Sunday, September 29, 2024

Mátyás király és az öregek - राजा मात्याश और बूढ़े लोग

 राजा मात्याश और  बूढ़े लोग


राजा मात्याश  को खुला  मैदान बहुत पसंद था। वह कई बार वह यह देखने के लिए विशाल बंजर भूमि पर जाते  कि वहां के लोग कैसे रहते हैं। 

. एक बार वह एक गाँव से गुजर रहे थे  और उन्होंने  एक बूढ़े आदमी को गेट के सामने रोते हुए देखा। - मेरे बूढ़े आदमी की मदद करो! खैर, उन्हें क्या दिक्कत है? - राजा मात्याश ने बूढ़े  को बुलाया। बूढ़े ने कहा, "मेरे पिता ने मुझे पीटा, इसलिए मैं रो रहा हूं।" ये तो अजीब बात है ? मात्याश को बूढ़े व्यक्ति के पिता के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई और वह आँगन में चला गया। परन्तु उसने देखा कि एक कबूतरी भुट्टे से चूल्हा जला रही है। मत्यास ने उससे कहा: - अंकल, वहां एक बूढ़े आदमी ने कहा कि केंड ने उसे पीटा। क्या यह सच है? - यह सच कैसे हो सकता है?! - संबंधित व्यक्ति ने उत्तर दिया। - मैंने उससे कहा कि वह अपने दादाजी के लिए पानी लेकर आए, लेकिन मैं व्यर्थ ही बोला। . आपका आधिपत्य सोचता है कि वह इसे अपने पास ले गया था, उसे याद नहीं था। - तो क्या तुम्हारे पिता अभी भी जीवित हैं? - यह कैसे संभव है ?! - आपकी आयु कितनी है? मात्याश ने पूछा। - मुझे वह याद नहीं है, लेकिन पल्ली में जाओ, वहां पुजारी तुम्हें बताएगा कि वह कितने साल  का  है, क्योंकि उसने उसे बपतिस्मा दिया था। - ठीक है, उसे बपतिस्मा देने वाला पुजारी भी जीवित है। - वह जीवित है! बूढ़े ने कहा।  . राजा मथायस पल्ली में गये। उसने पुजारी को ढूंढा और पूछा. यह पिताजी कितने साल के हैं? - ओह, मेरे बेटे, मैं यह पहले ही भूल गया था, लेकिन चलो, इसे मैट्रिक में जांचें! राजा मत्यास ने सोचा, वह मामले के अंत तक पहुँच रहा है। वे मैट्रिकुला देखने के लिए यज्ञशाला में जाते थे

कुंआ! क्या यह बंद नहीं था? - अपनी चमक छिपाओ, लेकिन मुझे खेद है! पुजारी ने कहा. - दुर्भाग्य से, मैं दरवाज़ा नहीं खोल सकता। सुबह जब मेरी मां अंगूर तोड़ने गई तो गलती से चाबी अपने साथ ले गई. - चलो, ऐसा मत कहो! क्या तुम्हारे केल्ड की माँ भी

 जीवित है? - वह जीवित है! पुजारी ने कहा. राजा मात्याश ने पुजारी की माँ के  घर आने का इंतज़ार नहीं किया। इसलिए उसे कभी पता नहीं चला कि बूढ़े व्यक्ति के दादा की उम्र कितनी थी।

Mátyás király és az ártatlanok -राजा मात्याश और मासूम

 राजा मात्याश और मासूम 


राजा मात्याश ने एक बार एक जेल का दौरा किया जहां पक्षपातियों को बंद कर दिया गया था। उन्होंने जेल निदेशक के साथ कोठरियों  का दौरा किया। एक कोठरी में कई लोगों को कैद किया गया था। राजा मात्याश ने उनमें से प्रत्येक से पूछा कि वे  वहां पर क़ैद  क्यों है ? प्रत्येक कैदी ने उत्तर दिया कि वह निर्दोष है। वह नहीं जानता कि उसे क्यों बंधक बनाया  जा रहा है। कोठरी में एक जिप्सी भी थी। राजा ने उससे यह भी पूछा:- तुम बन्दी क्यों हो? - मेरे राजाधिराज  ! मैं भी निर्दोष  हूँ लेकिन   यहाँ कालकोठरी में हूँ। - आपने क्या किया? - मैंने एक मुर्गी चुराई थी , महाराज! - इस जिप्सी को जेल से रिहा किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे  निर्दोष सज्जन उससे सीखेंगे कि मुर्गियां कैसे चुराई जाती हैं - राजा ने कहा इस तरह उस जिप्सी को जेल से रिहा कर दिया गया। 

Saturday, September 28, 2024

Tamil _ Flashback कचौरी।

 कचौरी।


तमिल में कचौड़ी कहते हैं।

 கசௌடி.

