Saturday, June 29, 2024

प्रेम प्रतीक्षा नहीं करता

 प्रेम प्रतीक्षा नहीं करता 


तुमने कहा था 

प्रेम प्रतीक्षा नहीं करता 


सूरज की किरणें

लौट आती  हैं  क्षितिज के उस पार से 

नदी अंततः करती है 

सागर का आलिंगन 

तारों के साज़ की धुन पर 

गुनगुनाने लगते हैं  सपने 

चाँद मुस्करा कर चांदनी को 

अपनी बाँहों में समेट लेता है 

आकाश धीरे धीरे झुकता है धरती पर  

और 

सारी दुनिया सुनती है 

पतझड़ की दहलीज़ पर

 वसंत का ठहाका 

अपने अपने घरों को लौटते परिंदे 

पेड़ों की आत्माओं से उठता अंतहीन संगीत 

गाता है प्रेम का अनंत गीत 

पहाड़ों से उतरता प्रेम जल 

पसर जाता है मेरी शिराओं में 

अपनी सूनी आँखों के जंगल में 

डूबते सूरज के साथ 

करता हूँ तुम्हारी अंतहीन प्रतीक्षा 


तुमने कहा था 

प्रेम प्रतीक्षा नहीं करता ...






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