Saturday, June 29, 2024

प्रेम पहेली

 प्रेम पहेली 


प्रेम के अबूझे 

रहस्यों को  समझते समझते 

मैं ख़ुद  इक पहेली बन गया 

जिसका जवाब मुझे भी  नहीं मालुम 


प्रेम के इस अनंत जंगल में 

मेरे हिस्से का वसंत 

न जाने  कहा गुम हो गया 


प्रेम को पाना

और  

प्रेम को जीना 

रेल की दो पटरियों  की तरह हैं 

जिनका मिलना नामुमकिन हैं 

हमारी आत्माओं का अनंत मिलन

मिलते मिलते बिछुड़ गया 

प्रेम क्षितिज तक जाकर पलट गया 

मैं देर तक देखता रहा 

समुन्दर किनारे 

आती जाती लहरों को, 

प्रेम की जलती बूँदें 

लहरों में घुल मिल गयी 

प्रेम की तपन से 

लहर लहर जल जल गयी ,

मैं उदास हूँ 

तुम दूर बहुत दूर 

शायद बाँचती हो प्रेम की अबूझी किताब 

जिसमे शायद अभी तक महफूज़  हो कोई सूखा गुलाब 

मैं  इधर इश्क़ की आग में जल रहा हूँ 

और हैरान हूँ कि

इस आग कि लपटे कही तुम्हारी 

आत्मा को न छू लें 


मैं आधा अधूरा था 

तुमने मुझ से मेरा सन्नाटा लिया ही क्यों 

तुमने मुझ से प्रेम किया ही क्यों ?




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