ऊपर दिखा विनोद

ले लो प्रिय ! प्रमोद से , कोई बच्चा गोद।।

कोयल के बच्चे पाले , कौए का वंश चला है ?

लीची फल लटका कर कह दो , चन्दन वृक्ष फला है ?

( रमता योगी - दोहा संख्या – 7,8, 9 )

 

इस आख्यान गीतिका में एक प्रसंग आता है जब राजा सूरपाल का छोटा पुत्र विजयचन्द राज पाट न मिलने पर  जंगल में चला जाता है।  वहाँ उस की मुलाक़ात एक बाबा से होती है जो मरते वक़्त विजयचन्द को कुछ गुप्त विद्या देता है।  विजयचन्द स्वयं एक योगी बन जाता है।  बाबा से मिली तुम्बी को वह एक बनिए के यह यह कह कर रख जाता है कि वह हरिद्वार जा रहा है और वापिस आ कर अपनी तुम्बी वापिस  ले लेगा।  विजयचन्द जब लौटकर आता है तो पाता है कि  बनिए ने तुम्बी बदल दी है। इस प्रकार विजयचन्द के साथ विश्वासघात होता है। इसी प्रसंग से कुछ रोचल पंक्तियाँ देखें  जिनमें श्रमण स्वामी सागरमल जी और मुनि स्वामी  मणिलाल जी कि काव्य प्रतिभा उभर कर देखने को मिलती है।

विशवास - लालच - हेराफेरी

 

मेरे पास स्वर्ण रस तुम्बी , वह रस चुपड़ तपायें।

सिद्ध योग है तपते ही , ताम्बा सोना बन जायें।। 

( रमता योगी - दोहा संख्या – 25 )

 

विशवास ही विशवास में , यों हो जाता धोखा ।

ये बगुला भक्त हमेशा  , देखा करता मौका  ।।

( रमता योगी - दोहा संख्या – 40 )

 

कहते रहते ज्ञानी संत  , लालच  है बुरी  बला।

कुकला सिखलाता है , लोभ कटवाता है गला।। 

( रमता योगी - दोहा संख्या – 34 )

 

हेरा - फेरी में माहिर , होता बनियों का हाथ।

तुम्बी के बदले में  तुम्बी , लटका दी साक्षात।।

( रमता योगी - दोहा संख्या – 39 )

 

धर्म

अलग अलग संस्कृतियों में धर्म के भिन्न भिन्न परिभाषाएं पायी जाती हैं। साधारण शब्दों में धर्म के अनेक अर्थ पाए जाते हैं मसलन - मानवता, कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सच्चाई , सदाचरण, सद्-गुण आदि।  मनु ने मानव धर्म के दस लक्षण बताये हैं:

धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।

धीर्विद्या सत्यमक्रोधो, दशकं धर्मलक्षणम् ॥

(धृति (धैर्य), क्षमा (दूसरों के द्वारा किये गये अपराध को माफ कर देना, क्षमाशील होना), दम (अपनी वासनाओं पर नियन्त्रण करना), अस्तेय (चोरी न करना), शौच (अन्तरंग और बाह्य शुचिता), इन्द्रिय निग्रहः (इन्द्रियों को वश मे रखना), धी (बुद्धिमत्ता का प्रयोग), विद्या (अधिक से अधिक ज्ञान की पिपासा), सत्य (मन वचन कर्म से सत्य का पालन) और अक्रोध (क्रोध न करना) ; ये दस मानव धर्म के लक्षण हैं।)  

महाबल मलया सुंदरी आख्यान गीतिका में भी हमें अनेक रोचक और सारगर्भित पंक्तियाँ देखने को मिलती हैं।  निम्नलिखित पंक्तियाँ देखें –

धर्म सदा आधार यही भाई ! अशरण शरण उदार।

धर्म बड़ा दिलदार है , भक्तों की सुने पुकार।।

 

जिस पर हो सद्गुरु कृपा , भाई ! उस का बेडा पार।

जिस का रक्षक धर्म है , फिर कौन बिगाडन हार।।

( लय -  आभे चिमके बिजली -  95 )

 