கண்ணா கோகுல் ஷா உடைய

 நடைபாதையில் 

 கசௌடி வியாபாரி

 எனக்கு இன்றும்

 அவர் நினைவு இருக்கிறது.

 ஒராணாவிற்கு இரண்டு கசௌடிகள்.

அதற்கு  ருசியுள்ள

 உருளைக்கிழங்கு சப்ஜி.

 இரண்டால் மன நிறைவு அடையாது.

மேலும் இரண்டு 

 சாப்பிடுவேன்.

 வீட்டில் விருந்தினர் வந்தால்  அவருக்கு கசௌடிகள் கொடுத்து தான் விருந்தோம்பல்.

 அந்த கசௌடிகளின் மணம்  ருசி இன்றும் 

 அப்படியே மணக்கிறது.

 

😀

சே.அனந்த

 கிருஷ்ணன்

 தமிழ் மொழிபெயர்ப்பு.

Friday, September 27, 2024

लघु कथा - रंगीन सर्टिफिकेट

 लघु कथा - रंगीन सर्टिफिकेट 


- " अरे भाई ! मुँह लटकाये क्यों बैठें हो , अब तो तुम्हारी लघुकथा अंतर्राष्ट्रीय लघुकथा संग्रह में प्रकाशित हो गयी है , इंटरनेशनल  लेखक बन गए हो , तुम्हे तो खुश होना चाहिए और तुम मुँह लटकाये बैठे हो , क्या बात है ?  " रमेश ने अपने साहित्यिक मित्र आनंद से चुटकी ली । 

- " अरे यार , लघुकथा तो प्रकाशित हो गयी लेकिन सम्पादक जोकि प्रकाशक भी हैं  किताब की एक प्रति भी ख़रीदने के पैसे मांग रहे है। " आनंद ने कहा। 

-" पैसे मांग रहे हैं , मतलब लेखक का पारिश्रमिक तो दूर रहा उलटे लेखक से ही पैसा मांग रहे है , लगता है प्रकाशक ग़रीब है। " रमेश ने जुमला उछाला। 

- " अरे ग़रीब नहीं है यार , अमेरिका में बैठे है प्रकाशक  जी  लेकिन है तो आगरा के सेठ जी  , अपना बनियापन तो छोड़ने से रहे।  पहले अँगरेज़ लूटते थे भारतीयों को अब प्रवासी भारतीय ही लूट रहे हैं हमको। और तो और  .. जो लेखक पुस्तक की प्रति नहीं ख़रीदेगा उसे रंगीन सर्टिफिकेट भी नहीं मिलेगा। " आनंद ने मायूसी से कहा। 

- " अरे छोड़ो यार ! तुम्हें सर्टिफिकेट की क्या ज़रूरत है। मीर तक़ी मीर का ये शे'र सुनो -

' मेरी क़द्र क्या इनके कुछ हाथ है 

   जो रुतबा  है मेरा  मेरे  साथ है  "'

" भई वाह वाह , क्या कहने है...दोस्त हो तो तुम्हारे जैसा , दिल ख़ुश  कर दिया यार  "  आनंद ने मायूसी की चादर उतार फेंकी और  बढ़ कर अपने दोस्त  को गले लगा लिया। 


लेखक - इन्दुकांत आंगिरस 

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सही है लघु कथा। सराहनीय। - प्रमोद झा 

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रंगीन सर्टिफिकेट,, वस्तुत: उम्दा रचना है। -  ईश्वर चंद मिश्रा  

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नमस्कार सर 

असल में सत्य से सब घबराते हैं पर सच कहां छुपता है -  शाहना परवीन 

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लगता है तीर ज्यादा गहरा लगा  - Bidalia

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आदरणीय  एक  कहावत  है बिल्ली के भागो छींक टूटा। आप  को पटल से निकलने के बाद  आप  जैसे कलम के धनी के तने की grafting से अनेकानेक  इंदु कांत    चमत्कार  करेगे।ऊषासूद  कुछ  गलत बात हो तो🙏ऊषासूद

