लावारिस नाम
मुझे आज भी याद है वह शाम
जब तुमने क़तरा क़तरा
पिया था मेरी आँखों का नशा
तुमने बार बार
पुकारा था मेरा नाम ,
आज वही नाम
मुझे याद नहीं आता
ज़िंदगी का कोई भी सुर
अब प्रीत की धुन पर
नहीं गाता
शाम के साथ साथ
रीत गया वो नाम
मैं हैरान हूँ कि किस तरह
बरसों पुराना नाम
बन गया एक पल में गुमनाम
अब उसकी
कोई पहचान नहीं होती
कोई शबनम
उस पर नहीं रोती
एक पल में
लावारिस बन जाता है
कोई बरसों पुराना नाम।
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