Saturday, June 29, 2024

प्रेम कैन्वस

 प्रेम कैन्वस


अपनी आत्मा में 

तुम फूलों के रंगों से 

उकेरती रही 

मेरे ह्रदय के सूने कैन्वस पर 

वसंत के अनछुए   प्रेम गीत 

और मैं

भरता रहा उन प्रेम रंगों को 

अपनी आत्मा में

तुम शब्दों की सरगम से 

कसती रही 

मेरी ह्रदय वीणा के तार 

प्रेम के अनछुए   प्रेम गीत

और मैं

भरता रहा उन प्रेम तरंगों को 

अपनी आत्मा मेँ 


तुम तन्हाई की गर्दन पर 

रखती रही ख़ामोशी का साज़ 

गाती रही सन्नाटे का गीत 

और मैं

भरता रहा उस सन्नाटे को 

अपनी आत्मा मेँ । 



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