खुली आँखों का आकाश
मैं तुम से दूर बहुत दूर
इस सन्नाटे में
लम्हा लम्हा बिखरता हूँ
भूले बिसरे ख़तों के अल्फ़ाज़
धीरे धीरे मेरी आत्मा में उतरते हैं
और मैं
तब्दील हो जाता हूँ
एक अदद सन्नाटे में
बिखरे हुए बिस्तर की सिलवटे
गाती हैं दुःख भरा गीत
और मैं
तन्हाई में बनता हूँ
उन गीतों का संगीत
तुम दूर बहुत दूर
एक साफ़ सुथरे बिस्तर पर
एक रौशनी की मानिंद सो रही हो
तुम्हारी बंद आँखों में
परोसते ख़्वाबों की तस्वीर को
मैं रोज़ उकेरता हूँ
अपनी आत्मा के कैन्वस पर
तुम अभी
नींद से जागोगी
ख़्वाबों की सब तस्वीरें
बिखर जायेंगी
तुम्हारी खुली आँखों का आकाश
तुमसे दूर बहुत दूर
इस बेतरतीब कमरे में
टूट रहा है लम्हा लम्हा
आओ अब आ भी जाओ
ये आकाश टूट कर
बिखर न जाये
समेत लो इसे अपनी बाँहों में
इससे पहले कि
यह गहरी नींद सो जाये ।
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