Saturday, June 29, 2024

प्रेम -प्रसंग -5

 प्रेम -प्रसंग


तुम मेरे कुछ नहीं हो कर भी 

सब कुछ हो मेरे 

मैं कोई बंधन नहीं 

पर घेरा हो तुम मेरा 

जब कभी भी मैं

घिर जाता हूँ 

वीरानियों के जंगल में

तुम उकेर देते हो 

तबस्सुम की एक लकीर 

हृदय के कैन्वस पर 

और ज़िंदगी भर जाती है फिर 

मीठे , नाज़ुक गुलों से। 

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