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सादर प्रणाम 🙏

आदरणीय मैं आप से ज्ञान, बुद्धि और अनुभव मआनी हर लिहाज़ में बहुत छोटी हूँ। पर आपको अपने मित्रों से उनके मत की अपेक्षा है तो इसीलिए अपने विचार रखने की हिम्मत कर रही हूँ। आप ने स्वयं भी आत्म मंथन किया होगा कि ऐसा क्यूँ हो रहा है। मेरी समझ के हिसाब से मैंने पहले भी आप को यही कहा था कि हमें किसी सार्वजनिक लेख में जाति, धर्म या कोई भी वर्ग विशेष को प्रयोग में नहीं लाना चाहिए। मेरी सोच के अनुसार अगर हमारी किसी बात से किसी एक इंसान के भी मनोभावों को क्षति पहुँचती है तो वह भगवान को भी मंज़ूर नहीं होगा। जो दिल से माफ़ी माँगने पर सब भुला देते हैं। तो हम तो इस मोह-माया, छल-कपट से युक्त संसार में रहते हैं। जहाँ किसी को सच्ची बात भी नागवार होती है। आप के लेखों में बहुत सुन्दर और बेहतरीन कन्टेंट होता है बस आप इस एक चीज़ से बचें। आज फिर आप से कह रही हूँ कि यदि कोई बात आप को ग़लत लगे तो क्षमा प्रार्थी हूँ।

- Madhubaala 

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साहित्यिक क्षेत्र में आजकल जो चल रहा है उसी नपर आधारित ये लघुकथा लिखी गई है।  डिलीट करना या ग्रुप से रिमूव करना  तो सच्चाई से मुँह छिपाने वाली बात है। हाँ इसमें जो जाति विशेष को  इंगित किया गया है वह किसी की भावना को ठेस पहुंचा सकता है। लेकिन ये इतनी बड़ी बात नहीं है कि डिलीट कि जाए 

-Anjali Goyal 

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इन्दुकान्त जी ! क्या कहने !!  - Vigyan Vrat 

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आपने सीधा वार किया है और उम्मीद करते हैं कि आपको जोड़े रहे! 😂

मेरी लघुकथा उसमें है पर मैने पैसे नहीं भेजे बल्कि उस ग्रुप से ही बाहर आ गयी।

- Girija Kulshresht 

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आपने सच्चाई लिखी है। शुद्ध यथार्थ  - Anita Panda 

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आदरणीय सादर प्रणाम। 

आपकी लघुकथा आज के समय की सच्चाई प्रस्तुत कर रही है। परंतु कुछ लोगों को सच सुनना अच्छा नहीं लगता। शोषण किसी न किसी रूप में हमारे समाज का हिस्सा रहा है। मेहनतकश व्यक्ति सदैव शोषित होता रहा है। परन्तु फिर भी हमें अपने काम में लगे रहना चाहिए। व्यक्ति को मेहनत का सही प्रतिफल तो ईश्वर से ही मिलता है। इसलिए हमें अपना कर्म करते रहना चाहिए। रही बात लूटने वालों की तो उनके लिए नदीम शाद साहब का एक शे'र पेश करना चाहता हूं।


जाने किसका हक दबाकर घर में दौलत लाए हो,

और उस पर ये सितम उसमें भी बरकत चाहिए।

_Sharwan Kumar Verma 

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सटीक लेखन आप को बहुत बधाई - Mitra Sharma

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ऐसा करना सही नहीं है। Anjana Verma 

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Bahut khoob 👌 

    Meaningful and relatable. - Gurpreet Gul 

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लघु कथा - मुर्गियाँ और अंडे

 लघु कथा - मुर्गियाँ  और अंडे 



पोल्ट्री फार्म के मालिक ने महीने की प्रोडक्शन रिपोर्ट देख कर मैनेजर से पूछा - " ये क्या है भई , हर हफ़्ते दो दिन अंडो की प्रोडक्शन बहुत कम है ? "

- " जी सर , मंगलवार और शनिवार को अधिकांश    मुर्गियाँ अंडे नहीं दे रही हैं। " मैनेजर से धीरे से कहा। 