धर्म अशरण का शरण , दुःख त्राण है।

धर्म जीवन नाव की पतवार  है ।।

( रखना रामकड़ा - गीतक छंद - 100 )

भगवा इस वेश का तो , विशवास उठ गया।

ढोंगियों , पाखंडियों के , हाथ धर्म लूट गया।।

( रमता योगी - दोहा संख्या – 69 )

 

संत - सद्गुरु - गुरु

 

भारत सदा से ऋषि मुनियों का देश रहा है।  भारतीय भूमि पर अनेक दुर्लभ संतों और सद्गुरुओं का अवतरण हो चुका है। सही आचरण और आत्मज्ञानी व्यक्ति को संत कह सकते हैं। साधु ,  सन्यासी , योगी सभी संतो की श्रेणी में आते हैं।  भारतीय संस्कृति में संत और गुरु का बहुत आदर सम्मान किया जाता है।  संत और गुरु दोनों ही हमे सही मार्ग दिखलाते और सत्य के पथ पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। इस में कोई दो राय नहीं कि संतों और गुरुओं के आशीर्वाद के बिना जीवन में सफलता मिलना संभव नहीं। महाबल मलया सुंदरी आख्यान गीतिका में संतों और गुरुओं को समर्पित अनेक पंक्तियाँ हैं।  आइये देखते हैं कुछ उल्लेखनीय पंक्तियाँ –

संत पुरुष के दर्शन से ही जीव अभ्युदय करता है।

जिस को मन्त्र प्रसाद मिला वह तो निश्चित ही तरता है।।

( रमता योगी - दोहा संख्या – 161 )  

 

सेवा संतों की कभी भी , खाली नहीं जाती।

खाली नहीं जाती , नहीं जाती , नहीं जाती।। 

( गीतक छंद -लय - 24 , )

 

कहते रहते ज्ञानी संत , लालच है बुरी बला।

कुकला सिखलाता है , लोभ कटवाता है गला।।

( रमता योगी - लय– 34 )  

 

कुशल मुनि की प्रेरणा , आज बनी साकार।

गुरुकृपा से हो सका , जो अटका मझधार।। 

( एक और विपत्ति  -, दोहा संख्या – 560 )

माँ- मातृभूमि

 

भारतीय संस्कृति में माँ की महत्ता बहुत है। देवी के रूप में माँ के नौ रूप देखने को मिलते हैं , नवदुर्गा। मानव रूप  में माँ जननी होती है। धरती को भी माँ का ही एक रूप माना जाता है।  मातृभूमि अर्थार्त   जिस भूमि पर हम जन्म लेते हैं।  हमारी मातृभाषा जो हम हम माँ के पेट से सीख कर आते हैं।  इस संसार में माँ का स्थान कोई नहीं ले सकता।  माँ अपने खून से अपने बच्चों को सींचती हैं।  उन की ऊँगली पकड़ कर इस संसार में उन को उड़ना सीखाती हैं।  माँ सिर्फ माँ होती है।   प्रसव की पीड़ा को भी वह हँसते हँसते सेह जाती है।  अपने बच्चों के लिए वो पूरे संसार से लड़ सकती है।  महाबल मलया सुंदरी आख्यान गीतिका  में ऐसे अनेक उद्धरण हैं जिन में माँ के चरित्र को उजागर किया गया हैं।  आइये देखते हैं कुछ उद्धरण –

माँ का हाथ पकड़   कर  बच्चा , सदा सुरक्षित रहता है।

माँ के संरक्षण में संस्कृत , सभ्य सुशिक्षित रहता है।।

( प्रेत का पंजा – लय  - 25)

माँ भगवान् धर्म ये युद्ध में  , याद स्वतः आ जाते।

जब सब किन्नी काट चुके हो , ये ही गले लगाते।।

( प्रेत का पंजा – लय  - 23)

मातृ भू  की सुरक्षा में , हम सब कटिबद्ध हैं।

युद्ध यदि लड़ना पड़े तो , नीति  पर सन्नद्ध हैं।।

( खतरे की घंटी , गीतक छंद - 12 )

युद्ध - राजनीति

 

