प्रेम जल
तुम्हारा दिल पत्थर का एक पहाड़ है
जो कुछ नहीं कहता
जो कुछ नहीं सुनता
मेरे दिल की तपन से भी
ये पत्थर नहीं पिघलता
पर शायद यह मेरी भूल थी
जो तुम्हे पत्थर जान कर
मैं आगे बढ़ गया
यह भूल गया कि
इस पहाड़ के भीतर
एक वसंत करवट लेता है
जो दर्दीले स्वर में गाता है प्रेम गीत
सदियों पुराना वही
चिरपरिचित प्रेम गीत
जिसकी अनुगूँज से
मेरी आत्मा भीग जाती है
जब इस पथरीले पहाड़ से निकल
प्रेम जल की एक नदी
मेरी आत्मा में पसर जाती है ।
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