- " अंडे नहीं दे रही हैं ? क्यों  ?  " मालिक ने उत्सुकता से पूछा। 

- " सर , यहाँ  से कुछ दूरी पर एक मंदिर है और वहाँ से उठती हनुमान चालीसा की आवाज़ सुन कर अधिकांश   मुर्गियां मंगलवार और शनिवार को हनुमान चालीसा का पाठ करती रहती हैं और अंडे नहीं देती। " मैनेजर ने झिझकते हुए कहा। 

- " अच्छा ... " कह कर मालिक कुछ सोच में पड़ गए। 

- " लेकिन सर मेरे पास एक आईडिया है , अगर हम यही बगल में एक मस्जिद बनवा दें तो मस्जिद से उठती अज़ान सुन कर  वो  सभी मुर्गियाँ  मंगलवार और शनिवार को भी  अंडे देना शुरू कर देंगी । " मैनेजर ने तत्परता से मालिक को सुझाव दिया। 

 - " पगला गए हो , अण्डों के लिए मस्जिद बनेगी अब।  जैसा चल रहा है....वैसा ही  चलने दो।" मालिक ने मैनेजर को डाँट लगाई और प्रोडक्शन रिपोर्ट  बंद कर दी। 

मैनेजर खिसिया कर दफ़्तर से बाहर निकल गया। 



लेखक - इन्दुकांत आंगिरस 

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सादर प्रणाम 🙏

आदरणीय जहाँ तक मेरी समझ काम करती है उसके हिसाब से इस लघु कथा से, चाहे वो हिन्दू हों या मुस्लिम समुदाय हो, दोनों वर्गों की ही धार्मिक भावनाएँ आहत हो रही हैं आप से विनती है कि आप मेरे सुझाव को अन्यथा नहीं लेंगे। क्योंकि यह लघुकथा हास्यस्पद लग रही है। और हास्य को धर्म से नहीं जोड़ सकते हैं। धर्म-कर्म तो दर्शन, भक्ति, श्रद्धा और शांति का विषय होता है।

आप से फिर से प्रार्थना है कि कृपया मुझे ग़लत नहीं समझिएगा।🙏 अगर कोई ग़लती हो गई है तो साथ ही क्षमा याचना भी कर रही हूँ।🙏  - 

- मधुबाला कौशिक 

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ये गलत हुआ। लघु कथा अच्छी है। सिफारिशी टट्टूओ की कमी नहीं है।

- प्रमोद झा 

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दुखद - उपमेन्द्र सक्सेना 

-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------ये तानाशाही रवैया है डिलीट नहीं करनी चाहिए लोगों की प्रतिक्रियाएं देखनी थी - Arvind Asar 

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लघुकथा तो अच्छी है, और संदेश परक भी, बस मन्दिर मस्जिद आने के कारण ही उन्हें आपत्ति हुई होगी I

-Manju Gupta 

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सर यह लोगों की अपनी मर्जी और सोच है। आप इसकी परवाह न करें। 🙏

Arvind Kumar Mishr , Lucknow 

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समसामयिक संदर्भों से ओतप्रोत

बहुत ही अच्छी लघुकथा है यह औऱ इसके अच्छेपन को रेखांकित करने को लिये ही इसे इंदौर समाचार ने प्रकाशित किया जिसके लिये समाचार पत्र को बधाई दी जाना चाहिये ...

-रही बात op गुप्ता व्दारा लघुकथा 'मूर्गियाँ और अंडे''को डिलीट करने

सी बात तो मुझे लगता है कि यह एडमिन में साहस की कमी या कमजोर समझ के चलते

ऐसा हुआ होगा...

-समाज में अच्छा संदेश देने वाली इस कथा के लिये आपको भी हार्दिक बधाई 💐

- Paryas Joshi 

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आदरणीय सादर नमन 🙏

आजकल जैसे विचार इंसानों के मन में उठ रहे हैं, उन्हीं पर आधारित ये एक समसामयिक लघुकथा है। इसमें किसी धर्म का उपहास उड़ाने वाली कोई बात नहीं है और न ही कथा से किसी की भी धार्मिक भावनाएं आहत नहीं होनी चाहिए। कवि या लेखक कुछ कल्पना का सहारा लेकर ही अपना सृजन करता है और उसने इस लघुकथा में भी अपने कल्पनानुसार शाकाहार और माँसाहार के महत्त्व को अभिव्यक्त किया है 

- Anjali Goyal Anju 

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धर्म का भूत आजकल लाठी डंडे साथ लेकर चल रहा है। बेचारा एडमिन आदमी ही तो है । सादर 🙏

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Thursday, September 26, 2024

Tamil _ कबूतर -புறா.