इस संसार में हमेशा से ही युद्ध होते आये हैं। ज़र , जोरू और ज़मीन अक्सर युद्ध के कारण रहे हैं।  जब कोई भी विवाद बातचीत से नहीं सुलझ पता तो युद्ध का आरम्भ होता है।  युद्ध में अक्सर दोनों पक्षों का नुक्सान होता है।युद्ध में  जान - माल का नुक्सान तो होता ही हैं , आर्थिक स्तिथि भी चरमरा जाती है।  इसलिए सभी का प्रयास रहता है कि शान्ति बानी रहे।  भारत कि धरती पर अनेक युद्ध हो चुके हैं , कुछ युद्ध अंदरूनी राजाओं का तो कुछ युद्ध दूसरे देशों  के साथ।  युद्ध कि विभीषिका अत्यन्य भयावह होती है।  १८ दिनों तक चलने वाले महाभारत के  युद्ध  को कौन नहीं जानता।  इस युद्ध में के नस्लें बर्बाद हो गयी थी।  सब तरफ विनाश ही विनाश फ़ैल गया था।  युद्ध का असर सदियों तक रहता है। महाबल मलया सुंदरी आख्यान गीतिका  में भी युद्ध  प्रसंग आया है। राजनीति और युद्ध से सम्बंधित कुछ पंक्तियाँ देखें –

 

जा कहो राजा से , सारी  बात को

युद्ध में क्यों ? व्यर्थ जान धन घात हो

युद्ध तो अन्याय का प्रतिकार है

(एक और विपत्ति  -लावणी  छंद - 493 )

जाइये इस मांग का , गौरव बढ़ाने जाइये।

राष्ट्र रक्षा व्रत निभाते , विजय ध्वज लहराइये ।।

( खतरे की घंटी , गीतक छंद - 52)

मंत्री बोला मान्यवर ! हो गुस्ताख़ी माफ़।

कूट नीति के बिना , कब होता रास्ता साफ़ ।।

( खतरे की घंटी , दोहा संख्या – 22

 

क्योंकि बचना चाहते हम , निरर्थक संहार से। 

अहिंसक प्रतिकार से , हल ढूंढते व्यवहार से।।

 

( खतरे की घंटी , गीतक छंद - 10 )

रोटी खानी शक्कर से , दुनिया ठगनी मक्कर से।

यही आज की राजनीति है, जनमत मिलता चक्कर से।।

( रखना रामकड़ा - Lay - 13 )

 

नारी

 

भारतीय संस्कृति में नारी का स्थान बहुत ऊँचा है।  नारी को देवी स्वरूप माना जाता है।  लेकिन समाज में नारी की स्तिथि आज भी दयनीय है।

नारी को अगर पूजा गया है तो नारियों पर अत्याचार भी कम नहीं हुए है।  नारी सदियों से पुरुष की दासता सहती आ रही है।  समाज बदल रहा है , नारी पुरुष से कंधे से कन्धा मिला कर आगे बढ़ रही है लेकिन उसकी दासता की बेड़ियाँ अभी पूरी तरह से कटी नहीं हैं।   आज भी नारी को प्रताड़ित किया जाता हैं , उस के शील को जबरन भांग किया जाता है । बहुत से युद्धों का तो कारण ही  नारी रही है।  समाज में आये दिल बलात्कार की ख़बरे सुनने को मिल रहती है। जब  पांडवो की पटरानी  द्रोपदी का चीर हरण भरी सभा में हो गया तो आम नारी की तो बिसात ही क्या है ? महाबल मलया सुंदरी आख्यान गीतिका में भी कुछ प्रसंगों में नारी की पीड़ा और उस की शक्ति को उजागर किया गया है।

नारी से सम्बंधित ये पंक्तियाँ देखें –

 

नारी कितनी रही तिरस्कृत इधर समर्पित उधर अनादूत।

अवगणना अपमान कहां तक , सेहन के ! समझाउंगी।।

रोकेंगे युवराज महाबल , तो कह दूँगी फैला आँचल  ।।

भरपाया सुख इन महलों का , साफ़ साफ़ बतलाऊँगी।।

उस सुख वैभव को क्या चाटूँ? पेअर कुल्हाड़ी से क्यों काटूं ?

