अनजानी उड़ान
तुम वसंत के पंखों पर
सवार होकर
निकल पड़े अनजानी यात्राओं पर
और मैं अकेला
यहाँ धरती पर
देख रहा हूँ तुम्हारी उड़ान
तुम्हारे नए आसमान
असीमित , अपरिचित आसमान
मैं यहाँ धरती पर
प्रेम की अपरिचित गलियों में
ढूँड रहा हूँ हमारी आत्मा के निशान
प्रेम की वही पुरानी पहचान
जहाँ कभी हम साथ साथ चले थे
अनंत प्रेम पथ पर
एक साथ बढे थे
तुम आकांक्षा के रथ पर
सवार हो कर
भटक रहे हो नए नए आसमानों में
और इधर धरती की
फैली हुई बाँहें थक गयी हैं
लौट आओ प्रिय
अभी हमे मिलकर तय करने हैं
प्रेम के अनगिनत सफ़र
आकाश ,धरती ,चाँद , सितारें
और ये लाल फूल
सब रो रहे हैं मेरे साथ,
तुमने उकेरे थें
प्रेम चित्र मेरी आत्मा पर
और मैंने ढाले थें
प्रेम गीत तुम्हारे अधरों पर
सब पुकार रहे हैं तुम्हे
लकिन तुम फिर भी ख़ामोश हो
ईश्वर प्रतीक्षा कर रहा है
हमारे महामिलन की
और मैं यहाँ खजुराहों के मंदिर की
सीढ़ियों पर
प्रतीक्षारत हूँ
डूबते सूरज के साथ
कब लौटोगे , ओ मेरे सहयात्री !
No comments:
Post a Comment