 कबूतर 

புறா.


 என்  வீட்டின் பால் கனியில் இருந்து,

 பத்தடி தூரத்தில் 

 எதிர் வீட்டின்

 உயர்ந்த மாடி.

மாலை நேரத்தில் 

  வண்ண வண்ண புறாக்கள் அங்கிருந்தே பறக்கும்.

ஒரு குழுவாக பறக்கும்.

ஒரு கிலோமீட்டர் 

 தொலைவில் 

மற்றொரு புறாக் கூட்டம் 

ஆகாயத்தில் 

 இணையும்.

 பிறகு அந்த புறாக்கள் 

திரும்பி வரும் 

 விளையாட்டு துவங்கும்.

 அந்த புறாக்களின்

 உரிமையாளர்கள்

 அதை அழைப்பார்கள்.

 வா வா வா 

 என்று மிகவும் சத்தமாக.

விசில் அடிப்பார்கள்.


 இரண்டு நிமிடத்தில் 

 புறாக் கூட்டம் 

 தங்கள் தங்கள் எஜமானரிடம் வந்து சேரும்.


 மாடியில் இறங்கியதும் எண்ணத் தொடங்குவர்.

 ஒரே பார்வையில் வேறு குழு புறாக்கள் 

 தங்களிடம் 

 வந்ததை அறிவர்.

 அப்போது உண்மையான 

 எஜமானருக்கு 

 பெரிய தொகை 

 கொடுக்க வேண்டும் .

 எப்படி கட்சி மாறி

 தலைவர்களுக்கு 

 பெருந்தொகை 

 அளிக்கப் படுகிறதோ அப்படி.


சே. அனந்த கிருஷ்ணன்.சென்னை

Wednesday, September 25, 2024

Tamil _ गज़क இனிப்பகம்.

 गज़क 

 (கடலை மிட்டாய்)

  இனிப்பகம்.

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 84 ஆயிரம்  ஆலயத்தில் இருந்து 

மூன்று கடைகள் தள்ளி  ஒரு இனிப்பகம் 

 அவன் தானே இனிப்பு  தயார் செய்வான்.

 தங்கம் வெள்ளி இனிப்பு.

 அதாவது 

வெல்லம் சீனி இனிப்பு.

 ஒருநாள் இனிப்பு செய்வதை  செய்யும்  இடத்தில் பார்த்தேன்.


 ஒரு மரத்தூணில்  இனிப்பு மாவு உருண்டையை   ஓங்கி ஓங்கி அடிப்பதைப் பார்த்தேன்.

அப்பொழுதில் இருந்து இனிப்பு மிட்டாய் உண்ணும் விருப்பம் மனதில் இருந்து போய்விட்டது.


 சே. அனந்த கிருஷ்ணன் சென்னை 

 தமிழாக்கம்.

Saturday, September 21, 2024

Flash Back _ Tamil _ வைத்தியர் वैद्य

 வைத்தியர் वैद्य 

  84 மணி நேர ஆலயம் எதிரில்.

 ஆயுர் வேத மருந்தகம்.

 வைத்தியர் பெயர் கைலாஸ் சந்த்.

 இன்றும் நினைவில் புதிதாக இருப்பவர்.

 வெள்ளை நிறம்

நீண்ட கழுத்து 

நேரு தொப்பி. சட்டை வேஷ்டி.

 பணிவானவர் மென்மையாகப் பேசுவர் 

அடிக்கடி அவரிடம்வயிற்று

வலி சாக்கு சொல்லி 

 போவேன்.

 அவர் விசித்திரமான எழுத்தில் மருந்து சீட்டு எழுதித் தருவார்.

 அவருடைய மருந்தாளுனர் புதிய 

சூரணம் பொட்டலம் கட்டி கொடுப்பார்.

  சூரணம் நக்கி சாப்பிடுவதில் எனக்கு மகிழ்ச்சி.


சூரணம் பொட்டலம் ஜேப்பில் வைத்து மகிழ்ச்சியாக வீடு திரும்புவேன்

Friday, September 20, 2024

भिश्ती _ Tamil _ Flashback

 भिश्ती 

 தண்ணீர் கொடுப்பவன்.