मातृ जाति के अधिकारों की , मैं आवाज़ उठाउंगी।।

 

( उफणती लहरें - लय  - 43 , 44 , 45 )

अब तक मैंने धीरज से ही काम लिया अनुनय  करता।

हाथ धर्मिता नहीं छोड़ी तो बलात्कार से नहीं डरता।।

 

( एक और विपत्ति - रामायण  छंद - 33 )

 

खड़ी हो गयी मलया बोली , नहीं पुत्र की चाह।

शील सुरक्षा खातिर  आत्म हनन की ले ली राह।।

( एक और विपत्ति - दोहा संख्या -89 )

नारी नहीं नाहारी हूँ मैं , मत समझो लाचार -102

 

 

किस जनम का बैर लेने , को लगायी लाये है।

हाय ! नारी जाति पर यह , सरासर अन्याय है।।  

( खतरे की घंटी , गीतक छंद - 74)

 

महाबल और मलया सुंदरी का प्रेम - प्रसंग

 

महाबल मलया सुंदरी आख्यान गीतिका का केंद्रबिंदु महाबल और मलया सुंदरी का प्रेम - प्रसंग है।  प्रेम एक ऐसी अनुभूति होती है जिस का सम्बन्ध हमारे हृदय से होता है।  यह सारा संसार प्रेम पर ही आधारित है।  अगर इस संसार में प्रेम नहीं होता तो सब कुछ नीरस और निरर्थक होता । प्रेम की रौशनी में यह संसार जगमगा रहा है।  प्रेम इंसान को मजबूत बनाता है।  इस संसार में ऐसे कितनी ही प्रेम कहानियाँ है जो अमर हो गयी।  लैला - मजनूं , शीरी फ़रियाद , हीर - रांझा और यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि ' महाबल - मलया सुंदरी 'कि प्रेम कहानी भी अमर है।  आइये , महाबल  मलया सुंदरी आख्यान गीतिका से पढ़ते हैं कुछ विशिष्ट प्रेम पंक्तियाँ –

ऊपर मलया सुंदरी , संध्या राग प्रभास। 

नीचे महाबल पर प्रभा, फैंक रहा आकाश।।

खदखगोली वन युवक , निरख नव्य नक्षत्र।

भीतर जा आयी पुनः , फैंक गयी वह पत्र।।

उड़ता काग़ज़ आ गिरा , पढ़ा लिखा था साफ़।

संध्या को उषा बना , सकता है क्या आप ? 

( झूठा सच - दोहा संख्या – 9,10,11 )

 

हार लक्ष्मीपुंज निकाल गले में महाबल के डाला।

बोली मलया यही  समझ लें पहनाई है वरमाला।। 

( झूठा सच - दोहा संख्या - 46 )

महाबल मलया का मिलान , रंग रसीली रात।                                    

अनछुई अनुभूतियाँ , लेकर उगा प्रभात।।

( चमकता सितारा , दोहा संख्या - 1 )

 

महाबल मलया सुंदरी आख्यान गीतिका में उपरोक्त विषयों के अलावा कुछ विविध दोहे , पंक्तियाँ भी उल्लेखनीय हैं -

औरो के अनुशासन में , रहना भी बहुत कठिन है।

कहना तो बहुत सरल है , पर सहना बहुत कठिन है।।

( रमता योगी - दोहा संख्या – 51 )

 

पहला करता है निंदा , अपयश सुन खीज न जाना।

करे दूसरा ख़ूब प्रशंसा , यश में रीझ न जाना।।

( रमता योगी - दोहा संख्या – 115 ) 

 

कौन मरा क्या  ? तुम मरी, मैं मरता था साथ

तुम जी गयी  मैं जी गया , बड़े भाग्य की बात

( रमता योगी - दोहा संख्या – 145 )  

 

जो बुरा सोचता औरों का , वह बुरा स्वयं का करता।

जो ईर्ष्यालु होता , वह नहीं चैन से जीता मरता।।

 

( प्रेत का पंजा - दोहा संख्या - 49 )

 

 

पहले ही रो लेती , रोने से क्या राज मिलेगा ?

