Saturday, June 29, 2024

प्रेम फूल

 प्रेम फूल 


तुम पीड़ा की  इस अंतहीन नदी में 

मुझे अकेला छोड़ गए 

जिन लहरों पर सवार होकर 

मैं आता था तुम्हारे द्वार 

और तुम करती थी 

मेरा प्रेमाभिसार 

आज वही लहरें 

गुमसुम बैठी है  उदास 

और तुम 

नदी के उस पार 

मुझसे अनजान 

भटक रही हो अंतहीन जंगलों में 

और मैं यहाँ

प्रेम नदी के गहरे जल में 

समाधिस्थ हूँ 

और प्रतीक्षा कर रहा हूँ उस पल की 

जब तुम्हारी हथेली पर 

टपका मेरा आँसू 

बदलेगा एक फूल में

मुहब्बत के फूल में 

जो हमारी आत्मा में 

कभी न मुझनाने  वाला 

वसंत बनकर महकेगा । 


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