   இந்தக் காலத்தில் நான்   தண்ணீர் கொண்டு வருபவனைப் 

பார்க்க வில்லை.

 தன் கழுத்தில் ஒரு 

 தோல் பை தொங்கவிட்டுக் கொண்டு 

 அவன் 

வாய்க் கால்களை 

 சுத்தம் படுத்துவான்.


 வாய்க்காலில் அடைத்துக் கொண்டிருந்த 

தண்ணீர் ஓடும்.

 மக்களின் மூளையில்  நிறைந்திருக்கும் 

 குப்பை கூளங்கள் 

ஆனால் இன்று தண்ணீர் கொண்டு

வருபவன்  தென்படவில்லை.


 உண்மையில் 

 முன்பை விட இப்பொழுதுதான் 

  தண்ணீர் கொடுப்பவன் 

  கட்டாயமாகக்

 தேவைப் படுகிறான்.

++++++



Wednesday, September 18, 2024

कँचों का खेल

 

कँचों का खेल

 

बहुत खेला बचपन में

कँचों का खेल

और जीते बहुत सारे

रंग-बिरंगे कँचे

कँचों की निशानदेही

और कँचे से निशाना बनाने में

हो गयी थी महारत मुझे

कँचे से कँचे

फोड़ने का संगीत

आज भी गूजता है कानों में

कुछ पारदर्शी कँचों में उतरती हैं

मेरे बचपन की तस्वीरें

लौट जाता हूँ बचपन के गलियारे में

किसी फिल्म के

फ़्लैश बैक की मानिंद ।

Tuesday, September 17, 2024

होली

 

होली

 

लगभग दो हफ़्ते पहले से ही

शुरू हो जाती थी

होली की हलचल

पुरानी दिल्ली की गलियों में

बिखरने लगते थे होली के रंग

कुंडों में भरे जाते थे टेसू के फूल

और पानी हो जाता था गहरा लाल

रंग-बिरंगे रंगों का बनाया जाता था घोल

फिर पिचकारी से भरा जाता था

गुब्बारों में रंगीन पानी,

रंगीन पानी वाले गुब्बारों से

भर लेते थे बाल्टी

तैयारी होती थी कुछ इस तरह

मानो युद्ध के लिए शस्त्र

किये जा रहे हो एकत्रित,

कच्चे बड़े आलू को आधा काट कर

उस पर उल्टा खोदा जाता था

४२० का छापा

जिसको लगाया जाता था

राहगीरों की कमीज़ों पर

पीतल की पिचकारियों से

छितराया जाता था रंगीन पानी

टीन के डिब्बे को रस्सी में बाँध

खींचते थे किसी की टांग को छू कर

निकलती थी कुत्ते की आवाज़

डर जाते थे राहगीर

लेकिन अगले ही पल 'होली है'

सुन कर हो जाते थे सहज,

धुल जाती थी

पुरानी दुश्मनी भी

होली के प्रेम भरे रंगों से

आज तो किसी को

गुलाल लगाते हुए भी डर लगता है

दुश्मन तो दुश्मन

दोस्त भी अब दुश्मन लगता है

हर चेहरे पे हैं इतने चेहरे

कि होली का कोई भी रंग

चढ़ नहीं पाता

कोई भी होली का फाग नहीं गाता।

गुरु सूरदास

 

गुरु सूरदास

 

एकाउंट्स पढ़ाते थे हमें

गुरु जी थे सूरदास

था सब कुछ

उन्हें ज़बानी याद

नहीं मालूम था कि

कविता के भी हैं शौक़ी

गुरु जी थे कुछ रंगीन,

एक दिन रुक गयी थी

ट्यूशन बीच ही में

गुरु जी का आदेश था

रहने का सबको मौन,

रेडियो पर

बालकवि बैरागी की

ओजस्वी आवाज़ में

गीत सुन कर

गुरु जी के हो गए थे

रोंगटे खड़े

बस उस दिन

हम और नहीं पढ़े।

रामलीला का मेला

 

रामलीला का मेला

 

