तुम मेरी प्रेमिका नहीं हो
सोचती हो रात - दिन मुझ को
ढूँढती हो हर नज़र मुझ को
हर आहात पर चौंक जाती हो
कुछ दिल की है ख़बर तुझ को
कभी जो तुम्हारी पायल की रुनझुन बन जाऊँ
कभी जो तुम्हारे काजल की नज़रें बन जाऊँ
कभी जो भर दो तुम दिल मेरा ख़ुशियों से
कभी तुम्हारे दिल की मैं धड़कन बन जाऊँ
कभी जो काँधे पर मेरे , तुम अपना सर रख दो
और राहों में हमारी तुम अपना सफ़र रख दो
कभी जो प्यास के सहरा में हम भटक जायें
मेरे तपते हुए अधरों पर अपने अधर रख दो
कभी जो तुम्हारे कंगन की खनखन बन जाऊँ
कभी जो तुम्हारी साँसों का चन्दन बन जाऊँ
कभी जो तुम राधा बन कर पुकारो मुझ को
कभी जो तुम्हारी राहों का मैं नंदन बन जाऊँ
ज़माने से छुपाती हो मुझ को
किताबों में पढ़ाती हो मुझ को
जब थक हार कर लौटता हूँ
पलकों में सुलाती हो मुझ को
तुम मेरी प्रेमिका नहीं हो
सच , तुम मेरी प्रेमिका नहीं हो।
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