बहुत सालों तक पिता को समझ नहीं पाया
जब ख़ुद बाप बना तो समझ आया
जलाता है जो अपने लहू से घर के चिराग़
जिसके सीने में हमशा दबी होती है एक आग
जो पत्थरों को फोड़ कर पानी निकालता है
जो जल जल कर भी मुस्कुराता है
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