पुरानी दिल्ली के

रामलीला ग्राउंड में

लगता रामलीला का मेला

लाता था हज़ारों ख़ुशियाँ

शाम होते ही दोस्तों के साथ

निकल पड़ता था मेले में,

सैकड़ों चाट पकौड़ी के स्टॉल

मनोरंजन से भरे लुभावने खेल

मसलन - मौत का कुआँ,

बन्दूक की निशानेबाज़ी,

रिंग थ्रो,हँसी के गोलगप्पे,

बाहर जोकर के पोस्टर

अंदर मुन्नी बाई का डांस,

काग़ज़ या प्लास्टिक की

तलवार, गदा और धनुष बाण

और भीड़ का रेला

मिलकर बनाता था मेले को मेला

दूर से ही रामलीला के मंचन

का नज़ारा, बड़े बड़े झूले

रात में सब कुछ

रंगीन रौशनी में चमकता

हर चेहरा ख़ुशी से दमकता

दो-तीन घंटे तक

मेले में घूमने के बाद

जब भी लौटता घर

तो हाथ में होता धनुष बाण

कोई गदा या तलवार कभी

मिले ज़िंदगी में रावण कई

लेकिन चला नहीं पाया कभी

धनुष बाण, गदा या तलवार कभी

क्योंकि लिया नहीं था शस्त्र ज्ञान

किसी गुरु से कभी।

मघई पान

 

मघई पान

 

क्या दिन थे वो भी

क्या शामें थीं वो भी

जब मैं और मेरा दोस्त राकेश मित्तल

(जिसका स्वर्गवास 01.01.1979 को

एक सड़क दुर्घटना में हो गया था)

साथ मिलकर

खाते थे १२० नंबर का

मघई पान

सर्दियों की शाम मुँह में

बीड़ा दबाये घूमते थे

देर तक सड़कों पर

ग़ाज़ियाबाद के

गाँधी नगर में थी

भगवती पान वाले की दुकान

अक्सर पान खाये जाते थे उधार

और

दिल्ली रेडियो स्टेशन से

कविता पाठ या

गीतों का पसंदीदा कार्यक्रम

'मनभावन'

पेश करने के एवज़ में

जब मिलता था

७५ रुपये का चैक

तो चुकाया जाता था

पान वाले का उधार

उन दिनों

आवारगी का

लुत् ही कुछ और था

वो मेरी ज़िंदगी का

ख़ूबसूरत दौर था

ज़िंदगी में बहुत बरसों तक

खाता रहा ज़र्दे वाला पान

लेकिन

उधार के उन

मघई पानों की ख़ुश्बू

आज भी

मुँह में ताज़ा है।

पिता जी

 

पिता जी

 

जब से होश संभाला

पिता जी को

किताबों और काग़ज़ों में

उलझा देखा

घंटों बैठ कर लिखते रहते

मालूम हुआ कि

पिता जी थे एक कवि

बालस्वरूप राही के कवि मित्र

उनकी एक पुरानी डायरी में

पढ़े थे उनके कुछ गीत

उनके एक गीत का मुखड़ा

मुझे आज भी याद है

"मैं गीत प्यार के गाता हूँ,

इसलिए जवानी मेरी है

मैं गम में भी मुस्काता हूँ,

इसलिए रवानी मेरी है।"

वास्तव में

उनके गीत पढ़ कर ही

मुझे कविताएँ

लिखने की प्रेरणा मिली,

लेकिन बाद में बंद कर दी थी

उन्होंने लिखनी कविताएँ

मकान बनाने की ज़िम्मेदारी

और परिवार के

र्चों को भरते-भरते

कमाने को चंद पैसे

करते विभिन्न प्रकार का लेखन

और फूकते रहते

सिगरेट पे सिगरेट

ज़र्दे का पान और सिगरेट,

पिता जी ने किया संघर्ष

ज़िंदगी भर

जीता हर युद्ध ज़िंदगी के ख़िला

लेकिन कोरोना का वार

नहीं सह पाए

और ज़िंदगी से गए हार,

सो गए गहरी नींद में

हज़ारों मील दूर बैठा था मैं

अफ़सोस नहीं हो पाया सम्मिलित

उनकी अंतिम यात्रा में,

कोरोना के चलते

मैं ही क्या कोई भी सम्मिलित

नहीं हो पाया उनकी अंतिम यात्रा में

जैसे लड़ा था उन्होंने

अकेले ही जीवन का युद्ध

वैसे ही अकेले ही लड़े

मौत के साथ भी,

बस छोटे भाई ने किया था

उनका दाह संस्कार

एक फ्यूनरल एजेंसी की मदद से।