Saturday, June 29, 2024

कभी उसके घर जाना

 कभी उसके घर जाना 


एक समंदर उफ़नता है बार बार 

एक सन्नाटा सुलगता है बार बार 

आकाश के रंग भी बेरंग हो गए हैं 

कुछ ताज़ा ग़म भी संग हो गए हैं 


वसंत की साँसे  भी मुरझा जाती हैं 

ज़िंदगी सुलग सुलग जाती है 


पतझड़ी वसंत का अपना मज़ा है 

यक़ीनन ज़िंदगी सजा है , सजा है 


पीले चाँद की उदास रौशनी 

वसंत की साँसों में उतर जाती है 

ज़िंदगी भूला बिसरा गीत गाती है 


वसंत की इन उदास साँसों की अनुगूँज में 

गूँजता है प्रेम का अंतहीन तराना 

इसी अंतहीन तराने को गाते गाते ही 

गुज़र जाती है ज़िंदगी 

अंतहीन पीड़ा की एक नदी

प्रतीक्षारत है , हाँ , प्रतीक्षारत है 

समंदर कभी उसके घर जाना ।


No comments:

Post a Comment