प्रेम घाटी
प्रेम पथ पर बढ़ते बढ़ते
तुम न जाने कहा खो गए
इस अंतहीन यात्रा पर
अभी तो हम बढे ही थें
अंतहीन प्रेमांगलिनों के
घेरों में
अभी तो हम खड़े ही थें
अभी तो तुमने
वसंत के पहले फूलों के रंगों से
मेरा तिलक किया ही था
अभी तो प्रेम जल की गंगा में
हमने स्नान किया ही था
अभी तो हमें बादलों के उस पार
क्षितिज की सीमायें तोड़कर
प्रेम घाटी में जाना था
अभी तो हमे वसंत के साथ साथ
मुस्कुराना था
प्रेम की इस अंतहीन
यात्रा में
हम अभी से थक गए
हमारे क़दम बढ़ते बढ़ते रुक गए
देखो प्रिय
प्रेम घाटी के इन प्रेम फूलों को
ये प्रेम फूल
अंतहीन अनंत प्रेम बंधन में बँधे है
एक दूसरे के प्रेमलिंगिनों में कसे हैं
प्रतीक्षारत है आनेवाली सदिया
और वसंत के ये ताज़ा फूल
लिख रहे हैं इक - दूजे के हृदय पटल पर
अपने अपने नाम ।
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