धीरे ..धीरे.. धीरे ..
दूर पहाड़ों से
उतरते सूरज की किरणों की मानिंद
तुम उतरती रही
मेरी आत्मा में
धीरे ...धीरे.. धीरे .
प्रेम लहरों से उठती गंध
फैलती गयी मेरी शिराओं में
धीरे ..धीरे.. धीरे..
तुम्हारे और मेरे
दरमियाँ
तन्हा फ़ासला
डसता रहा हम दोनों को
धीरे ,धीरे धीरे
तुम्हारे और मेरे
बीच का
अब यह तन्हा फ़ासला ही
बन गया
हमारी आत्माओं का अनंत मिलन
धीरे ..धीरे.. धीरे..
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