मलया को क्या पता हार ? जीवन की हार बनेगा।।

राजा ने आदेश दिया , बंदी का रूप रचा है ।

मृत्यु - दंड की हुई घोषणा , हा - हा कर मचा है।।

 

( प्रेत का पंजा - दोहा संख्या – 76,77 )

पीछे रोने से क्या होता है ? रो रो कर रह जाती हैं।

डोर निकल जाने पर कभी  , पतंग न हाथ आती हैं।।

 

बिगड़ी बनाने वाला बिरला ही होता है

बात को बिठाने वाला ,उखड़ी जमाने वाला , बिरला ही होता है

 

( रखना रामकड़ा - गीतक छंद - १४ )

 

 

 

नृप कहता हाँ बस अंतिम है , वर्षों से मन में एक साध। 

जैसे आगे देखूं वैसे ही , देखूं पीछे मैं निर्विवाद।।

( एक और विपत्ति सेहनाणी छंद - 446 )

 

दुष्कर्मी का मन , शुद्ध  नहीं होता है।

जड़ से काटो जो काँटे बोता  है।। 

(एक और विपत्ति  -लावणी  छंद - 451 )

 

महाबल मलया सुंदरी आख्यान गीतिका   के रचनाकार श्रमण स्वामी सागरमल जी और मुनि स्वामी  मणिलाल जी द्वारा रचा गया  यह काव्य आख्यान दीगर कारणों से अपने आप में विशिष्ट बन पड़ा है। एक प्राचीन आख्यान को काव्यमाला में पिरो कर दोनों कवियों ने यह सिद्ध कर दिया है कि जहाँ  न पहुंचे रवि , वहाँ पहुँचे कवि। आख्यान काव्य में कवियों ने सिर्फ लोकप्रिय मुहावरों  और लोकोक्तियों का ही प्रयोग नहीं किया हैं अपितु कुछ नए मुहावरों और सूक्तियों का निर्माण भी किया हैं। आख्यान काव्य में प्रयोग किये गए इन मुहावरों , लोकोक्तियों और सूक्तियों ने इस ग्रन्थ को अधिक सुन्दर बना दिया है।  विशेष रूप से निम्नलिखित मुहावरें , लोकोक्ति और सूक्तियां उल्लेखनीय हैं  - 

अपशकुन - दायी आँख फड़कना , ठोकर लगना ,बिल्ली आदि तिरछी , कुत्ते के कान फड़फड़ाना , गीदड़ का रोना   , किसी का छींकना

कांच नहीं हीरा बन सकता चाहे कितना चमकीला

पानी बिन ज्यूँ मीन तड़फती

पापी का अन्न उदर समाये  मन विकृत हो जाता

पत्थर पे कितना ही पानी डालो नहीं भीजेगा

लातों का जो भूत बात से , कब मानेगा समझाओ

 

 

विजय कहाँ जो रण में जाने से पहले ही हारा है 

निर्भय सदा बना रहता है , सत्य सलिल में जो बहता

विशवास इष्ट का जिस तन में , वह तिल भर भी क्यों घबराये

जो शक्य नहीं कैसे होगा , पानी के बिना नहीं कोई तिरता

संयम है सुख का झरना

एक तीर से दो शिकार

मीठी छुरी बातूनी  मत कर लेना विश्वास

परदा मत डालो परदे के पीछे

अँधेरा दीपक  तले

आँख  लाल करना

ज़मीं में आँखे गाड़ना

अक़ल  पे पत्थर पड़ना

सीधी ऊँगली घी नहीं निकले

तिलो से तेल   निकालना

 

मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विशवास है कि हिंदी साहित्य जगत " महाबल मलया सुंदरी " आख्यान गीतिका का स्वागत करेगा। इस अतुल्य ग्रन्थ के लिए  महाबल मलया सुंदरी आख्यान गीतिका   के रचनाकार श्रमण स्वामी सागरमल जी और मुनि स्वामी  मणिलाल जी निश्चय ही बधाई के पात्र है। उनके इस प्रयास  से  हिंदी के पाठक अवशय लाभान्वित होंगे और   " महाबल मलया सुंदरी "  के ज़रिये भारतीय संस्कृति कि यह लोकप्रिय  गाथा जन जन तक पुहंचेगी।