लघुकथा - GST
" क्या हुआ दोस्त , इतना उदास क्यों बैठे हो ? "
" अरे यार , ज़ुल्म की भी हद होती है। क्रेडिट कार्ड से लोन लिया , ऋण पर ब्याज़ दे रहे हैं , लेकिन ब्याज़ पर सरकार द्वारा १८ परसेंट GST ? तुम्हीं बताओ , न कुछ ख़रीदा न बेचा लेकिन GST देना पड़ता है और वो भी ब्याज़ पर ?" दोस्त ने बिफ़रते हुए जवाब दिया।
" ज़ुल्म तो है लेकिन मुझे इस बारे में कुछ नहीं मालूम , ये सरकार जाने या राम जाने "
- कौन से राम भाई ? कौन सी सरकार की बात कर रहे हों ?
- अरे वो ही अयोध्या वाले राम , और वो ही राम मंदिर बनाने वाली सरकार , उन्हीं से पूछो कि ब्याज़ पर भी GST क्यों लगाया जा रहा है ?
-" ठीक है भाई उन्हीं से पूछता हूँ पर जवाब कब मिलेगा ये तो राम ही जाने। " - दोस्त ने अपनी बुझी हुई आँखों से आसमान की ओर निहारते हुए कहा तो दूसरे दोस्त की आँखें भी गीली हो गयीं।
लेखक - इन्दुकांत आंगिरस
No comments:
Post a Comment