कभी उसके घर जाना
एक समंदर उफ़नता है बार बार
एक सन्नाटा सुलगता है बार बार
आकाश के रंग भी बेरंग हो गए हैं
कुछ ताज़ा ग़म भी संग हो गए हैं
वसंत की साँसे भी मुरझा जाती हैं
ज़िंदगी सुलग सुलग जाती है
पतझड़ी वसंत का अपना मज़ा है
यक़ीनन ज़िंदगी सजा है , सजा है
पीले चाँद की उदास रौशनी
वसंत की साँसों में उतर जाती है
ज़िंदगी भूला बिसरा गीत गाती है
वसंत की इन उदास साँसों की अनुगूँज में
गूँजता है प्रेम का अंतहीन तराना
इसी अंतहीन तराने को गाते गाते ही
गुज़र जाती है ज़िंदगी
अंतहीन पीड़ा की एक नदी
प्रतीक्षारत है , हाँ , प्रतीक्षारत है
समंदर कभी उसके घर जाना ।
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